nayaindia buxar ganga sound pollution दिल्ली से अधिक प्रदूषित बिहार का बक्सर
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दिल्ली से अधिक प्रदूषित बिहार का बक्सर

ByNI Desk,
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बक्सर। शादी ब्याह, मुण्डन, तिलक आदि में बक्सर (buxar) ज़िला मुख्यालय में ध्वनि प्रदूषण (sound pollution) का स्तर जानलेवा होते जा रहा है। बक्सर शहर में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए मैरिज हाल भी हर मुहल्ले में मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। मोक्षदायिनी मां गंगा (ganga) के पावन तट पर सालोभर आयोजन चाहे वह मुंडन संस्कार का तनाव ही क्यों न हो पूरे शहर में तनाव पैदा कर रहा है। शहर में सड़कों पर वाहनों का शोर मचा ही है और मुहल्लों में हर आयोजन में कानफोड़ू ध्वनि विस्तारक यंत्रों की शोर फिर हर मंदिरों में आये दिन अखंड हरिकीर्तन आदि भी समस्या बढ़ा दिये हैं।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अनिल त्रिवेदी अम्बेडकर चौक पर सपरिवार रहते है लेकिन पास के मैरेज हाल की कानफोड़ू आवाज से दिनभर परेशान रहते हैं। शहर में लोग आधीरात को ही बारात गाजे बाजे के साथ लगा रहे हैं और उसका नतीजा यह होता हैं कि पूरा मुहल्ला आधी रात तक जागरण करता हैं और उसपर भी फूहड़ द्विअर्थी भोजपुरी गाने पर कर्कश आवाज के बीच लोग नाच कूद करते हैं।

शिवपुरी मुहल्ले के कौशलेंद्र ओझा के पड़ोस में पिछले एक हफ्ते से एक बच्चे के मुंडन संस्कार के पहले से ही बकायदा माइक लगाकर देर रात तक मुहल्ले वालों को गीत सुनाया जा रहा है, 3 मार्च को मुंडन संस्कार है और चार मार्च को उसी मुंडन संस्कार के उपलक्ष्य में अभी 24 घंटे का अखंड हरिकीर्तन भी है।

श्री ओझा बताते है कि पूरे मुहल्ले के स्कूल जाने वाले बच्चों की वार्षिक परीक्षा चल रही हैं और घर आने पर कानफोड़ू गीत फिर सोते समय तक गीत फिर सुबह उठकर स्कूल जाने की जद्दोजहद है। न पढ़ाई हो रही हैं और न ही नींद ही लग रही हैं।
पूरे शहर में ध्वनि प्रदूषण का अराजक स्थिति है। सरकारी स्तर पर इसका कोई निदान नहीं है। वैसे भी इस शहर की आबोहवा दिल्ली से ज्यादा प्रदूषित है।

भूजल पीने लायक नहीं है और जानलेवा बीमारी का कारण आर्सेनिक से घुला हैं और उसपर ध्वनि प्रदूषण लोगों को जीना दूभर कर दिया है। पांच जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाया जाता है। पर्यावरण को हो रहे नुकसान के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को सचेत करने और पर्यावरण क्षरण को रोकने के लिए लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से संकल्पित एक खास दिन। पर कितना अपवाद है न कि एक तरफ हम औद्योगीकरण और शहरीकरण को बढ़ावा देने के लिए स्वयं ‘हर पल’ पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं और लोगों से उम्मीद करते हैं कि संरक्षण का सारा जिम्मा वह ही अपने कंधों पर लें। यह उसी तरह की बात हुई कि सभी चाहते हैं कि बच्चे भगत सिंह जैसे पराक्रमी और जांबाज हों, पर खुद के बच्चे को भगत सिंह बनाने से डरते हैं।

खैर, पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, यह हमारे स्वास्थ्य और भविष्य के लिए बड़ी चुनौतियों का कारण है, ये करना चाहिए, वो नहीं करना चाहिए, ऐसी किताबी बातें हम सभी बचपन से ही सुनते आ रहे हैं। बचपन से सुनते आने का एक मतलब यह भी है कि अगर आप औसत 30 साल के हैं तो आपकी याददाश्त में करीब 25 साल पहले से पर्यावरण को हो रहे नुकसान की बात तो होगी ही। मसलन पर्यावरण को हो रहा नुकसान वर्षों से चला आ रहा है, जिस पर किसी खास दिन चर्चा करके, मामले को अगले साल तक के लिए फिर से टाल दिया जाता है, पर असलियत यही है कि इसपर सख्ती से कदम कभी उठाए ही नहीं गए।

