मध्य प्रदेश

‘अरूण प्रसंग’ एक सुखद अनुभव

ByNayaindia Desk,
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‘अरूण प्रसंग’ एक सुखद अनुभव
भोपाल। सामान्य तौर पर हिन्दी रंगमंच में ऐसी परंपरा नहीं है कि किसी रंगकर्मी के रंगकर्म में लम्बी सक्रियता को उत्सव के रूप में मनाया जाये। जबलपुर की विवेचना रंगमंडल ने ऐसा आयोजन किया और पिछले दिनों अपनी वरिष्ठ रंग निदेषक अरूण पांडे के रंग मंचीय जीवन के 50 बरस पूरा होने को सेलिब्रेट किया। इस पांच दिवसीय आयोजन में अरूण पांडे के रंग मंचीय अवदान के साथ ही उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर गंभीर चर्चायें हुई और नाट्य तथा रंग संगीत की प्रस्तुतियां भी हुई। aroon prasang ek sukhad anubhav अरूण पांडे 70 के दषक में इलाहाबाद से आकर जबलपुर में बस गये। पत्रकार के रूप में अपनी पारी शुरू करते हुए रंगकर्म करने लगे। कुछ समय बाद उन्होंने पत्रकारिता छोड़ पूर्णकालिक रूप से रंगकर्म में रम गये। अभिनय से शुरू कर निर्देषक बनने तक उन्होंने एक ऐसा लंबा सफर तय किया कि नाट्य लेखन, नाट्य रूपांतरण, मेकअप, संगीत, कास्ट्यूम आदि रंगमंच की सभी विधाओं में विषेषज्ञता बना ली। अपने 50 साल के रंग जीवन में अरूण ने सैकड़ो नाटक निदेषित किये जिनमें से बहुत कुछ राष्ट्रीय स्तर पर सराहे गये। देष भर में अनेक नाट्य समारोहों में अरूण द्वारा निर्देषित नाटकों की प्रस्तुतियां होती रही है। इनमें से कुछ नाटक तो ऐसे हैं जो अपने प्रदर्षन की सिल्वर जुबली मना रहे हैं। इन नाटकों ने अरूण को जबलपुर में रहते हुए ही देषभर में पहचान दी। अरूण ने रंगमंच की अपनी शैली विकसित की है, अपना रंग संगीत तैयार किया है जो औरों से अलग है। उसके नाटकों में नगरीय रंग है तो लोक भी समाया हुआ है। अरूण ने रंगमंच की कोई औपचारिक षिक्षा नहीं ली, फिर भी अपने आप में रंगमंच के स्कूल बन चले हैं। अरूण ने रंगकर्मियों की एक पूरी पीढ़ी तैयार की है जो आप रंगमंच में ही नहीं टीवी सीरियल व फिल्मों में भी बेहतर काम कर रहे हैं। हालांकि इसे मैं उन रंगकर्मियों की कामयाबी के रूप में रेखांकित नहीं करता जिन्होंने रंगमंच छोड़कर टीवी और फिल्मों का दामन थाम लिया। अच्छा होता कि वे रंगमंच में सक्रिय रहकर उसे ही समृद्ध करते और अपनी कामयाबी का झंडा रंगमंच में गाड़ते जैसा अरूण पांडे करते रहे हैं। विवेचना रंगमंडल पिछले तीन दषकों से हर साल नाट्य समारोह आयोजित करता रहा है जिसमें देष के ख्यातनाम रंग निदेषकों के नाटकों की प्रस्तुतियां होती रही है। कुछ साल पहले विवेचना के दोस्तों से मेरा आग्रह था कि अरूण पांडे और विवेचना द्वारा प्रस्तुत किये गये नाटकों का समारोह होना चाहिए। अब विवेचना के 60 बरस और अरूण पांडे के रंगकर्म के 50 साल पूरा होने पर ’अरूण प्रसंग’ के रूप में समारोह आयोजित हुआ जिसे हिन्दी रंगमंच में नई परंपरा के रूप में देखा जाना चाहिए। अरूण प्रसंग की शुरूआत विख्यात लेखक तथा विवेचना के जनक ज्ञानरंजन द्वारा अरूण पर वक्तव्य से होती है जो अपने आप में इस आयोजन को सार्थक बनाता है। इसके बाद सुयोग पाठक और उनके साथियों ने हिन्दी के वरिष्ठ कवियों की कविताओं पर प्रभावी रंग संगीत की प्रस्तुति दी। सुयोग ने अपने रंग संगीत की शुरूआत अरूण पांडे के निदेषन में किया और अरूण के कई नाटकों का संगीत उसने तैयार किया। रंग संगीत के प्रति अरूण की समझ और शैली को सुयोग की प्रस्तुतियों में देखा गया। रंगकर्म में 50 बरस तक निरंतर सक्रिय रहने वाले अरूण पांडे अकेले नहीं हैं लगभग हर शहर में ऐसे रंगकर्मी अभी भी रंगमंच में सक्रिय है जो 4-5-6 दषकों से रंगमंच कर रहे हैं। अरूण पांडे अपनी नाट्य शैली के साथ अपनी अप्रतिय उर्जा के लिये इनमें थोड़ा अलग दिखते हैं। रंग मंच करते रहने की तमाम