समझ नहीं आता है कि भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, केंद्र सरकार, संवैधानिक प्राधिकार, प्रतिबद्ध मीडिया और सोशल मीडिया में करोड़ों देशभक्तों की किस बात पर यकीन किया जाए? एक तरफ वे भारत को विश्व गुरू बताते हुए इस बात का डंका बजाते हैं कि दुनिया में भारत की ताकत बढ़ी है और दुनिया के देश अब भारत की आवाज को ज्यादा गंभीरता से सुनने लगे हैं। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है पहले अपने को भारतीय कहने में लोगों को शर्म आती थी लेकिन अब शान से अपने को भारतीय बताते हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तो यहां तक कहा कि अब दुनिया में कोई भी बड़ा फैसला नरेंद्र मोदी की राय के बगैर नहीं होता है। दूसरी तरफ यही समूह इसके बिल्कुल उलट बात भी करता है। वे आरोप लगाते हैं कि अंतरराष्ट्रीय ताकतें भारत भारत के खिलाफ साजिश कर रही हैं। अब सोचें, ये दोनों बातें कैसे हो सकती हैं? ये दोनों अतिवादी धारणाएं हैं, जिनका सरकारी पक्ष अपनी सुविधा के हिसाब से इस्तेमाल करता है। जैसे अभी गुजरात दंगों को लेकर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री आई और हिंडनबर्ग रिसर्च ने वित्तीय गड़बड़ियों की एक रिपोर्ट पेश की तो विदेशी ताकतों की साजिश वाला नैरेटिव चलाया जा रहा है।
इसके मुताबिक पिछले आठ नौ साल में और कुछ हुआ हो या नहीं लेकिन भारत विरोधी ताकतें बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं और इतनी शक्तिशाली हो गई हैं कि आए दिन भारत के खिलाफ कोई न कोई साजिश रचती रहती हैं। ये भारत विरोधी ताकतें इतनी ज्यादा मजबूत हो गई हैं कि वे अपने मकसद के लिए देश की सर्वोच्च अदालत तक का इस्तेमाल कर ले रही हैं। मीडिया समूहों का तो इस्तेमाल कर ही रही हैं अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों का उपयोग करके भारत के खिलाफ दुष्प्रचार कर रही हैं और भारत की छवि खराब कर रही हैं। ये भारत विरोधी ताकतें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साजिश रच कर भारत की विकास गाथा को पटरी से उतारने की कोशिश कर रही हैं। इतना ही नहीं गढ़े हुए नैरेटिव के जरिए इन ताकतों ने भारत के खिलाफ एक तरह से युद्ध छेड़ रखा है। हिंडनबर्ग हो या बीबीसी ये सब भारत विरोधी विदेशी ताकतों के टूलकिट्स हैं।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के मुखपत्र ‘पांचजन्य’ ने अपने संपादकीय में लिखा है कि भारत विरोधी ताकतें देश की सर्वोच्च अदालत का औजार की तरह इस्तेमाल कर रही हैं। यह बात उन्होंने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को सोशल मीडिया से हटाने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर अदालत की ओर से जारी नोटिस से नाराज होकर कही है। सोचें, देश की सर्वोच्च न्यायपालिका के लिए यह कितनी अपमानजनक बात है कि एक जिम्मेदार संगठन सार्वजनिक रूप से कह रहा है कि सर्वोच्च अदालत विदेशी ताकतों के हाथ का औजार है! जिस अदालत के ऊपर संविधान के संरक्षण की जिम्मेदारी है और जिसके ऊपर देश के 140 करोड़ लोगों के हितों की रक्षा करने की जवाबदेही है अगर वह विदेशी ताकतों के हाथ का औजार है तो फिर बचता क्या है?
