कर्नाटकः बदले की राजनीति
लोकतंत्र में राजनेता चाहे वे कितने ऊंचे पद पर हों, सिद्धांततः वे जनता के सेवक होते हैं। बहरहाल, इस सोच को अब सिर के बल खड़े कर दिया गया है और उसका खामियाजा कर्नाटक को भुगतना पड़ रहा है। कर्नाटक सरकार की इस बात के लिए तारीफ की जाएगी कि चावल खरीद में केंद्र की ओर से डाली रुकावट को उसने अपने चुनावी वादे को पूरा ना करने का बहाना नहीं बनाया। खुले बाजार से खरीदारी की उसकी पहल पर भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने 34 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से चावल देने का निर्णय लिया था। बाद में...