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  • हम हिंदू कितना बरदाश्त कर सकते हैं?

    वैश्विक पत्रिका ‘द इकोनॉमिस्ट’ में जलवायु परिवर्तन को ले कर एक रिपोर्ट छपी है। शीर्षक है ‘मानव के सहने की सीमा’ (At the limits of human endurance)। हां, इक्कीसवीं सदी में यह जरूरत है जो पृथ्वी की बरबादी के परिणामों में मनुष्य के बरदाश्त करने की सीमाओं पर विचार हो? पत्रिका ने भारतीय उपमहाद्वीप में सिंधु-गंगा घाटी में रहने वाले 70 करोड़ लोगों के गर्मी बरदाश्त कर सकने की सीमा पर विचारा है। इसमें मुझे ‘बरदाश्त कर सकने’ का जुमला सोचने लायक लगा। यों मेरा मानना यह भी है कि बाकी दुनिया को दक्षिण एशिया के लोगों पर सोचने की...