शकील अख़्तर
राहुल ने वाजपेयी की समाधि पर जाकर भाजपाके सबसे बड़े नेता की याद सबको दिला दी।
यात्रा के बीच में जब यात्रा उम्मीद से भी ज्यादा सफल हो रहीहै तब राहुल का अचानक चीन पर बोलना कांग्रेसियों को ज्यादा पसंद नहीं आया।
राहुल की यात्रा का प्रभाव यह पड़ा कि अब सवाल उठने लगे हैं। मंगलवार को संसद में भारी रोष था। सरकार को जवाब देना पड़ा।
समाज में तारिक मंसूर, आरिफ मोहम्मद खान और ओवेसी जैसे लोग कई पैदा होंगे। मगर उनके मुकाबले के लिए आधुनिक शिक्षा के जरिए नए युवा पैदा करना होंगे।
मध्य प्रदेश के कांग्रेसी नेता पूरी ताकत लगाए हुए हैं कि सरकार नहीं बने। जनता की सारी शुभेच्छाएं निरर्थक हो जाएं।
यात्रा का वास्तविक लाभ तभी होगा जब संगठन मजबूत हो। पार्टी में ऐसे लोगों को काम करने का मौका मिले जो अपने लिए नहीं कांग्रेस के लिए काम करते हों।
ओवेसी के भक्त चाहें तो चीजों को समझकर अपने नेता पर दबाव बना सकते हैं कि वे भाजपा की मदद करना बंद करें।
सोनिया ने जिस दिन वह बिल पास करवाया दक्षिणपंथी और प्रतिगामी लोग घबरा गए। वह एक ऐसी क्रान्ति थी कि अगर हो जाती तो भारत के यथास्थितिवाद चरित्र को एक झटके से बदल देती
खिलाडियों की निलामी की तरह नेताओं की बोली, लेने-देने की सुविधा होती तो भाजपा अब तक सरदार पटेल, सुभाषचन्द्र बोस और लाल बहादुर शास्त्री को अपनी टीम में ले चुकी होती।
मोदी जी के बाद केजरीवाल जिस धार्मिक पिच पर देश को ले जा रहे हैं। वहां क्या होगा कहना मुश्किल है।
चुनाव हो गया। कांग्रेस को आज नया अध्यक्ष मिल जाएगा। दो दशक से ज्यादॉ समय के बाद सोनिया गांधी अब पूर्णत: कार्यमुक्त होने जा रही हैं।
अखिलेश और रामगोपाल यादव द्वारा सख्ती से अमर सिंह को विदा करने के बाद मुलायम सिंह के समझ में आया कि उन्हें कितना नुकसान हो चुका है। मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
सब जानते हुए भी एक बार कोई यह नहीं कहेगा कि कांग्रेस के चुनाव दूसरी सभी पार्टियों से अलग, उचित तौर तरीके से होते हैं या हो रहे हैं।
दिग्विजय ने मध्यप्रदेश में दस साल अपनी सरकार चलाने के दौरान वहां सभी पार्टियों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रखे।
एक बैठक में राहुल ने कहा था कि हमेशा दक्षिण से उत्तर या उत्तर से दक्षिण की ही बात क्यों की जाती है? पूर्व से पश्चिम की क्यों नहीं? एक यात्रा ऐसी भी निकलना चाहिए।