मध्य प्रदेश

उपचुनाव में बात चली निक्कर पहन के फूल खिलेगा...

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उपचुनाव में बात चली  निक्कर पहन के फूल खिलेगा...
भोपाल। हम भी निक्करधारी.. ट्विटर पर ट्रेंड हो रहा .. जब कमलनाथ और विष्णु दत्त यानी दो प्रदेश अध्यक्ष आमने-सामने तब उपचुनाव में बात निकली तो दूर तलक जा पहुंची.. तो सवाल क्या उपचुनाव में हां हम निक्करधारी.. से कमलनाथ की घेराबंदी मजबूत होगी और भाजपा का कमल का फूल खिलेगा.. या फिर दबंग कमलनाथ का दमोह पैटर्न भारी साबित होगा और भाजपा का कमल कुम्हला जाएगा.. कमलनाथ के 15 महीने और उसके बाद शिवराज के राज की उपलब्धियां और समस्या पर सवाल अभी तक चुनावी मुद्दा बन रहा था.. अचानक उपचुनाव में खंडवा के मंच से कमलनाथ की एंट्री उनके डायलॉग से ज्यादा उनका अंदाज ए बयां न सिर्फ विवाद खड़ा कर गया बल्कि प्रचार के एजेंडे को भी फिलहाल एक नई दिशा दे गया.. जिस सियासी मंच से कमलनाथ अपनी पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव का इसलिए सम्मान कर रहे थे.. उसकी वजह क्योंकि वह उनके मित्र रहे पूर्व उपमुख्यमंत्री सुभाष यादव के बेटे हैं.. या फिर खंडवा से कांग्रेस टिकट की दावेदारी को नजरअंदाज कर चुनाव ना लड़ने का व्यक्तिगत फैसला.. कांग्रेस को मजबूर कर देने वाले अरुण यादव कमलनाथ को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का तीसरा बेटा बता राजनीति में उनकी पकड़ और हैसियत बता कर वरिष्ठता का सम्मान ही नहीं करिश्माई व्यक्तित्व का गुणगान कर रहे थे.. उसी मंच से कमलनाथ जाने अनजाने कांग्रेस के उम्मीदवार का सही नाम लेने में भी चूक कर गए.. बल्कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का उपहास उड़ा एक नया बखेड़ा खड़ा कर गए.. कमलनाथ बोले उनका वह कौन.. कोई शर्मा करके.. अध्यक्ष.. जब इसने निक्कर पहना नहीं सीखी थी तब मैं सांसद था.. जवाब विष्णु दत्त शर्मा की ओर से भी आया..बीडी शर्मा बोले जिस निक्कर की बात कमलनाथ कर रहे उसे पहन कर सबसे बड़े सामाजिक संगठन आर एस एस के विचारों से ओतप्रोत हुआ और यहां तक पहुंचा.. कमलनाथ 60 वर्ष के हो चुके हैं .. शायद इसका प्रभाव है.. वो बीडी शर्मा को पहचानते या नहीं पहचानते ..इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ना ही मुझे उनके सर्टिफिकेट की आवश्यकता.. मेरे लिए यही काफी है कि मेरा कार्यकर्ता मुझे पहचानता.. भाजपा युवा मोर्चा ने कमलनाथ के बयान पर आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि वे मर्यादा भूलकर संस्कार विहीन हो गए हैं। उम्र के साथ इनकी यादाश्त भी कम हो गयी है क्योंकि ये मंच पर नेताओं के नाम भी भूल जाते हैं। ये वही कमलनाथ हैं जो महिलाओं पर गंदी टिप्पणी कर उन्हें सजावट का सामान बताते हैं। सड़क पर कांग्रेस के कार्यकर्ता भी विष्णु दत्त का पुतला लेकर नजर आए लेकिन पार्टी के ज्यादातर जिम्मेदार नेताओं ने इस पूरे मामले से दूरी बनाने में ही भलाई समझी.. यह पहला मौका नहीं है जब किसी नेता का विवादित बयान.. अटपटे बोल.. सामने आए किसी ने हास परिहास के दौरान तो किसी ने आक्रामक अंदाज में बयानों के जरिए हित हित साधे.. जहां तक बात भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णु सत्य शर्मा की है तो 28 उपचुनाव के दौरान भाजपा प्रदेश कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर कमलनाथ के ऊपर बड़ा व्यक्तिगत हमला भी बोला था तो कमलनाथ के इस विवादित बयान से पहले भी विष्णु दत्त ने कमलनाथ को भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए निशाने पर लिया था.. कुछ दिन पहले विष्णु दत्त और दिग्विजय सिंह के बीच तकरार चर्चा का विषय बनी थी.. कमलनाथ भी अपने