यह कमाल की बात है देश भर में सिर्फ कांग्रेस पार्टी के विधायक टूट रहे हैं। कई राज्यों में कांग्रेस के विधायक टूट कर भाजपा और दूसरी मजबूत क्षेत्रीय पार्टियों में चले गए हैं या टूट कर जाने की तैयारी कर रहे हैं। इससे भी कमाल की और हैरानी की बात यह है कि दिल्ली में बैठे कांग्रेस नेताओं को इसकी परवाह ही नहीं है। अभी असम में कांग्रेस के दो विधायक- अजंता नेओग और राजदीप गोवाला टूट कर भाजपा में चले गए। कह सकते हैं कि पूर्वोत्तर में ऐसा होता रहता है। जैसे अरुणाचल प्रदेश में पूरी कांग्रेस पार्टी ही भाजपा में चली गई या मेघालय, मणिपुर में कांग्रेस के विधायक टूट कर एनपीपी और भाजपा में चले गए।
पर यह कहानी सिर्फ पूर्वोत्तर के राज्यों की नहीं है। इन दिनों बिहार और झारखंड में इस बात की चर्चा जोर-शोर से चल रही है कि पार्टी टूट सकती है। बिहार में कांग्रेस के 19 विधायक हैं और कहा जा रहा है कि एकमुश्त 12 विधायक पाला बदल कर मुख्यमंत्री की पार्टी जनता दल यू में जा सकते हैं। गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी ने बहुत खराब प्रदर्शन किया। पिछली बार वह 43 सीटों पर लड़ कर 27 सीट जीती थी, इस पर 70 सीट लड़ कर 19 जीत सकी। उसके बाद से ही पार्टी में ऐसी अंतर्कलह मची है कि प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल को विदा होना पड़ा है। पार्टी के नेताओं ने ही उनके ऊपर कई किस्म के आरोप लगाए। लेकिन ऐसा लग नहीं रहा है कि पार्टी के नए प्रभारी भक्तचरण दास बहुत प्रभावी होंगे। अभी ले-देकर कांग्रेस विधायकों को यह कह कर समझाया जा रहा है कि भाजपा-जदयू में झगड़ा चल रहा है और हो सकता है कि फिर महागठबंधन की सरकार बने तो सबको एडजस्ट किया जाएगा। यानी किसी लोभ के जरिए ही कांग्रेस विधायकों को मनाया जा सकता है।
इसी तरह झारखंड में कांग्रेस पार्टी के 16 में 11 विधायकों के टूटने की चर्चा रोज हो रही है। कहा जा रहा है कि चार मंत्रियों को छोड़ कर बाकी ज्यादातर विधायक किसी भी समय पाला बदल सकते हैं। वे भाजपा के संपर्क में बताए जा रहे हैं। हालांकि हो सकता है कि ऐसा न हो, लेकिन इस चर्चा पर यकीन सबको हो जा रहा है। असल में प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी आरपीएन सिंह के लिए कहा जा रहा है कि वे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कहे के हिसाब से काम कर रहे हैं। इससे पार्टी नेता नाराज हैं। ऊपर से सरकार बनने के एक साल बाद भी बोर्ड-निगम का गठन नहीं हुआ है इसलिए भी पार्टी नेता नाराज हैं।
इससे पहले कांग्रेस पार्टी दो-चार राज्यों को छोड़ कर लगभग पूरे देश में टूट चुकी है। मध्य प्रदेश में पार्टी के 27 विधायक पाला बदल कर भाजपा में चले गए। कर्नाटक में 17 विधायकों ने पाला बदल कर भाजपा की सरकार बनवाई। तेलंगाना में एक विधायक को छोड़ कर पिछली बार जीते सभी छह विधायक टीआरएस में चले गए। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के करीब 20 विधायक पार्टी छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। राजस्थान में डेढ़ दर्जन कांग्रेस विधायक भाजपा में जाते-जाते बचे और महाराष्ट्र में सत्ता की गोंद ही कांग्रेस के विधायकों को जोड़े हुए है। वह भी देखना होगा कि कब तक!
कहां-कहां के कांग्रेस विधायक टूटेंगे?
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