दिल्ली

..दंगों पर आप की चुप्पी का मतलब

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..दंगों पर आप की चुप्पी का मतलब
दिल्ली के तीनों निगम एक हो गए और परिसीमन के नाम पर निगम के चुनाव भी टल गए लेकिन इससे भाजपा क्या खोती और क्या पाती है निगम चुनाव में सवाल यही है। राजधानी में पिछले दिनों हुए फ़साद के बाद भाजपा ने ध्रुवीकरण का खेल शुरू किया है लेकिन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल चुप्प हैं। जहांगीरपुरी में हुए खून-ख़राबे के बाद से निगम चुनाव की गेंद केजरीवाल के पाले से निकल कर भाजपा के पाले में जाती भाजपाई देख रहे हैं। लेकिन जिस तरह आप पार्टी ने दिल्ली के घरों में ख़ासतौर से जहांगीर पुरी जैसी बस्तियों में घुसपैठ की हुई है उससे आप की ताक़त इस फ़साद के बाद भी कम होती नहीं देखी जा रही है। यह अलग बात है कि मुख्यमंत्री होते हुए भी केजरीवाल इतने बड़े मुद्दे पर भी चुप्पी साधे हुए हैं पर पार्टी के नेता तो इस चुप्पी में ही अपना फ़ायदा देख रहे हैं। Aap silence on riots तभी केजरीवाल पहले से ही भाजपा ललकारने सी भाषा में भाजपा को यह कह कर चुनौती दे रहे हैं कि हिम्मत है तो समय पर चुनाव कराओ, या फिर यह कि भाजपा तो निगम चुनाव पहले हार चुकी है। आने वाले चुनावों में माना जा रहा है कि भाजपा मुस्लिम और रोहिंग्या का मुद्दा बनाने की तैयारी में है। लेकिन केजरीवाल इस मुद्दे पर भी दिल्ली पुलिस उनके पास नहीं होने की बजह से चुप हैं या फिर यह भी उनकी चुनावी रणनीति का ही हिस्सा है ये तो वे ही जानें पर कहा तो जा रहा है कि मामला ठंडा होने बाद वे न सिर्फ़ इन बस्तियों का फिर से दौरा कर वोटरों को रिझाएँगे बल्कि यह भी समझा कर पासा पलटने की कोशिश करेंगे कि आख़िर इन दंगों में ज़्यादातर मुस्लिमों के खिलाफ ही मामले क्यों सामने आ रहे हैं ? Read also क्या ऐसे सुधरेंगे न्यूज चैनल? चर्चायें यह भी है कि इस मामले को लेकर आप पार्टी में एक टीम तैयार की है जो इन दंगे-फ़साद का शाखा तैयार कर रही है जिस पार्टी के बड़े नेता चुनाव से पहले दिल्ली के लोगों को बताएँगे। भला होता कि जिन केजरीवाल को दिल्ली ने 70 में से 67 सीटें देकर दिल्ली की गद्दी पर बैठाया था उसके हक़ में कम से कम कुछ तो बोला होता। और ख़ासतौर से तब जबकि दिल्ली में निपटी कांग्रेस के नेता और सीबीएम की नेता ब्रंदा करात जैसे नेताओं ने मौक़े पर पहुँच कर लोगों की तकलीफ़ को जाना। पर दावा अगर दिल्ली का बेटा होने का कर रहे हैं अपने केजरीवाल तो डर भी कैसे होगा।
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