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राहुल को वैकल्पिक दृष्टि बतानी होगी

युवा

कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने को एक परिपक्व और सकारात्मक विपक्षी नेता के तौर पर स्थापित करने के प्रयास में काफी हद तक सफल हुए हैं। भारत जोड़ो यात्रा ने उनको देश और समाज को देखने की नई दृष्टि दी है। राजनीतिक रूप से भी उनको एक गंभीर और सतत सक्रिय रहने वाले नेता की छवि प्रदान की है। भारत जोड़ो यात्रा से लौटने के बाद संसद की कार्यवाही में उनकी हिस्सेदारी और राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सरकार की ओर से पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान दिया गया उनका भाषण इस बात का संकेत है कि वे पुरानी छवि से बाहर निकल रहे हैं। उन्होंने खुद ही यात्रा के दौरान एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि पुराने राहुल गांधी को उन्होंने मार दिया है। अब लोगों के सामने नए राहुल गांधी है। यह अच्छी बात है परंतु सवाल है कि नए राहुल गांधी के सामने देश, समाज और राजनीति की क्या वैकल्पिक दृष्टि है?

भारत जोड़ो यात्रा समाप्त करते हुए अपनी आखिरी प्रेस कांफ्रेंस में राहुल ने दावा किया था कि इस यात्रा के जरिए उन्होंने एक वैकल्पिक दृष्टि पेश की है। लेकिन हकीकत यह है कि अभी तक उन्होंने कोई वैकल्पिक दृष्टि पेश नहीं की है। उन्होंने मौजूदा सरकार की नीतियों और सत्तारूढ़ दल की राजनीति पर सवाल उठाए हैं, उसे कठघरे में खड़ा किया है, उसकी कमियां बताई हैं लेकिन यह नहीं बताया है कि इनके बरक्स उनकी नीति क्या होगी? मिसाल के तौर पर कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का केंद्रीय तत्व यह था कि राहुल गांधी ‘नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान लगा रहे हैं’। इस सूत्र वाक्य का ठोस या मूर्त रूप क्या होगा? इस बारे में राहुल गांधी को बताना होगा। अगर उनको और उनकी पार्टी को लग रहा है कि केंद्र सरकार और भाजपा की राज्य सरकारें समाज में विभाजन करा रही हैं और नफरत फैला रही हैं, तो उसे रोकने या उसे बदलने के लिए उनके पास क्या योजना है?

क्या सरकार में आने के बाद राहुल गांधी लव जिहाद रोकने के नाम पर बन रहे कानूनों को बदलने की पहल करेंगे? क्या तीन तलाक को अपराध बनाने वाले कानून को उनकी सरकार बदलेगी? क्या स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पर पाबंदी लगाने जैसे मुद्दों पर उनकी सरकार भाजपा से अलग स्टैंड लेगी और कानून बनाएगी? क्या कांग्रेस की सरकार बनी तो वह काशी से लेकर मथुरा तक धर्मस्थलों को लेकर चल रहे विवाद को यथास्थिति बनाए रखने के पुराने कानून के आधार पर सुलझाएगी? ये सारे ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर कांग्रेस और राहुल को स्पष्ट और ठोस स्टैंड लेना होग। लेकिन मुश्किल यह है कि ये ऐसे संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दे हैं, जिन पर स्टैंड लेना कांग्रेस के लिए नुकसानदेह भी हो सकता है। अगर राहुल इन मसलों पर अलग राय रखते हैं तो उससे बहुसंख्यक हिंदू समाज की भावनाएं आहत हो सकती हैं और उससे भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण और मजबूत हो सकता है। हो सकता है कि इससे राहुल गांधी की धर्मनिरपेक्ष नेता की छवि मजबूत हो लेकिन चुनाव जीतना मुश्किल हो सकता है। तभी ऐसा लग रह है कि धार्मिक मसलों पर ठोस वैकल्पिक दृष्टि पेश करने की बजाय कांग्रेस अमूर्त जुमलों से ही काम चलाएगी।

