भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पांच पन्नों का एक राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया गया, जिसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पेश किया। इस पर चर्चा के दौरान भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया कि कोरोना वायरस की महामारी के दौरान विपक्ष नदारद था, जबकि भाजपा और उसकी सरकारों ने लोगों की मदद की। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि महामारी के दौरान विपक्ष सिर्फ ट्विटर पर सक्रिय था। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कोरोना महामारी के दौरान प्रचलित शब्दावली का इस्तेमाल करते हुए कहा कि महामारी के दौरान विपक्ष ‘आइसोलेशन’ में चला गया था। Bjp allegation corona epidemic
सोचें, कोरोना वायरस की महामारी के दौरान जब सरकारें ही नहीं दिख रही थीं तब विपक्ष क्या कर सकता था? पहला सवाल तो यही है कि महामारी से निपटने में या लोगों की मदद करने में विपक्ष की क्या भूमिका हो सकती थी? क्या विपक्ष की जिम्मेदारी थी कि वह ऑक्सीजन सिलिंडर उपलब्ध कराए या जिन दवाओं की कालाबाजारी हो रही वह उपलब्ध कराए या अस्पतालों में लोगों को बेड्स उपलब्ध कराए या वैक्सीन के लिए फंड उपलब्ध कराए या जरूरी मेडिकल उपकरण विदेश से आयात करे या डॉक्टर, नर्स आदि की व्यवस्था करे? इनमें से कौन सा काम विपक्ष कर सकता था? ये सारे काम ऐसे थे, जो मुख्य रूप से केंद्र सरकार को करने थे लेकिन वह बुरी तरह से इस काम में विफल रही। कुछ काम राज्य सरकारों को करने थे और लगभग सभी राज्य सरकारें चाहे वह भाजपा की हो या कांग्रेस की या किसी दूसरी पार्टी की अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहीं।
सरकारें बेसिक काम भी नहीं कर सकीं। कोरोना महामारी से जान गंवाने वालों का अंतिम संस्कार भी सम्मान और इंसानी गरिमा के साथ हो, यह भी सरकारें सुनिश्चित नहीं कर सकीं। उत्तर प्रदेश में गंगा में बहती लाशें और गंगा किनारे दफनाए गए शव देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य की हिंदुवादी सरकार की विफलताओं का स्मारक हैं। देश के लगभग सभी राज्यों में ऑक्सीजन की कमी से मौतें हुईं और वैक्सीनेशन का अभियान शुरू होने के बाद भी केंद्र की गलत नीतियों से महीनों तक राज्यों की सरकारें और आम लोग वैक्सीन के लिए जूझते रहे। इसके बावजूद केंद्र में सरकार चला रही पार्टी का विपक्ष को कठघरे में खड़ा करना हैरान करने वाला है। बहरहाल, भाजपा ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राजनीतिक प्रस्ताव के दौरान इस पर चर्चा की इसका मतलब है कि यह मामूली बात नहीं है और बड़े राजनीतिक डिजाइन के तहत यह काम किया गया है।
असल में सरकार और भाजपा को अपनी विफलताओं से लोगों का ध्यान हटाना है। उनकी यादों से अपनी विफलता और असंवेदनशीलता को मिटाने और अपनी विफलताओं के लिए भी विपक्ष को जिम्मेदार ठहराने की सोची समझी योजना के तहत ये बातें कही जा रही हैं। कोरोना महामारी के दौरान हजारों लोगों की प्रत्यक्ष मदद करके मसीहा के तौर पर उभरे फिल्म स्टार सोनू सूद के यहां आयकर विभाग की छापेमारी भी इसी योजना का हिस्सा है। सरकार नहीं चाहती कि जिस जगह वह विफल रही वहां एक व्यक्ति के निजी उद्यम से मसीहा बनने को लोग याद रखें।
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भाजपा के आरोप और महामारी के नायक
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