ऐसे ही बयानों के कारण खूब चर्चा में रहे चाहे फिर उसे नालायक मित्र या फिर उपचुनाव के दौरान ही अपने मंत्रिमंडल के सदस्य रही पर आइटम का कटाक्ष ही क्यों ना हो लेकिन बात आई गई हो गई लेकिन इस बार कमलनाथ के निक्कर के बयान को शायद भाजपा ने दिल पर ले लिया और उनके सहयोगी पार्टी नेता अपने अध्यक्ष का अपमान नहीं से पाए.. सवाल खड़ा होना लाजमी है क्या फिर इतना बवाल जो मचा तो क्या वह उपचुनाव की दिशा तय करेगा या फिर आप गंभीर नहीं बहुत हल्की जो अलग परिस्थितियों में कहीं गई इसलिए कोई ज्यादा महत्व नहीं रखती.. इस मुद्दे पर राजनीतिक विश्लेषकों किराए तो खबर नवीस भी अपने अंदाज में इसके मायने निकल रहे पहले बात कमलनाथ के बयान की तो निश्चित तौर पर देश के सबसे अनुभवी वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन की सच्चाई को सामने लाया लेकिन तुलना उन्होंने उस नौजवान प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त से की जिसने संघ का घाटी स्वयंसेवक और विद्यार्थी परिषद से निकलकर भाजपा की कमान संभाली विष्णु दत्त ने सक्रिय राजनीति से पहले न सिर्फ निक्कर पहनी बल्कि स्टूडेंट पॉलिटिक्स से लेकर सामाजिक सरोकार के मुद्दे पर सिर्फ कांग्रेस ही नहीं अपनी भाजपा सरकार को भी कई बार घेरा.. जो सवाल सिर्फ कमलनाथ जिन्होंने इसी मंच से अपनी ही पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तरुण यादव से पुराने विवादों को बलाए ताक रखते हुए पिता सुभाष यादव का हवाला देकर सम्मान से नवाजा तो फिर क्या उन्होंने जानबूझकर सोची समझी रणनीति के तहत विरोधी होने के कारण भाजपा प्रदेश अध्यक्ष माखौल उड़ाया या फिर जाने अनजाने समर्थकों की मौजूदगी में ना चाहते हुए भी वह ऐसा कुछ कह गए जिसका उन्हें अंदाजा ही नहीं था कि उपचुनाव में भाजपा इसे लपक सकती है.. सवाल यह भी क्या कमलनाथ उस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का नाम भूल गए या वाकई में नहीं पहचानते जिसके पार्टी की कमान संभालते ही कमलनाथ सरकार का तख्तापलट हो गया था भाजपा ने इस मुद्दे पर अनुभवी कमलनाथ की ढलती उम्र का हवाला देकर एक नया सवाल खड़ा कर दिया इस लाइन पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने भी सिर्फ 7 साल से ऊपर का हवाला दिया और एहसास दिलाया कि इस उम्र के बाद ज्यादा उम्मीद न रखें.. ना जाने नेता कब बहक जाएं.. इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा और कांग्रेस में कमलनाथ सबसे अनुभवी और शीर्षस्थ नेता है जिन्हें केंद्र की कई सरकार में काम करने का मौका मिला तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने.. सवाल मंच जरूर सियासी था और मौका उप चुनाव के प्रचार का लेकिन कमलनाथ क्या बड़प्पन दिखा सकते थे खासतौर से जब भाजपा के बाद कांग्रेस में भी नई पीढ़ी को सामने लाने की कवायद शुरू हो चुकी है.. ऐसे में अपने से बहुत कम उम्र के विष्णु दत्त पर कटाक्ष कहे या उनका उपहास पूरा कर बड़े नेता कमलनाथ को क्या हासिल हो गया.. सवाल सिर्फ भाजपा नेता कार्यकर्ता कि नहीं क्या कांग्रेस के दूसरी और नई पीढ़ी के नेताओं को अपने नेता का यह अंदाज रास आएगा.. क्योंकि आज नहीं तो कल विधानसभा 2023 ना सही 2024 लोकसभा तक तो कॉन्ग्रेस में बदलाव देखने को जरूर मिलेगा.. इन दिनों कांग्रेस के अंदर वैसे भी पुरानी पीढ़ी के नेता भले ही राहुल को निशाने पर लेने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते लेकिन यह सच है 16 अक्टूबर को बुलाई गई कांग्रेस वर्किंग कमेटी जिसके एजेंडे में संगठन चुनाव है उसका एजेंडा प्रियंका गांधी ने काफी हद तक बदल दिया है.. तो सवाल कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष क्या आने वाले समय में अपने से कम उम्र के राहुल गांधी यदि राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं तो उनकी टीम में हिस्सा बनना पसंद करेंगे.. चुनाव प्रचार अभी परवान नहीं चढ़ा.. मुद्दे भी कोई नए नहीं वही पुराने.. ऐसे में निक्कर पहन के फूल खिलेगा.. जी हां यह यक्ष प्रश्न खड़ा हो चुका है...