दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास पर तोड़फोड़ या फिर फ़साद करने में दबोचे गए भाजपाईयों का सार्वजनिक सम्मान कर भाजपा क्या संदेश देना चाहती है यह तो भाजपा ही जाने लेकिन दिल्ली में राजनैतिक ज़मीन तैयार करने में लगी भाजपा ऐसी हरकतों से कुछ हासिल कर पाएगी इसकी उम्मीद तो विरोधी तो विरोधी पार्टी के लोगों को भी नहीं हैं। इंतहा देखिए कि जेल से ज़मानत पर छूटने के बाद पहले इन फसादियों को प्रदेश मुख्यालय में महिमा मंडित किया गया और फिर युवा मोर्चा की तरफ़ से। एक तरफ़ फसादियों को सम्मानित किया जा रहा था तो दूसरी ओर एक पूर्व केंद्रीय मंत्री के शिष्य को पुलिस उठाने की मशक़्क़त में लगी थी।
यूँ अपने ये नेताजी पूर्व मेयर भी रहे हैं पर मर्दानगी के चलते मैदान में आ डटे थे पर पुलिस पीछे लगी तो नेताजी को मंत्री जी ही याद आए। खैर ज़मानत मिल गयी तो लाज बची वरना तो आज अंदर ही पसीने छूट रहे होते । अब भले लोग कह रहे हों कि एक तरफ़ आका विकास की बात कर रहे हैं तो दूसरी ओर प्रदेश अध्यक्ष अपने चेले -चपाटों को तोड़फोड़ या फ़साद की सलाह। तो अध्यक्ष जी की बला से। चलो फ़साद तो हो गया पर लोगों के ज़ेहन में पैदा हो रहे इन सवालों का जबाब कौन देगा। कि क्या भाजपा इस तरह दिल्ली में वापिसी कर लेगी, या फिर अध्यक्ष कोई चुनाव जीत पा सकेंगे ?
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और तो और ऐसा तब जबकि अध्यक्ष दिल्ली में राजेंद्र नगर विधानसभा का उप चुनाव लड़ने के मूड में बताए जा रहे हों। अब प्रदेश अध्यक्ष ने तो अपना पांसा फेंक लिया पर लोग तो तो केजरीवाल के सामने उन्हें फुँका हुआ कारतूस से ज़्यादा मानने को तैयार ही नहीं दिखते। अध्यक्ष जी अपने इस खेल से खुद को कितना बड़ा खिलाड़ी मान रहे होंगे यह अलग बात रही पर कार्यक्रम से जिस तरह दिल्ली के वरिष्ठ नेताओं ने दूरी बनाई उससे तो उनका अनुभव ही ज़ाहिर होता है। भला हो अपनी भाजपा का कि अगर आलाकमान दिल्ली में केजरीवाल या फिर झाड़ू का विकल्प तलाश ही रही है तो कम से कम पहले दिल्ली भाजपा की ऐसी टीम पर भी विचार कर लेती। वरना तो भाजपा का इस दिल्ली में कितने समय का बनवास बाक़ी है दिल्ली ही बताएगी।
दिल्ली भाजपा में बहादुरों का सम्मान !
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