जब भी बात पर्यावरण के दोहन की आती है, तो स्वाभाविक रूप से हमारा ध्यान सिर्फ प्रदूषित वायु तक ही पहुंच पाता है। पर क्या पर्यावरण का नुकसान सिर्फ वायु प्रदूषण तक ही सीमित है? नहीं, वायु प्रदूषण गंभीर विषय जरूर है, पर इसके पैरलल मृदा, जल और ध्वनि का बढ़ता प्रदूषण भी काफी चिंताजनक है।
चलिए मान लिया कि मृदा, जल के प्रदूषण से पर्यावरण को नुकसान होता है, पर ध्वनि? आखिर यह कैसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है? हमारी सेहत के लिए ध्वनि प्रदूषण कितना खतरनाक है? विश्व पर्यावरण दिवस पर इस लेख का केंद्र बिंदु यही विषय है। संभवत: वह विषय जो है तो काफी गंभीर, पर इसपर शायद ही कभी गंभीरता से चर्चा की गई हो?

वायुमंडलीय प्रदूषण एकमात्र प्रदूषण नहीं है जो पृथ्वी पर जीवित प्राणियों को नुकसान पहुंचा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार बढ़ता ध्वनि प्रदूषण भी स्वास्थ्य के लिए सबसे खतरनाक पर्यावरणीय खतरों में से एक है। यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी (ईईए) के अनुसार, ध्वनि प्रदूषण के कारण अकेले यूरोप में हर साल 16,600 से अधिक लोगों की समय से पहले मृत्यु हो जाती है और 72,000 से अधिक को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ती है।

ध्वनि प्रदूषण इतना खतरनाक कैसे
आखिर ध्वनि प्रदूषण इतना खतरनाक कैसे है? यह जानलेवा कैसे हो सकता है? आइए इस संबंध में हर छोटी से बड़ी आवश्यक बातों को समझते हैं। पहले समझिए ध्वनि प्रदूषण क्या है? शादी ब्याह, धार्मिक आयोजनों, रैलियों आदि में कान फाड़ती लाउड स्पीकर्स-साउंड की आवाज से होने वाला प्रदूषण ध्वनि प्रदूषण है। वैसे यह परिभाषा 5वीं कक्षा में पढ़ रहा बच्चा भी जानता है, पर यहां जरूरत सिर्फ जानने की नहीं इसके दुष्प्रभावों को समझने की भी है। आमतौर पर लगातार तीव्र आवाज के संपर्क में रहना शरीर को ध्वनि प्रदूषण से होने वाले नुकसान को संदर्भित करता है। तो क्या हर लाउडस्पीकर ध्वनि प्रदूषण कर रहा है?
इस संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अध्ययनों के आधार पर एक मानक निर्धारित किया है, जिससे अधिक की आवाज स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक मानी जाती है।

डब्ल्यूएचओ कहता है 70 डेसिबल (डीबी, यह ध्वनि का मानक है) की आवाज हमारे लिए सहनीय है, इसके संपर्क में भले ही कितनी देर तक रहते हैं, इससे नुकसान नहीं होता है। 70 डेसिबल की आवाज वाशिंग मशीन, कूलर जैसे उपकरणों की होती है। हालांकि 85 डीबी से अधिक के शोर में 8 घंटे से अधिक का एक्सपोजर खतरनाक हो सकता है। यह मिक्सर या यातायात की आवाज के बराबर है। वहीं यदि यह मानक लगातार 90-100 के बीच बना हुआ है तो इसे गंभीर माना जाता है। शादियों में बजने वाले डीजे की आवाज 100 डीबी से भी अधिक होती है।
ध्वनि की प्रबलता उसके दबाव के स्तर से निर्धारित होती है। यह जितना ऊंचा होता है, आवाज उतनी ही तेज होती है। ध्वनि दाब का स्तर डेसीबल (dB) में मापा जाता है। अध्ययनों से पता चलता है कि हमारे कान सामान्य तौर पर 70-80 डीबी के लिए ही सहनशील हैं।

ध्वनि प्रदूषण से पर्यावरण को हानि?
ध्वनि प्रदूषण के मानकों के आधार पर तो खतरा समझ आता है कि यह कानों के लिए सहनीय नहीं है, पर यह पर्यावरण के लिए कैसे हानिकारक है? इस संबंध में संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित राष्ट्रीय उद्यान सेवा (एनपीएस) की रिपोर्ट कहती है, ध्वनि प्रदूषण स्वास्थ्य के साथ पर्यावरण के लिए भी गंभीर रूप से नुकसानदायक है। इससे इंसान ही नहीं वन्यजीवों को भी गंभीर नुकसान हो है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ध्वनि प्रदूषण, जानवरों के प्रजनन चक्र और पालन-पोषण तक में बाधा डाल रही है जिसके कारण कुछ प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा तक बढ़ा गया है। ध्वनि प्रदूषण के कारण वन्य जीवन काफी प्रभावित हुआ है, लिहाजा पूरा चक्र गड़बड़ा गया।