सवाल इसलिए क्योंकि चार उपचुनाव में सरकार में रहते भाजपा की साख कसौटी पर है.. खंडवा जहां लोकसभा के लिए उपचुनाव हो रहा उसके चुनावी मंच से ही कमलनाथ का डायलॉग से ज्यादा उनका अंदाज चर्चा में है.... भाजपा के लिए फूल यानी कमल.. जिसे उपचुनाव में खिलाने के लिए भगवाधारी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं.... अचानक कांग्रेस के एक बयान ने बवाल मचा दिया तो भाजपाइयों में होड़ लग गई कि कौन ज्यादा संघ और उसकी विचारधारा के करीब है... कमलनाथ के तंज और उड़ाए गए उपहास को पहले तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने नजरअंदाज किया.. लेकिन फिर कार्यकर्ताओं के दबाव में वीडी शर्मा पलटवार के साथ सामने आए... इस बयान के थोड़ी देर पहले ही विष्णु दत्त कमलनाथ और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का गंभीर आरोप लगाया था.. निक्कर के बयान पर पलटवार भी किसी छोटे-मोटे नेता पर नहीं बल्कि प्रदेश ही नहीं देश के बड़े नेताओं में से एक.. जो भले ही कांग्रेस के भले प्रदेश अध्यक्ष हों लेकिन जिन्होंने लंबे राजनीतिक जीवन में केंद्र की कई सरकारों में बतौर मंत्री काम किया....जिनकी गिनती इंदिरा गांधी के तीसरे पुत्र के तौर पर होती रही और कई प्रधानमंत्री आए सरकार बदली और चली गई लेकिन नेहरू गांधी परिवार की कई पीढ़ियों से वो जुड़े रहे....जी हां वही कमलनाथ जिन्हें राहुल गांधी ने ज्योतिरादित्य को नाराज करके 2018 में मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी थी....वही कमलनाथ जिन्होंने 15 महीने बाद अपनी सरकार गवा दी... कमलनाथ सरकार के तख्तापलट प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रहते विष्णु दत्त की भूमिका किसी से छुपी नहीं शिवराज ने उन्हें शुभंकर बताया था ..उन्हीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को कमलनाथ में बमुश्किल पहचाना और पहचाना भी तो फिर उन्हें उनकी औकात याद दिला दी... इसी डायलॉग ने पहले मध्य प्रदेश भाजपा को सकते में डाला.. तो सन्नाटा कांग्रेस में भी पसर गया.. जब किसी वरिष्ठ नेता ने इस बयान पर न तो कमलनाथ का बचाव किया और ना ही इसका समर्थन किया .. नेता प्रतिपक्ष के सबसे बड़े दावेदारों में से एक गोविंद सिंह ने जरूर सवाल खड़ा करने वालों पर यह कहकर सवाल खड़ा किया कि इसमें गलत क्या है.. पहले दिन भाजपा नेता या तो समझ नहीं पाए या फिर विवाद को तूल नहीं देना चाहते थे लेकिन धीरे धीरे मामला गर्माया...खास तौर से दूसरे दिन जब विष्णु दत्त शर्मा ने निक्कर के बयान को गंभीरता से लेते हुए खुद को संघ का स्वयंसेवक बता एक नई लाइन खींच ली... उन्होंने ऐसा पलटवार किया कि समूचा भाजपा संगठन सोशल मीडिया से लेकर सड़क पर उतर गया....इस विवाद में शिवराज सरकार के संसदीय मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने अपने अंदाज में कमलनाथ को आईना दिखाने की कोशिश की तो प्रदेश मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पाराशर से लेकर पूर्व मीडिया प्रभारी और भाजपा प्रवक्ता डॉ हितेश वाजपेई, प्रदेश भाजपा मंत्री रजनीश अग्रवाल अपने प्रदेश अध्यक्ष के समर्थन में उतर आए.. अपने नेता की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए भाजपा युवा मोर्चा सड़क पर जब कमलनाथ का पुतला जला रहे थे.. तो कांग्रेस कहां चूकने वाली थी जवाब में कांग्रेसी भी विष्णु दत्त का पुतला लेकर अपनी भड़ास निकालने लगे....