मध्य प्रदेश

क्या शिवराज के लिए अभयदान दे पाएंगे यह उपचुनाव

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क्या शिवराज के लिए अभयदान दे पाएंगे यह उपचुनाव
मध्य प्रदेश में खंडवा लाेकसभा और पृथ्वीपुर, जोबट व रैगांव विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव के वैसे तो कोई मायने नहीं है क्योंकि इन चारों सीटों पर जीत हार से सरकार के बनने बिगड़ने पर कोई खास असर पड़ने वाला नहीं है लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए ये उपचुनाव बहुत मायने रखते हैं। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है महत्वहीन और मुद्दा विहीन इन उपचुनाव में शिवराज जी ने अपने आप को पूरी तरह झाेंक दिया है। madhya pradesh by election या कह सकते हैं यह उपचुनाव उन्होंने अपने सिर माथे ले लिया है। इस उपचुनाव में वे जिस तरह सक्रिय दिखे इससे भी साफ होता है कि ये चुनाव उनके लिए कुछ खास हैं। कुल जमा 4 सीटों के चुनाव में शिवराज जी ने 39 सभाएं कीं। 5 रातें गरीब, आदिवासियों के बीच गुजारीं। खटिया पर सो कर रात बिताई और इन दलित, पिछड़ी, उपेक्षित बहनों के हाथों से निर्मित स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ लिया। चौक चौराहों से लेकर चूल्हे तक बनाई पैठ निश्चित तौर पर यह शिवराज जी की अपनी स्टाइल है। चौक, चौराहों से लेकर से लेकर चूल्हे तक उनकी पहुंच है। इस चुनाव में महिलाओं के बीच चूल्हे के पास आलती-पालती बनाकर भोजन करते मुख्यमंत्री की तस्वीर भी सामने आई जो दर्शाती है कि देश की इस आधी आबादी से वे किस आत्मीयता और अपनेपन के साथ कनेक्ट करते हैं। वे गरीब और अमीर में कोई भेद नहीं करते। किसी का दुख- दर्द ठीक वैसे ही बांटते हैं जैसे एक परिवार का मुखिया बांटता है। अक्सर लोग उनमें अपना अक्स तलाशते हैं। लोगों के बीच वे मिश्री की तरह घुल जाते हैं। गजब का अपनापन है उनकी शख्सियत में। 15 साल सत्ता में रहने के बावजूद एंटी इनकंबेंसी उनके आसपास भी नहीं फटकती। जनता के बीच वे अपने आपको ऐसा समाहित कर लेते हैं कि लोगों को लगता ही नहीं है कि कोई मुख्यमंत्री आया हो। ऐसा लगता है जैसे कोई अपना अचानक घर आ गया हाे।

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madhya pradesh by election खंडवा और पृथ्वीपुर हैं खास: चारों चुनाव में खंडवा और पृथ्वीपुर एेसी सीटें हैं जिस पर लोगों की नजर है। खंडवा लोकसभा सीट वैसे तो भाजपा के सीट रही है और अभी तक की स्थिति में भाजपा कांग्रेस से कहीं आगे नजर आती है लेकिन कांग्रेस के नजरिए से भी यह सीट बहुत खास मानी जा रही है। वैसे तो कांग्रेस का इस सीट पर पार पाना मुश्किल ही लग रहा है लेकिन यदि कांग्रेस इस सीट पर जीतती है तो संभव है उसे सदन में नेता प्रतिपक्ष का पद मिल जाए। इसलिए यह कांग्रेस के लिए बहुत खास है लेकिन कांग्रेस में टिकट वितरण के पहले से ही पार्टी नेताओं में जिस तरह से मनमुटाव और टकराव देखने को मिला उससे ऐसा लगता नहीं है कि कांग्रेस के मंसूबे पूरे हो पाएंगे। वैसे भाजपा में भी इसी तरह की टकराहट है लेकिन मुख्यमंत्री के कुशल मैनेजमेंट ने यह टकराव दूर कर दिया है। वही पृथ्वीपुर विधानसभा सीट का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री ने यहां आधा दर्जन से ज्यादा चुनावी सभाएं की। इतनी चुनावी सभाएं तो वे खुद के क्षेत्र बुदनी में अपने लिए भी नहीं करते। वहां कार्यकर्ता ही उनके चुनाव का संचालन करते हैं लेकिन पृथ्वीपुर में मुख्यमंत्री का इतनी बार जाना यह बताता है कि यह सीट कितनी खास है। पृथ्वीपुर में लंबे समय से कांग्रेस का कब्जा रहा है। स्वर्गीय बृजेंद्र सिंह राठौर वहां से पांच बार विधायक रहे अब उनके पुत्र नितेंद्र सिंह मैदान में हैं। मुख्यमंत्री श्री चौहान का प्रयास है कि यहां भाजपा का सूखा समाप्त हो। इसलिए चारों सीटों में उन्होंने सबसे ज्यादा तवज्जो पृथ्वीपुर को ही दी है। वे बार-बार लोगों से अपील भी कर रहे हैं कि इस बार चूके तो 30 साल भूल जाओ। यानी पृथ्वीपुर में भाजपा की हालत खस्ता है लेकिन लेकिन मुख्यमंत्री की सक्रियता ने मुकाबला कांटे का कर दिया है। शुरू में कांग्रेस इस सीट पर एक तरफा जीत के प्रति आश्वस्त थी। लेकिन यहां मुकाबला पेचीदा हाे गया है। हालांकि सहानुभूति लहर नितेंद्र सिंह के पक्ष में है। यदि भाजपा इस सीट पर विजयी होती है तो इसका सारा श्रेय मुख्यमंत्री को जाएगा। मुख्यमंत्री जी की कोशिश उपचुनाव के इस पूरे मुकाबले को 4-0 से जीतने की है। इनमें केवल पृथ्वीपुर ही ऐसी सीटें जहां कांग्रेस पृथ्वी पर दिखाई दे रही है। वहीं रैगांव में बागरी परिवार ने भाजपा की बागड़ मिटाने की कोशिश तो की है लेकिन लगता नहीं कि वे इसमें सफल हो पाएंगे वहीं जोबट में जो पार्टी भितरघात और अंतरकलह से पार पा लेगी वह जीत जाएगी। मुख्यमंत्री के लिए यह चुनाव इसलिए खास हैं क्योंकि पिछले दिनों मध्य प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की खबरें बलवती हुई थीं। यदि यह उप चुनाव भाजपा 4 -0 से जीतती है तो इसका पूरा श्रेय मुख्यमंत्री को जाएगा और वे यह साबित करने की स्थिति में होंगे कि मध्यप्रदेश में अभी भी उनके मुकाबले का सर्वमान्य नेता पार्टी के पास नहीं है। हालांकि राजनीति में कब क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता, लेकिन फिलहाल तो मध्यप्रदेश में शिवराज जी का ही सिक्का चल रहा है। बिना उनके यहां पत्ता भी नहीं खड़कता। अब आने वाला समय ही बताएगा कि यह उपचुनाव मुख्यमंत्री के लिए अभयदान साबित होंगे या वाटरलू। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं) 
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