मध्य प्रदेश

बुलडोजर संस्क्रती के बाद अब पत्रकारों पर नंगई का हमला...!

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बुलडोजर संस्क्रती के बाद अब पत्रकारों पर नंगई का हमला...!
भोपाल। वैसे बुलडोजर अभियान की शुरुआत उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री भगवाधारी योगी जी की ईज़ाद थी। जिसके द्वारा तथाकथित दंगाइयों और माफिया लोगों को तुरंत न्याय देने की नियत थी। पर पत्रकारों को पुलिस द्वारा नंगा कर के सार्वजनिक परेड कराने की सीख यूपी पुलिस ने मध्य प्रदेश से सीखा है। सीधी जिले के पड़ोसी जिले में पत्रकारों और रंगकर्मियों को नंगा घुमाने की मिसाल तो मध्य प्रदेश पुलिस ने ही शुरू की हैं। buldozer politics madhya pradesh योगी आदित्यनाथ ने तो अपने सरकारी अमले को अधिकार दे दिया था कि बिना नोटिस और अदालती हुकुम के ही इमारतों को नेस्तनाबूद कर दिया जाये। बाद में एक खास वर्ग के लोगो पर संपत्ति हानि को वसूलने के लिए पूरी आबादी पर बिना अदालती कारवाई के जुर्माना वसूलने का भी हक़ दे दिया था ! वह तो भला हो हमारे सुप्रीम कोर्ट का कि उन्होंने इस जुर्माना लगाने और वसूलने पर कहा कि यहां सरकार ही आरोप लगा रही है और खुद ही जुर्म को साबित मान कर जुर्माना वसूल रही है ! तीनों काम सरकार कैसे कर सकती हैं ? उन्होंने योगी सरकार को हुकुम दिया कि वे वसूले गए जुर्माने को उन लोगों को वापस करे जिनसे लिया गया है। तब जिलों में सरकारी कारिंदो ने हड़बड़ी में जनता से वसूले गए जुर्माने की राशि वापस किया। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इस कारवाई को कानूनी तरीके से करने का भी हुकुम दिया। खैर योगी जी के फार्मूले को मध्यप्रदेश में भी खरगोन में रामनवमी के अवसर पर जुलूस पर पथराव लेकर लोगो की गिरफ्तारी भी हुई और कुछ के घरों को बुलडोज़ भी किया गया। खैर आनन -फानन में सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश पर एक ट्राइब्यूनल गठित करने का फैसला किया गया। जिसकी सदारत अवकाश प्राप्त जज होंगे। पर मध्य प्रदेश की पुलिस जिसे उत्तर प्रदेश के पुलिस के अमले के मुक़ाबले कानूनी कारवाई करने वाला माना जाता था - समझा जाता था, उसने पत्रकारों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। विंध्य के सीधी जिले के बगल की औद्योगिक नगरी में पुलिस ने कुछ रंगकर्मियों और चार पत्रकारों को सिर्फ इसलिए ना केवल प्रताडि़त किया कि वे एक बीजेपी विधायक के कारनामों को उजागर कर रहे थे जिससे एमएलए साहब नाराज़ थे। लिहाजा थाने की पुलिस ने अपना बार्बर रूप दिखाते हुए ना केवल उन्हें मारा -पीटा और खूब कुटा और उनकी सारेआम - सारे कपड़े उतार कर नंगा करके सिर्फ चड्डी में सड़क पर परेड कराई वरन थाने में भी थानेदार साहब के हुजूर में भी उसी हालत में पेश किया गया। इस वारदात का वीडियो जब वाइरल हुआ तब दूसरे दिन उस इलाके के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ने कहा की सुरक्षा के कारण हवालात में आरोपियों को इसी हालत में रखा जाता है कि कहीं वे कपड़ों से रस्सी बना कर फांसी ना लगा लें ! अब इन नौकरशाह को यह बताना चाहिए कि महिला आरोपियों के साथ भी क्या वे ऐसा ही व्यवहार कर सकते हैं ? पर इस पुलिस अफसर ने दुबारा इस मसले पर पूछे जाने पर अपने को दूर कर लिया। Supreme Court Jahangiripuri Bulldozer Read also राज्यपालों का काम फैसले रोकना नहीं खैर इस घटना पर मुख्य मंत्री शिवराज सिंह ने दोनों पुलिस थानेदारों को लाइन हाजिर किए जाने का आदेश दिया। पर क्या यह कारवाई उन दोनों थानेदारों और उस अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के कथन पर कोई कारवाई नहीं होनी चाहिए ? शायद कोई कारवाई होगी भी नहीं। पर इस बार उत्तर प्रदेश पुलिस पत्रकारों को नंगा घुमाने की सीख मध्यप्रदेश से ली हैं। कानपुर के एक लोकल चैनल के न्यूज़ के पत्रकार चन्दन जायसवाल को महाराजपुर थाने की पुलिस ने सारेआम सारे कपड़े उतरवा कर सार्वजनिक परेड कराई ! फिलहाल योगी जी की सरकार ने पुलिस की इस हरकत पर अभी तक कोई कारवाई नहीं की हैं। पर क्या हम कह सकते है कि हम एक लोकतान्त्रिक देश की व्ययस्था में रह रहे हैं ? क्या यही रूल ऑफ ला है ? अथवा यह राज्य अपने कारिंदों द्वारा अपने क्रूर और गैर कानूनी इरादों को अंजाम दे रहा हैं ? क्या इस प्रकार की घटनाओं से सरकार की बदनामी नहीं होती क्या राज्य का नेत्रत्व यही चाहता है कि उसके नागरिक भयभीत रहे और कानून से नहीं पुलिस से डरे ? सवाल महत्वपूर्ण है जिसका जवाब नागरिकों को खुद खोजना होगा। अगर लोकतन्त्र को जीवित रखना हैं तो कानून और नागरिक अधिकारों का सम्मान सभी को करना होगा चाहे वह सरकार का कोई अंग हो अथवा व्यक्ति हो।
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