संघ सुखानुभूति का सच
चुनाव से चुनाव तक की अनन्त आशा करते जीवन पूरना चाहिए। भाषा, संस्कृति, शिक्षा, कानून, जजिया, संख्या, मात्रा, आदि किसी पैमाने की बात ही नहीं उठानी चाहिए। सब गाँधीजी जैसे अवतार पर भरोसा कर छोड़ देना चाहिए। ''क्या आप को हमारी नीयत पर भी संदेह है?'' इसे तुरुप के इक्के की तरह रखकर वे आत्मविश्वास से तमतमा उठते हैं। पर संदेह तो गाँधीजी की नीयत पर भी न था! संघ-परिवार, और उस के उत्साही समर्थक सुखानुभूति में सराबोर हैं। ऐसे कि एक भी असुविधाजनक सत्य सामने रखने वाले पर व्यंग्य/धमकी की बौछार करने को तैयार, चाहे वह शुभचिंतक क्यों न...