• नीचे जाने की होड़!

    न्याय मांगने वाले समुदायों की सोच का दायरा ऐसा सिमट गया है कि वे आरक्षण की मांग से ज्यादा फिलहाल सोच नहीं पा रहे हैं। नतीजा यह है कि राजनीतिक दलों के लिए जातीय कार्ड खेलना आसान हो गया है। झारखंड और पश्चिम बंगाल में कुर्मी समुदाय के लोग खुद को अनुसूचित जन-जाति (एसटी) श्रेणी में शामिल कराने की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं। इस समुदाय के लोग अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हुए थे, लेकिन बुधवार को कलकत्ता हाई कोर्ट ने इसे गैर-कानूनी और असंवैधानिक करार दिया। इसके बाद समुदाय ने धरना तो हटा लिया, लेकिन उन्होंने अलग-अलग जगहों पर...

  • बारीक कूटनीति का वक्त

    यह वक्त बारीक कूटनीति का है। ‘मर्दाना’ विदेश नीति का नैरेटिव घरेलू समर्थक वर्ग के लिए ठीक हो सकता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सचमुच इस रुख को अपनाना हानिकारक होगा। कनाडा के भारत पर लगाए आरोपों के बाद अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन की जो प्रतिक्रिया आई है, उसे गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है। इन तीनों देशों ने कनाडा के इस रुख में स्वर मिलाया है कि खालिस्तानी उग्रवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की जांच में भारत को कनाडा से पूरा सहयोग करना चाहिए। उधर इन देशों के मीडिया में कथित खालिस्तान आंदोलन का हौव्वा खड़ा किया...

  • सवाल सॉफ्ट पॉवर का

    जस्टिन ट्रुडो ने जो कहा, उसका अर्थ है कि भारत सरकार दूसरे देशों के जमीन पर अवैध कार्यों को प्रायोजित करती है। स्पष्टतः ऐसे आरोप को कोई देश बर्दाश्त नहीं कर सकता। बहरहाल, इस प्रकरण से कई गंभीर मुद्दे जुड़े हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने भारत पर बेहद गंभीर आरोप लगाने का निर्णय इस मौके पर क्यों लिया, इस बारे में बाकी दुनिया सिर्फ कयास लगाने की स्थिति में ही है। उनके इस आरोप से सारी दुनिया चौंक गई है कि ‘भारत सरकार की एजेंसियों ने’ कनाडा की जमीन पर एक कनाडाई नागरिक की हत्या की। ट्रुडो ने...

  • 2024 में क्यों नहीं?

    महिला आरक्षण के साथ कुछ बड़े सवाल भी जुड़े हुए हैं। जाहिरा तौर पर यह कदम जड़ पर मौजूद समस्या को नजरअंदाज कर फुनगियों को सजा लेने की सोच का संकेत है। महिलाएं राजनीति में कम संख्या में हैं, तो उसकी वजहें समाज में मौजूद हैं। नरेंद्र मोदी सरकार ने विधायिकाओं में महिला आरक्षण के लिए विधेयक कई अगर और मगर के साथ पेश किया है। जाहिर है, शुरुआत में इस बिल को लाने के बारे में आई खबर से पैदा हुआ उत्साह इन शर्तों को देखने के बाद ठंडा हो गया। कहा गया है कि महिला आरक्षण का प्रावधान...

  • भवन और भावना

    घूम-फिर कर सवाल यही सामने है कि क्या नए संसद भवन में दोनों पक्ष नई- यानी संसदीय परंपरा की अनिवार्य शर्त बताई जाने वाली- भावना भी दिखाएंगे? उन्होंने ऐसा किया, तभी यह परिवर्तन ऐतिहासिक बन पाएगा। लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों ने संसद के नए भवन में जाने से पहले पुराने भवन से जुड़ी स्मृतियों को याद किया। नेतृत्व खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया, जिन्होंने इस मौके पर अनपेक्षित भावना का प्रदर्शन करते हुए जवाहर लाल नेहरू के ऐतिहासिक ‘स्ट्रोक ऑफ द मिडनाइड’ भाषण को याद किया और साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा भी अन्य पूर्व प्रधानमंत्रियों...