अब आइए इससे सीधे पेड़-पौधों को होने वाले नुकसान के बारे में जानते हैं। इसे समझने के लिए अमेरिका स्थित बोइस स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने साल 2013 में जंगल में इलेक्ट्रॉनिक स्पीकर रखकर इसके तेज आवाज से पेड़-पौधों और वन्यजीवों को होने वाले नुकसान के बारे में जानने की कोशिश की। चार दिनों तक टीम ने नकली ट्रैफिक शोर बजाते हुए पांचवें दिन इसके परिणामों का विश्लेषण किया। शोधकर्ताओं ने पाया कि शोर की अवधि के दौरान उस क्षेत्र में आराम करने के लिए रुकने वाले पक्षियों की संख्या में एक-चौथाई से अधिक की गिरावट आई है।

नतीजतन देखा गया कि पक्षियों और वन्यजीवों के बढ़े पलायन ने परागण आधारित पौधों के विकास में कमी ला दी। एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि अधिक ध्वनि के कारण कई पौधों का परिदृश्य बदल रहा है, उनका विकास भी प्रभावित हो रहा है।
इस आधार पर शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर ध्वनि प्रदूषण लंबे समय तक बना रहता है तो कई पेड़ों की प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर आ सकती हैं। पेड़ों की कमी किस तरह से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है, यह आपसे बेहतर कौन जानता होगा?

दैनिक जीवन में ध्वनि प्रदूषण
वन्यजीवन पर होने वाले दुष्प्रभाव के बाद अब बड़ा विषय यह समझना है कि हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में ध्वनि प्रदूषण कितना खतरनाक और इसके स्रोत क्या हैं? कार, बस से लेकर विमान जैसे यातायात साधन की आवाज़ें, निर्माण में ड्रिलिंग या अन्य भारी मशीनरी का उपयोग और उत्साह के नाम पर बजाए जाने वाले तेज आवाज वाले लाउडस्पीकर तक, सभी ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत में लाउडस्पीकर की आवाज लंबे समय से राजनीतिक विषय भी रही है, पर अगर इससे ऊपर उठकर होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में विचार करें तो इसकी तेज आवाज पर रोक लगाना बेहतर स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए अति आवश्यक है। सऊदी अरब ने मई 2021 में धार्मिक आयोजनों के लिए लाउडस्पीकर की आवाज को एक तिहाई तक सीमित करने के लिए एक निर्देश जारी किया था। इंडोनेशिया ने भी आवाज को कम रखने के लिए निर्देश दिए हैं।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ध्वनि प्रदूषण को गंभीरता से लेते हुए (2005) 5 एससीसी 733 (पृष्ठ 782) आदेश जारी करते हुए कहा कि लाउडस्पीकर की आवाज 75 डीबी से कम रखी जानी चाहिए। सार्वजनिक आपात स्थिति को छोड़कर रात में (रात के 10.00 बजे से सुबह 6 बजे के बीच) किसी ध्वनि एम्पलीफायर का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। लाउडस्पीकर के अलावा संगीत सुनने के लिए प्रयोग में लाए जा रहे हेडफोन्स और ईयरबड्स 85 से 110 डेसिबल तक ध्वनि उत्सर्जित कर सकते हैं। इंजन के आकार के आधार पर मोटरसाइकिलों से 73-77 डीबी और कार से 82 डीबी तक ध्वनि होता है। मसलन घर से लेकर बाहर तक हर जगह ध्वनि प्रदूषण गंभीर खतरा बना हुआ है।

अब इसके स्वास्थ्य दुष्प्रभावों को जानिए?
ध्वनि प्रदूषण से सेहत को होने वाले दुष्प्रभावों की एक लंबी श्रृंखला है। बहरेपन से लेकर रक्तचाप बढ़ाने, हृदय रोग और गंभीर स्थितियों में यह मृत्यु का भी कारण बन सकता है। साल 2018 के समीक्षा अध्ययन के अनुसार,ध्वनि प्रदूषण रक्तचाप बढ़ा सकता है। लंबे समय तक शोर के संपर्क में रहने से हृदय रोगों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। हृदय रोग दुनियाभर में मृत्यु के प्रमुख कारकों में से एक हैं। इसी तरह साल 2018 में कनाडा में हुए एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि ध्वनि प्रदूषण प्रीक्लेम्पसिया की समस्या को बढ़ा सकता है। प्रीक्लेम्पसिया, एक ऐसी स्थिति जो गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप का कारण बनती है। इससे गर्भवती और शिशु दोनों के लिए खतरा हो सकता है।