यही स्थिति आर्थिक मसलों पर भी है। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा से लेकर संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा तक में केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों की जम कर आलोचना की है। उन्होंने सरकार पर क्रोनी कैपिटलिज्म को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी के जरिए सरकार ने छोटे छोटे कारोबारियों की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी है। अगर राहुल गांधी चाहते हैं कि मौजूदा केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों का शिकार होकर कंगाल या परेशान हुए करोड़ों लोग उन पर यकीन करें तो उन्हें वैकल्पिक आर्थिक दृष्टि रखनी होगी। उनको विस्तार से आर्थिक नीति का खाका पेश करना होगा और बताना होगा कि नोटबंदी से तबाह हुए लोगों, कारोबारियों और विस्थापित हुए लाखों लोगों के लिए वे क्या कर सकते हैं? नोटबंदी का फैसला बदल कर पुराने नोट बहाल नहीं किए जा सकते हैं क्योंकि वो खत्म हो गए हैं। फिर भी अगर राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार में आती है तो लोगों को राहत देने के लिए क्या करेगी, यह बताना होगा। इसी तरह जीएसटी का वैकल्पिक मॉडल क्या है? क्या कांग्रेस सरकार में आती है तो वह सारे स्लैब हटा कर या एक या दो स्लैब का जीएसटी रखेगी? क्या जीएसटी की दरों में कमी की जाएगी? क्या पेट्रोलियम और शराब को जीएसटी में लाने की पहल की जाएगी? अगर ऐसी कोई दृष्टि उनके पास है तो कांग्रेस की राज्य सरकारें क्यों नहीं इस दिशा में कोई पहल कर रही हैं या जीएसटी कौंसिल की बैठक में यह मुद्दा उठा रही हैं?

इसी तरह क्रोनी कैपिटलिज्म के मसले पर राहुल की क्या वैकल्पिक दृष्टि है? मौजूदा सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे राहुल गांधी क्या कह सकते हैं कि उनकी सरकार आएगी तो अदानी समूह को दिए गए सारे ठेके रद्द कर देगी? क्या अदानी समूह को 50 साल के लिए जो हवाईअड्डे दिए गए हैं उनकी लीज कैंसिल कर दी जाएगी? क्या उनकी सरकार निजीकरण का पहिया उलटा घुमाएगी? वे केंद्र की मौजूदा सरकार पर सब कुछ बेच देने का आरोप लगा रहे हैं तो क्या इस सरकार ने जो सरकारी संपत्ति बेची है, उनका फिर से राष्ट्रीयकरण कर दिया जाएगा? क्या जिन बैंकों का दूसरे बैंकों में विलय हो गया है, उन्हें समाप्त किया जाएगा? बैंकों ने जो दुनिया भर के यूजर चार्ज लगाए हैं उन्हें हटा दिया जाएगा? सड़कों से लेकर जितनी सरकारी संपत्तियों का मौद्रीकरण कर उनसे कमाई की जा रही है, उसे रोक दिया जाएगा? सड़कों पर चलने के लिए लोगों को टोल टैक्स नहीं देने होंगे? सरकार की जिन नीतियों की वजह से महंगाई बढ़ी है उनमें राहुल की सरकार ऐसा क्या बदलाव करेगी कि महंगाई कम हो जाएगी? क्या उनके पास कोई ऐसी योजना है, जिससे एक डॉलर की कीमत कम होकर वापस 60 रुपए की रेंज में आ जाएगी? क्या यह सही नहीं है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने भी विनिवेश को बढ़ावा दिया था, सरकारी कंपनियों को बेचा था, सरकारी संपत्तियों का मौद्रीकरण किया था, सरकार के दखल से दर्जनों कारोबारियों को मनमाने ठेके दिए गए थे और बैंकों से कर्ज दिलाया गया था, जिसमें से ज्यादातर कर्ज डूब गया?

धार्मिक आधार पर समाज में विद्वेष फैलाने और आर्थिक आधार पर देश के लोगों को कंगाल करके चंद लोगों को आगे बढ़ाने के आरोपों के अलावा राहुल गांधी की यात्रा और उनकी पिछले छह महीने की राजनीति का तीसरा मुख्य बिंदु यह था कि सरकार केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है और विपक्ष को परेशान किया जा रहा है। साथ ही मीडिया की आवाज भी दबाई जा रही है। इस आलोचना को सही मानें तब भी सवाल है कि राहुल के पास क्या वैकल्पिक योजना है और क्या उनकी सरकार थी तब ऐसा नहीं होता था? डिग्री का थोड़ा बहुत फर्क हो सकता है लेकिन कांग्रेस की सरकार के समय भी केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग होता था और तभी सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता कहा था। यूपीए सरकार के समय के वित्त मंत्रियों ने कितने ही नेताओं के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई की थी और सूचना व प्रसारण मंत्रालय में बुला कर मीडिया समूह के लोगों को धमकाने की कहानियां भी पत्रकार जानते हैं। राहुल को संकल्प लेकर कहना चाहिए उनकी सरकार बनी तो ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होगी।

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By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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