  • जांच की जरूरत है

    खबर है कि अवैध तरीके से पोलैंड के रास्ते अमेरिका और यूरोप के दूसरे देशों तक जाने वालों में भारत के लोग भी शामिल हैं। आरोप तो यहां तक लगा है कि भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों की मिलीभगत से यह घोटाला चल रहा था। हालांकि विवाद अंतरराष्ट्रीय है, लेकिन इसमें कथित रूप से भारतीय नागरिक भी शामिल या इससे प्रभावित बताए जाते हैं, इसलिए इस पर भारत सरकार को अवश्य ध्यान देना चाहिए। खबर है कि अवैध तरीके से पोलैंड के रास्ते अमेरिका और यूरोप के दूसरे देशों तक जाने वालों में भारत के लोग भी शामिल हैं। आरोप...

  • सरकारी खाते में गड़बड़झाला

    लोकतंत्र में वित्तीय उत्तरदायित्व सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पहलुओं में एक माना जाता है। लेकिन ‘क्वालिटी ऑफ एकाउंट्स एंड फाइनेंशियल रिपोर्टिंग प्रैक्टिसेज’ नाम की सीएजी की 27 पेज की रिपोर्ट में बताया गया है कि इस उत्तरदायित्व की गुजरे वर्षों में खुलेआम धज्जियां उड़ाई गई हैँ। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की एक रिपोर्ट में सरकारी खातों में चल रहे जिस गड़बड़झाले पर रोशनी डाली है, उसकी अगर जवाबदेही तय की जाए, तो पूरी केंद्र सरकार कठघरे में खड़ी नजर आएगी। लेकिन यह आज के माहौल पर एक कड़ी टिप्पणी है कि यह रिपोर्ट सीएजी ने पिछले महीने सौंपी थी, जबकि उसकी...

  • गारंटियों का चुनावी दांव

    प्रश्न यह है कि प्रत्यक्ष लाभ देने के बाद क्या राजकोष में इतना धन बचेगा, जिसका निवेश मानव विकास के दूरगामी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए किया जा सके? आज की सियासी होड़ में ऐसे सवाल हाशिये पर धकेल दिए गए हैं। कांग्रेस ने हैदराबाद में हुई अपनी कार्यसमिति की बैठक के तुरंत बाद तेलंगाना विधानसभा चुनाव के लिए अपने अभियान की औपचारिक शुरुआत कर दी। हाल की अपनी चुनावी रणनीति के तहत पार्टी ने तेलंगाना के मतदाताओं के सामने छह गारंटियों का वादा रखा। चूंकि ऐसा वादा कर्नाटक में कामयाब रहा था और पार्टी ने सत्ता में आते...

  • सतर्कता की जरूरत है

    कोविड-19 के दौरान जैसी अफरातफरी से इस देश को गुजरना पड़ा था, उसके बाद किसी भी ऐसे खतरे को हलके से नहीं लिया जा सकता। इसलिए निपाह संक्रमण से निपटने की तैयारी की समीक्षा के लिए केंद्र को तुरंत पहल करनी चाहिए। निपाह वायरस का संक्रमण हालांकि अभी महामारी नहीं बना है, लेकिन जिस तरह संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आने वाले लोगों की संख्या बढ़ने की खबर आ रही है, उसे देखते हुए उचित यही होगा कि सारे देश में सतर्कता बरती जाए। अभी खबर सिर्फ केरल के कोझिकोड जिले से आई है। मगर डॉक्टरों ने ध्यान दिलाया है...

  • निशाना प्यादों पर क्यों?

    इंडिया ने नफरती एंकर कहा है, वे अगर वर्षों से ऐसा कार्य कथित रूप से करते रहे हैं, तो क्या इसके लिए सिर्फ वे व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार हैं? या ऐसा करने का मंच उन्हें मीडिया घराने ने उपलब्ध कराया है? लोकतंत्र में आदर्श स्थिति तो यही होगी कि मीडिया को स्वतंत्र ढंग से काम करने का मौका मिले। पत्रकारों को खबरों की अंदर तक पड़ताल करने और सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर बैठे लोगों से हमेशा निर्भय होकर सवाल करने के अवसर मिलें, यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के सफल संचालन की अनिवार्य शर्त है। इसीलिए पत्रकारों और मीडिया घरानों को...