देश के भविष्य पर खतरा
साल 2018 में अध्ययनों की समीक्षा में वैज्ञानिकों ने पाया कि बड़ी संख्या में बच्चे ध्वनि प्रदूषण के कारण बहरेपन का शिकार होते जा रहे हैं, वो बच्चे जिनसे देश का भविष्य आस लगाए बैठा है। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि दिन में अक्सर करीब 8 घंटे शोर के लगातार संपर्क में रहने से बच्चों में स्थायी बहरेपन का जोखिम बढ़ सकता है।
इसी तरह द इंडियन जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक्स में शोधकर्ताओं ने बताया कि ध्वनि प्रदूषण भ्रूण, शैशवावस्था और किशोरावस्था सहित विकास की आयु वाले बच्चों में कानों की समस्या का कारण बन सकता है। ज्यादा तेज आवाज बच्चों के सीखने की क्षमता को कम कर सकती है।

शिशुओं पर असर
ध्वनि प्रदूषण गर्भावस्था की जटिलताओं का भी कारण बनता है। अधिक शोर के संपर्क में रहने से गर्भवती की नींद प्रभावित होती है। यह हार्मोनल असंतुलन के कारण अंतःस्रावी तंत्र के माध्यम से भ्रूण के विकास को भी प्रभावित कर सकती है। ऐसे बच्चों में तंत्रिका और मस्तिष्क से संबंधित समस्याओं का खतरा अधिक होता है।

मानसिक स्वास्थ्य पर असर
ध्वनि प्रदूषण, शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की सेहत के लिए हानिकारक है। मस्तिष्क हमेशा खतरे के संकेतों के लिए ध्वनियों की निगरानी करता रहा है, यहां तक कि नींद के दौरान भी यह प्रक्रिया जारी रहती है। नतीजतन, शोर बढ़ने के कारण दिमाग हमेशा हाइपरएक्टिव मोड में रहता है जिससे मस्तिष्क को आराम नहीं मिल पाता। यह चिंता या तनाव को ट्रिगर कर सकती है। अध्ययन बताते हैं कि ध्वनि प्रदूषण के निरंतर संपर्क के कारण तनाव के प्रति व्यक्ति की संवेदनशीलता बढ़ जाती है।

इस जानलेवा खतरे को कम कैसे किया जाए?
विशेषज्ञों की मानें तो पर्यावरण संरक्षण की बात करते समय हमें इसके सभी आयामों और प्रदूषण कारकों को लेकर सतर्क रहना चाहिए। ध्वनि प्रदूषण इस संबंध में गंभीर विषय है, जिसपर इतनी ही गंभीरता से विचार करने और इसके रोकथाम के उपाय करने की आवश्यकता है। सभी शोर मचाने वाले कारकों का अधिकतम ध्वनि मानक तय करके इसकी गंभीरता से निगरानी की जानी चाहिए। पुराने उपकरण, वाहन और अन्य सामानों को अपग्रेड करने या बदलने पर विचार करने की आवश्यकता है।
सरकार के साथ व्यक्तिगत स्तर पर भी सभी लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी के निर्वहन को लेकर गंभीरता दिखानी होगी। सेहत को खतरे को ध्यान में रखते हुए खुद से लाउडस्पीकर-साउंड की आवाज को कम रखें, ‘आंटी पुलिस बुला लेगी’ का इंतजार न करें। साउंडप्रूफिंग सिस्टम को बढ़ावा दिया जाए साथ ही इससे बचाव के व्यक्तिगत तौर पर उपाय करते रहना आवश्यक है।

ध्यान रहे, पर्यावरण और प्रदूषण के लिए सरकारों पर ठीकरा फोड़ने से पहले हमें खुद की गतिविधियों और ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा देने में स्वयं के योगदान पर विचार करना आवश्यक है। पर्यावरण और सेहत दोनों को सुरक्षित रखना, हमारी-आपकी, हम सबकी जिम्मेदारी है। तो अगली बार से आयोजनों में जब भी डीजे-लाउडस्पीकर की आवाज तेज हो, तुरंत इसके व्यापक दुष्प्रभावों को याद कर लीजिएगा। (वार्ता)

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