संघ से जुड़ी अंग्रेजी पत्रिका ‘ऑर्गेनाइजर’ ने इससे पहले अदानी समूह की कथित वित्तीय गड़बड़ियों की पोल खोलने वाली हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट को भी भारत विरोधियों की साजिश बताया। इसने एक तरह से अदानी समूह को भारत की स्वदेशी उद्यमिता का प्रतिनिधि बताते हुए देश के लोगों से अदानी का समर्थन करने की परोक्ष अपील की थी। इसके बाद ही सोशल मीडिया में अदानी के समर्थन वाले पोस्ट की बाढ़ आई। इसके बाद ही हिंडनबर्ग की जांच कराने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई। इसके बाद ही हिंडनबर्ग के खिलाफ एफआईआर कराने की चर्चा शुरू हुई। यह अलग बात है कि जिस कारोबारी को इस रिपोर्ट से 10 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है उसने अभी तक न एफआईआर कराई है और न भारत या अमेरिका की अदालत में हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को चुनौती दी है। लेकिन भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक-सामाजिक जमात का एक बड़ा हिस्सा हिंडनबर्ग रिसर्च को भारत विरोधी टूलकिट साबित कर चुका है।
केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के समय भी पूरा देश इस तरह के घटनाक्रम का साक्षी बना था, जब किसानों को मिलने वाले अंतरराष्ट्रीय समर्थन को भारत विरोधी साजिश ठहराया जा रहा था। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की सालाना रेटिंग में भारत का स्थान लगातार गिरते जाना भी इस समूह के लिए भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय साजिश का नतीजा है। अगर ऐसा है तो फिर भारत की ताकत बढ़ने का उदाहरण क्या है? कैसे पता चले कि दुनिया में भारत का महत्व बहुत बढ़ गया है? एक निजी विमानन कंपनी एयर इंडिया ने फ्रांस की एयरबस और अमेरिका की बोइंग कंपनी को 470 विमानों का ऑर्डर दिया है, क्या इसको भारत की ताकत बढ़ने का संकेत माना जाए? यह तो भारत के एक बड़ा बाजार होने का सबूत भर है और उलटे भारत के लिए शर्मिंदगी की बात होनी चाहिए कि जिस विमानन कंपनी को नहीं चला पाने की वजह से भारत सरकार ने लगभग मुफ्त में बेच दिया था वह कंपनी एक बार में 470 विमान खरीद रही है!
इंडोनेशिया के बाद भारत को जी 20 देशों की अध्यक्षता का मौका मिला है, क्या इसको भारत की ताकत बढ़ने का सबूत माना जाए? जी 20 की अध्यक्षता तो बारी बारी से सभी देशों को मिलती है। इसे भारत के लिए एक बड़ा मौका तो माना जा सकता है कि लेकिन यह भारत की ताकत बढ़ने का सबूत नहीं है। प्रधानमंत्री दुनिया भर के देशों के राष्ट्र प्रमुखों से मिलते हैं और कई लोगों के गले भी लगते हैं लेकिन वह भी भारत के बहुत मजबूत होने का सबूत नहीं माना जा सकता है। कई लोग, जिनमें पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान भी शामिल हैं, यह मानते हैं कि पाबंदी के बावजूद रूस से भारत कच्चा तेल खरीद रहा है और यह भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का सबूत है। असलियत यह है कि रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीद कर भारत की पेट्रोलियम कंपनियां उसे रिफाइन कर रही हैं और अमेरिका व यूरोप को बेच रही हैं। यह एक तरह से अमेरिका और यूरोप की मौन सहमति से हो रही है और भारत के नागरिकों को इसका रत्ती भर भी फायदा नहीं मिल रहा है। सो, भारत की ताकत बढ़ने का कोई ठोस सबूत नहीं है, सिवाय इसके कि भारत एक बहुत बड़ा बाजार है और दुनिया भर के विकसित देशों को अपना माल बेचने के लिए भारत की जरूरत है।
तभी जब भाजपा और संघ के लोग या कई बार संवैधानिक पदों पर बैठे लोग विदेशी साजिश की बात करते हैं या विदेश में भारत की ताकत बढ़ने की बात करते हैं तो दोनों ही स्थितियों में वे संपूर्ण सच नहीं बता रहे होते हैं। जब वे कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय ताकतें भारत के खिलाफ साजिश कर रही हैं और भारत के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़े हुए हैं या भारत की विकास गाथा को पटरी से उतार रही हैं या भारत को बदनाम कर रही हैं तो एक तरह से वे खुद ही भारत का अपमान कर रहे होते हैं। जब भी किसी प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संस्था की रिपोर्ट या रेटिंग आए तो उसे स्वीकार कर सुधार करने की बजाय भारत विरोधी साजिश बताने से एक लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में भारत की छवि पर नकारात्मक असर होता है। दूसरी ओर जब यह कहा जाता है कि दुनिया भारत से पूछे बगैर अब कोई बड़ा फैसला नहीं करती है तो निश्चित रूप से दुनिया भर में इससे भारत का उपहास बनता है। जब भारत का सबसे छोटा पड़ोसी नेपाल तक हमसे पूछ कर अपना फैसला नहीं करता है और उलटे भारत विरोधी नीतियां अपनाता है तो दुनिया की बात क्या करनी है? दक्षिण एशिया के छोटे छोटे देशों पर भी भारत का असर नहीं है। ये देश भी चीन के असर में काम कर रहे हैं और हम इस मुगालते में हैं कि दुनिया हमारी बात सुन रही है!