कार्यकर्ताओं और नेताओं से आगे दो सबसे बड़े राजनीतिक दल के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और विष्णु दत्त के बीच जोर आजमाइश कोई नई बात नहीं लेकिन पुरानी नई पीढ़ी के सबसे अनुभवी पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने शायद सोचा भी नहीं होगा कि उपचुनाव के दौरान नई पीढ़ी के विष्णु दत्त शर्मा से ज्यादा उनके समर्थक अपने अध्यक्ष का इसे अपमान मान कर दिल पर ले लेंगे....इस सियासी विवाद के साथ कुछ पुराने विवाद और बयान भी सामने आ जाएंगे...चाहे फिर विष्णु दत्त की पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से बढ़ती तकरार हो या फिर 28 उपचुनाव के दौरान कमलनाथ के पुराने चर्चित सियासी डायलॉग.. जब उनके निशाने पर इमरती देवी आ गई थी... मजेदार बात ये कि इसी मंच पर तमाम मतभेद के बावजूद अरुण यादव...कमलनाथ को इंदिरा गांधी का तीसरा बेटा बताकर सम्मान दे रहे थे...तो कमलनाथ ने भी इसी मंच पर स्व सुभाष यादव का जिक्र कर अरुण यादव के मान सम्मान में इजाफा किया ..तो सवाल यह कि जहां मान-सम्मान देने की तहजीब दिखाई जा रही थी...उसी मंच पर से सत्ताधारी दल के अध्यक्ष के लिए इस तरह का कमेंट क्या सही माना जाए....मौका उपचुनाव का जिसके परिणाम दोनों प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और विष्णु दत्त के लिए व्यक्तिगत तौर पर कुछ ज्यादा ही मायने रखते हैं...सवाल ऐसे में क्या दूसरे ज्वलंत मुद्दे पीछे छूट जाएंगे.. तो सवाल यह भी क्या समर्थकों में दोनों अध्यक्षों के बयान जोश भर उप चुनाव का माहौल ही बदल देंगे.. विवाद कोई मायने नहीं रखता उसे खत्म माना जाए या फिर दोनों इसे दिमाग में रखकर चुनाव परिणाम का इंतजार करेंगे.... सवाल उम्र अनुभव के मापदंड पर अपने विरोधी को को सम्मान ही नहीं पद की उपयोगिता के साथ उसकी प्रतिष्ठा और व्यक्ति विशेष की गरिमा को लेकर भी खड़े होते हैं कि आखिर राजनीति किस दिशा की ओर जा रही है....क्या कमलनाथ को बड़प्पन दिखाना चाहिए था या फिर विष्णु दत्त शर्मा को … ऐसे मुद्दे को नजरअंदाज करना चाहिए था......जिस खंडवा के मंच से कमलनाथ ने ये विवादित बयान दिया क्या इसकी गूंज पूरे प्रदेश में सुनाई देगी और क्या माहौल बदलेगा और यदि बदलेगा तो क्या वह उपचुनाव के परिणाम को प्रभावित कर सकता है.. मध्य प्रदेश में 2 सबसे बड़े राजनीतिक दलों के प्रदेश अध्यक्ष.. यानी अनुभवी पुरानी पीढ़ी के कमलनाथ और भाजपा का नया युवा तेजतर्रार चेहरा विष्णु दत्त आमने सामने.. जिसकी वजह एक विशेष माहौल और विवादित मुद्दे पर दोनों का अंदाज ए बयां और डायलॉग डिलीवरी.. क्या चुनावी मंच से कमलनाथ ने सोच-समझकर सत्ताधारी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का उपहास उड़ा कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कोशिश की या फिर विष्णु दत्त ने पलटवार लेकिन शालीनता के साथ सिर्फ जवाब नहीं बल्कि सोची समझी रणनीति के तहत अपने समर्थकों के साथ मतदाताओं को भी सोचने को मजबूर कर दिया.. चुनाव में कब कौन सी बात डायलॉग और जुमला.. माहौल बना दे या बिगाड़ दे कोई गारंटी नहीं ले सकता.. सवाल क्या इसे कमलनाथ का गुरूर या फिर पुरानी पीढ़ी के इस नेता का चिर परिचित अंदाज या फिर जुबान फिसल जाना ही माना जाए .. बात आई गई हो गई और इसे ज्यादा तूल देने की आवश्यकता नहीं ..तो सवाल विष्णु दत्त ने संघ की पहचान उसके स्वाभिमान और समर्पण से जोड़कर बड़ा सियासी दांव चल दिया है.. तो बड़ा सवाल क्या चार उपचुनाव में यह विवाद प्रचार को एक नई दिशा देगा.. या फिर इस विवादित मुद्दे की भी हवा निकल जाएगी..
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