पूरा यकीं है कि, इस खोजी खबर से, जोर का झटका, धीरे से नहीं, पूरे जोर से लगने वाला है, विधर्मी, कुतर्की लुटियन समूह को, जिनके फटाखे, बड़ी अदालतों के हुक्मरानों को धता बताते हुए, नए साल, चुनावी रैलियों, पाकिस्तान की हिन्दुस्तान पर जीत पर तो बिंदास फटते हैं, लेकिन हजारों हजार साल से ढाई सो करोड सनातनियों की आस्था के त्यौहार, प्रभु श्रीराम की विजय पर हानिकारक साबित कर दिए जाते हैं। firecrackers regulation festival Deepawali
कभी किसी ने सोचा कि, दीवाली के दूसरे दिन, मक्खी मच्छरों की संख्या एकदम कैसे कम हो जाती है? इसी की और व्याख्या करने और इसका कारण जानने हेतु कई संस्थाओं ने दीवाली के पहले और दीवाली के दूसरे दिन, वातावरण में मौजूद कीटाणुओं की संख्या जांचने का बीड़ा उठाया और परिणाम ?
चेन्नई में पंद्रह स्थानों से सेम्पल इकट्ठे किये और और इनके आंकड़े प्रकाशित किये, एस भुवनेश्वर, एस सुरेश, बी संपथ, के गौथम, एन श्रीप्रिया, उदयकुमार ने, यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेल्स और फ्लोरिडा की रिसर्च के जरिये।
और आँखे खोल देने वाले परिणाम सामने आये, फटाखों के खिलाफ अनर्गल कुप्रचार करने वालों, त्योहार में बच्चों की फुलझड़ी छीन लेने वालों पर कुठाराघात करने वाले!
दीवाली के तीन दिन पहले लिए गए सेम्पल्स और दीवाली के बाद लिए गए सेम्पल्स में, वातावरण में मौजूद बेक्टेरिया की संख्या में ५३.२३% की गिरावट देखी गई (An average of 1,904 ± 2.5 CFU/m3 of bacteria recorded prior Diwali was reduced by 53.23% on Diwali)
अब क्या कहेंगे, जनाब?
तो क्या इसका अर्थ यह माना जाए कि फटाखे चलाने दिए जाना चाहिए?
यक़ीनन हाँ! लेकिन कुछ सावधानियों के साथ, जैसे: लाखों करोड़ों लोगों को रोजगार देने वाले, आस्था और रौशनी के विजयपर्व को मनाने हेतु, घी या खाद्यतेल के दीप भरपूर जलाएं, जिनसे वातावरण शुद्ध होता है, लेकिन मोमबत्ती या हाइड्रोकार्बन्स छोड़ने वाले वेक्स और पेट्रो पदार्थ वाले कतई नहीं जलाएं!
सतह पर चलाये जाने वाले फटाखे, फुलझड़ी, अनार, कम आवाज वाले बम आदि हर्षोल्लास वाले फटाखे भरपूर चलाये जाने चाहिए, लेकिन पूरी सावधानी और आग लगने या जलने की संभावनाओं को धूमिल करने के सभी प्रयासों के साथ। परन्तु वातावरण की, ऊंचाई वाली जगह यानी आसमान में हवा में फटने वाले फटाखे, राकेट आदि पर रोक होनी चाहिए, कान फाड़ देने वाले, बेहद खतरनाक फटाखों बमों पर रोक होनी चाहिये, विषैले तत्व छोड़ने किसी भी तरह के फटाखों पर रोक होनी चाहिए।
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वैसे रोक तो सड़को पर उड़ती धूल, बहते सीवेज पर होना चाहिए, जगह जगह लगे कचरे के ढेर और उन्हें जलाने से वातावरण प्रदूषित करने वाली हरकतों पर होनी चाहिए, और अगर वातावरण के असली प्रदूषण कारणों पर ध्यान दिया जाए तो कचरा और पराली जलाने पर पूरी तरह से रोक लगे, करोड़ों बेजुबां जानवरों की त्यौहार के नाम होने वाली हत्या पर रोक लगे, जिनके सड़ते अंगों से हवा और पानी में सबसे ज्यादा संक्रमण फैलता है, पुरानी खटारा गाड़ियों से निकलते जहरीले धुंयें पर रोक लगे, और रोक लगे वातावरण के सबसे खतरनाक पॉलुशनकर्ता, एयरकंडीशनर्स पर ! पर हक़ीक़त भारत के पटाखा उद्योग को सुनियोजित तरीके से खतम किया जा रहा हैं, लाखों करोड़ों लोगों को बेरोजगारी और भुखमरी के लिए मजबूर किया जा रहा है ! इसी बीच चाइना का पटाखा उद्योग पूरी दुनिया में छा रहा है! यूँ भी SC ने साफ कहा है कि सिर्फ बेरियम साल्ट वाले पटाखों पर रोक है , सभी पटाखों पर नहीं! दिल्ली सरकार ने सभी पटाखों पर रोके लगाने का जो आर्डर किया है उसे वापस लिया जाना चाहिए! दिल्ली सरकार का आर्डर सुप्रीम कोर्ट के आर्डर की मूल भावना के ख़िलाफ़ हैं! लेकिन करोड़ों शांतप्रिय लोगों की आस्था के त्यौहार पर सियासत न हो, यह गाँधी नेहरू जिन्ना की विरासत थामे समूह को क्यूँकर स्वीकार होगा?
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