  • ये हाल बना लिया!

    यूरोपीय संघ के देश रूसी तेल नहीं खरीदते हैं, लेकिन वे वह डीजल खरीदते हैं, जो इस रूसी तेल को कहीं और रिफाइन करने के बाद प्राप्त होता है। इससे ईयू के प्रतिबंध नाकाम होते हैं। यूरोपीय देशों ने यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस के खिलाफ सख्त प्रतिबंध लगाने की कार्रवाई भावावेश में की या अमेरिकी दबाव में- इस बारे में कयास लगाने की पूरी गुंजाईश है। लेकिन यह बात अब लगभग साफ हो गई है कि इस कदम के पीछे रणनीतिक सोच का अभाव था। इसका ऩतीजा यह हुआ है कि यूरोप की समृद्धि खतरे में पड़...

  • मुट्ठी पूरी खुल गई?

    अभी तक लोगों का ध्यान इस पर ही लगा है कि क्या सरकार विशेष सत्र में कोई और बड़ा चौंकाने वाला कदम भी उठाएगी, इसलिए आशंका है कि निर्वाचन आयुक्तों से संबंधी विधेयक बिना पूरी सार्वजनिक जांच-पड़ताल के ही कानून का रूप ले ले। जैसे केंद्र सरकार ने 18 सितंबर से संसद का विशेष सत्र बुलाने का एलान कर सबको चौंकाया था, वैसे ही उसने बुधवार देर रात सत्र का एजेंडा जारी कर लोगों को अटकलें लगाने की मानसिकता में डाल है। इसलिए कि जो अधिसूचना जारी की गई, उसे इंडिकेटिव (सूचक) एजेंडा कहा गया है। यानी उसमें यह गुंजाइश...

  • महंगाई से राहत नहीं

    भारत में आम लोगों को महंगाई से कोई राहत नहीं मिलने जा रही है। और अब आई ताजा खबर ने इस मोर्चे पर चिंता और बढ़ा दी है। खबर यह है कि रूस ने भारत को रियायती दर पर उवर्रकों की बिक्री रोक दी है। अगर मुद्रास्फीति दर में बहुत मामूली गिरावट भी आ जाए, तो अखबारी सुर्खियां उसे इस रूप में पेश करती हैं, जैसे अब महंगाई में वास्तविक गिरावट आने लगी है। जबकि उसका असल मतलब यह होता है कि गुजरे महीने या तिमाही में महंगाई बढ़ने की दर कुछ धीमी रही। मसलन, अगस्त के आंकड़ों में बताया...

  • लाचार है सुप्रीम कोर्ट?

    यह तो तय है कि न्याय व्यवस्था पैदा हुई इस खामी का नतीजा आम नागरिक को भुगतना पड़ रहा है। इससे आधुनिक न्याय के इस सिद्धांत का खुला उल्लंघन हो रहा है कि जेल अपवाद और बेल नियम होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर दुख जताया है कि उसके इस आदेश का हाई कोर्ट और निचली अदालतें पालन नहीं कर रहे हैं कि साधारण आरोपों में जेल में रखे गए व्यक्तियों की जमानत अर्जी का अपेक्षित से निपटारा नहीं कर रही हैं, जबकि सर्वोच्च न्यायालय इस संबंध में स्पष्ट निर्देश जारी कर चुका है। इसका नतीजा यह हो...

  • फुटबाल टीम ज्योतिष भरोसे?

    चूंकि ऐसी खबर पहली बार आई है, इसलिए फिलहाल इसने ध्यान खींचा है। खबर यह है कि एशिया कप फुटबॉल के क्वालीफाइंग मैचों के लिए टीम का चयन भारतीय टीम के कोच ने एक ज्योतिषी की सलाह पर किया। देश में जिस तरह के माहौल और सोच को प्रोत्साहित किया जा रहा है, उसके बीच यह होना ही है। चूंकि ऐसी खबर पहली बार आई है, इसलिए फिलहाल इसने ध्यान खींचा है। खबर यह है कि एशिया कप फुटबॉल के क्वालीफाइंग मैचों के लिए टीम का चयन भारतीय टीम के कोच ने एक ज्योतिषी की सलाह पर किया। इसके लिए...