झंझावतों को झेलते हुए भी उनमें रंगमंच को लेकर कहीं थकान, उब या षिथिलता नजर नहीं आती बल्कि निरंतर नये-नये नाटकों को रचने में वे पूरी सक्रियता से जुटे रहे हैं। अरूण और विवेचना से मेरा रिष्ता भी लगभग उतना ही पुराना है जितना अरूण का रंग मंचीय जीवन। संभवतः 73-74 की बात है, जब हम लोग रायपुर में नाट्य समारोह आयोजित कर रहे थे। मैं इस संबंध में मार्गदर्षन लेने जबलपुर ज्ञान भैया (ज्ञानरंजन जी) के पास आया। उन्होंने विवेचना का नाटक समारोह के लिये भिजवाया और तब से विवेचना से जुड़ाव बना रहा। विवेचना एक विचार के साथ काम काने वाली संस्था है। बीच में इसके दो भाग हो जाने के बाद अरूण व अन्य साथी मूल विवेचना के साथ बने रहे जिसका नाम विवेचना रंगमंडल हो गया। अरूण और मैं लगभग एक साथ पत्रकारिता व रंगमंच में आये। कुछ साल बाद अरूण पत्रकारिता से रंगमंच में आ गये तो मैं रंगमंच से पत्रकारिता में चला गया ज्ञान भैया के कारण विवेचना से मेरा दिली लगाव रहा जिसे अरूण, नवीन, आषुतोष व अन्य साथियों के स्नेह के कारण और गहराता गया। इसीलिये अरूण प्रसंग मेरे लिये एक आत्मीय आयोजन बन गया था। एक दिन नवीन का फोन आया कि वह कार्यक्रम को अंतिम स्वरूप देने के लिये ज्ञान भैया के पास जा रहा है तो मन खुषी से मर गया कि पिछले 50-55 साल से नौजवानों को ज्ञान भैया का सक्रिय मार्गदर्षन लगातार मिल रहा है। पांच दिवसीय इस आयोजन के दौरान दिन मंे अरूण पांडे की कहानियां कवितायें, नाटक तथा पत्रकारिता पर चर्चायें होती रही तो शाम को उनके निदेषन में पहले से मंचित नाटकों का मंचन हुआ। लोकषैली में रचे बसे नाटक ’हंसा उड़ चला देख विराने’ तथा हरिषंकर परसाई के व्यंग्य पर आधारित नाटक ’निठल्ले की डायरी’ जो तीन दषक से मंचित हो रहा है, उनका अरूण प्रसंग में पुनः मंचन पुरानी यादों को ताजा करने वाला था। समारोह में अरूण द्वारा निदेषित नाटक ’हानुष’ और कोर्ट मार्षल’ का भी मंचन किया गया जो एक तरह से विवेचना के अपने नाटकों का पुनरावलोकन की तरह था। इस समारोह में फिल्म जगत के मषहूर कला निदेषक जयंत देषमुख भी शामिल हुए जिन्होंने स्वीकारा कि उन्होंने अरूण का कोई भी नाटक नहीं देखा फिर भी वे अरूण के रंग योगदान के कायल हैं। जयंत की तरह और भी बहुत से कला प्रेमी हैं जिन्होंने अरूण के रंग को ठीक से नहीं देखा लेकिन वे भी अरूण की रंग यात्रा के प्रषंसक हैं। ऐसा अरूण के साथ ही हो सकता है कि अरूण के रंगकर्म की चर्चा भी लोगों को प्रभावित करती है। यही बात उसे औरों से अलग बनाता है। अरूण प्रसंग में हुई चर्चायें पूरी तरह अनौपचारिक और आत्मीय रही जिनमें पुराने दिनों की यादों का पिटारा खुल रहा था। यादें हमेषा खुषनुमा नहीं होती, खट्टी-मीठी होती हैं। इसीलिये ये चर्चायें किसी को आत्मुग्ध करने का सबब नहीं बनती, और इसने अरूण को भी आत्ममुग्ध नहीं किया। अरूण प्रसंग का आयोजन जब विवेचना के हर साल होने वाले राष्ट्रीय समारोह से अलग था। इस आयोजन को राष्ट्रीय स्वरूप दिया जा सकता था जिसमें अरूण को और उसके काम को जानने समझने वाले, अरूण को चाहने वाले तथा विवेचना से जुड़े देषभर के बहुत से लोग शरीक हो सकते थे लेकिन यह आयोजन आत्मीय होते हुए भी पूरी तरह से स्थानीय था। साधनों की अपनी सीमा होती है और इस सीमा में रहते हुए ही किसी रंग निदेषक की आधी सदी की रंगयात्रा पर आयोजित यह आयोजन हिन्दी रंगमंच के लिये एक सुखद शुरूआत मानी जायेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि अन्य शहरों में भी उन रंग निदेषकों पर केन्द्रित ऐसे ही आयोजन किये जायें जिन्हांेने अपने जीवन का लम्बा अरसा रंगमंच को समर्पित कर दिया और हिन्दी तथा अन्य भाषाओं के रंगमंच को समृद्ध किया। लेखक: गिरिजाशंकर
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