  • करीब आए भारत और सऊदी

    सऊदी अरब ने गुजरे आठ महीनों में अमेरिका में अपना निवेश 41 प्रतिशत घटाया है। तो अब उसके सामने सवाल यह है कि अपना पैसा कहां लगाए। भारत में 100 बिलियन डॉलर निवेश करने के उसके एलान को इसी संदर्भ में देखा जाएगा। सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद-बिन-सलमान की भारत यात्रा से यह साफ हुआ है कि आर्थिक संबंध के क्षेत्र में विभिन्न देशों की बदलती प्राथमिकताओं के बीच भारत को अपने देश के लिए वे एक महत्त्वपूर्ण स्थल मान रहे हैं। सऊदी अरब उन देशों में है, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार बड़े मुनाफे की स्थिति में रहते हैं। जाहिर है,...

  • इरादा पूरा कैसे होगा?

    आईएमईसी की घोषणा के साथ प्रश्न उठा कि इसकी फंडिंग का सिस्टम क्या होगा, टेक्नोलॉजी और सामग्रियां कौन उपलब्ध कराएगा, परियोजनाओं पर अमल कौन-सी कंपनियां करेंगी और प्रोजेक्ट तैयार होने पर उनका प्रबंधन कौन करेगा? नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान एक महत्त्वपूर्ण पहल यह हुई कि  भारत से पश्चिम एशिया होते हुए पूर्वी यूरोप तक एक आर्थिक गलियारा बनाने का एलान हुआ। इसे इंडिया- मिडल ईस्ट- यूरोप कॉरिडोर (आईएमईसी) नाम दिया गया है। इरादा यह है कि इस पूरे क्षेत्र को जोड़ने के लिए रेल और जल मार्गों का विकास किया जाएगा। विभिन्न देशों के बीच बंदरगाहों...

  • चोरी चोरी- चुपके चुपके!

    पश्चिमी देशों के लिए मानव अधिकार जैसी बातें हमेशा विदेश नीति के मकसद साधने की औजार रही हैं। आज की बदलती भू-राजनीति और विश्व शक्ति संतुलन में भारत की जो हैसियत है, उसके बीच वे इस हथियार को चलाने में अनिच्छुक हैँ। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन नई दिल्ली में उन शर्तों के दायरे में रहे, जो भारत सरकार की तरफ से उन्हें बताया गया था। लेकिन जब वे वियतनाम पहुंचे, तो वहां बड़े गोलमोल अंदाज में बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत के दौरान ‘मानव अधिकारों के सम्मान और एक मजबूत एवं समृद्ध देश के निर्माण में...

  • हितों का मेल है

    बाइडेन और मोदी ने जून में वॉशिंगटन में दोनों के बीच हुए समझौतों के अमल पर प्रगति की समीक्षा की। सिर्फ ढाई महीनों के अंदर उन समझौतों पर अमल किस तेजी से आगे बढ़ा है, वह सचमुच ध्यान खींचने वाला है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई मुलाकात ने इस बात की पुष्टि की कि भारत और अमेरिका में आपसी हितों का मेल पुख्ता शक्ल ले चुका है। जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत आए बाइडेन और मोदी ने जून में वॉशिंगटन में दोनों के बीच हुए समझौतों के...

  • प्रतिष्ठा बच गई!

    यह स्पष्ट नहीं है कि भारत सरकार ने कैसे पश्चिमी देशों को पलक झपकाने और अपने घोषित रुख से पीछे हटने के लिए राजी किया। लेकिन ऐसा वास्तव में हुआ। यह दुनिया के बदलते समीकरणों की एक झलक है। जी-20 के नई दिल्ली शिखर सम्मेलन में साझा घोषणापत्र का जारी होना जाना निश्चित रूप से एक बड़ी कामयाबी है। इसे भारत की एक विशेष कूटनीतिक सफलता भी कहा जा सकता है। यह सफलता इसलिए अधिक महत्त्वपूर्ण मालूम पड़ती है, क्योंकि एक दिन पहले तक घोषणापत्र पर आम सहमति बनने की न्यूनतम संभावना नजर आती थी। शिखर सम्मेलन से पहले भारत...

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