भोपाल। कांग्रेस के कायाकल्प के लिए क्या पार्टी की कमान संभालेंगे कमलनाथ..! यह सवाल पांच राज्यों के चुनाव परिणाम ने जब कांग्रेस को आत्ममंथन के लिए मजबूर कर दिया तब नए सिरे से खड़ा हो गया.. लगातार कमजोर न सिर्फ कांग्रेस बल्कि भाजपा विरोधी गठबंधन यूपीए भी हुआ है .. एक बार फिर बड़ा झटका जब तमाम संभावनाओं को दरकिनार करते हुए चुनाव में कॉन्ग्रेस का सफाया हो गया.. कांग्रेस में पहले भी अंतर कलह सामने आ चुकी है ..तो छोटे और क्षेत्रीय दल पार्टी नेतृत्व को आंख दिखाते रहे.. इस बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी चली जाने के बावजूद कमलनाथ पार्टी हाईकमान की जरूरत बने रहे.. जो कभी भी विरोधी खेमे के साथ खड़े नजर नही आए..
कई राज्यों में जाने-माने नेताओं का लगातार पार्टी से मोहभंग होता रहा ... नेतृत्व की कार्यशैली पर बड़ा सवाल कांग्रेस के अंदर से फिर खड़ा किया गया.. वह भी इस बार मध्य प्रदेश से ... दो टूक बिना लाग लपेट के यह बात किसी और ने नहीं सांसद दिग्विजय सिंह के विधायक भाई लक्ष्मण सिंह ने कही.. जिनकी प्रतिक्रिया गौर करने लायक है.. उन्होंने सीधे बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कांग्रेस को दरबारियों ने डुबो दिया है …जब तक दरबारी रहेंगे कांग्रेस का हाल यही रहेगा .. लक्ष्मण कहते हैं कि कुछ फ़ैसले लेने पड़ेंगे
…दरबारियों से कांग्रेस नहीं चलेगी .. जो मेहनत कर रहे है उन्हें पूछा नहीं जा रहा है..कांग्रेस को हमें बूथ से मज़बूत करना पड़ेगा...समय लगेगा …एक दम कुछ नहीं होगा ..कठोर निर्णय लेने पड़ेंगे …दरबारियों से कहना पड़ेगा …प्रजातंत्र में दरबार नहीं लगता है.. जो मेहनत कर रहा है यूथ पर उसे आगे लाइए ..नतीजे अपने आप सामने आएँगे लक्ष्मण द्वारा समस्या सामने लाने के साथ दिए गए सुझाव के बावजूद यहीं पर सवाल खड़ा होता है.. कांग्रेस की इस हालत के लिए दरबारी जिम्मेदार तो वो कौन है.. किसका संरक्षण दरबारियों को प्राप्त है.. क्या नेतृत्व जिन हाथों में है..
उसकी क्षमता से ज्यादा दूरदर्शिता और नई सोच के अभाव में सवाल राजनीति के लिए जरूरी बदलाव की हिम्मत नहीं जुटा पाने को लेकर खड़े किए गए हैं... यह पहली बार नहीं है जब चिंता लक्ष्मण सिंह द्वारा व्यक्त की गई और उनके बयान ने एक नई बहस शुरू की.. लक्ष्मण सिंह की यह प्रतिक्रिया पांच राज्यों के चुनाव परिणाम और कांग्रेस के अंदर से सवाल खड़े कर रहे जीतू पटवारी और उमंग सिंगार के बाद सामने आई है ..यदि लक्ष्मण सिंह के निशाने पर हाईकमान और वह यदि असहाय साबित हो रहा..
तो फिर इसका विकल्प क्या है.. आखिर वह कौन सा फार्मूला है जो कांग्रेस को नई ताकत के साथ नई पहचान और नया सक्षम नेतृत्व दे सकता है... इस बीच कमलनाथ ने ट्वीट के जरिए कहा कि 5 राज्यों के आज सामने आए चुनाव परिणाम निश्चित तौर पर हमारी उम्मीद व अपेक्षा के विपरीत है.. लेकिन लोकतंत्र में जनता का निर्णय सर्वोपरि होता है.. हम इस जनादेश को स्वीकार करते हैं.. हमारा नेतृत्व इन परिणामों की समीक्षा करेगा ...मंथन करेगा और हम देखेंगे कमी कहां रह गई.. प्रदेश अध्यक्ष रहते कमलनाथ कि इस चिंता गलती दुरुस्त करने के साथ समीक्षा के लिए मंथन की आवश्यकता जताई गई है..इसमें कोई दो राय नहीं पंजाब का फार्मूला फ्लॉप साबित हुआ..
न सिर्फ सरकार चली गई बल्कि कई दिग्गज नेता चुनाव हार गए.. जो राहुल गांधी के हस्तक्षेप से सामने आया फार्मूला जीत के लिए फिट नहीं हो पाया.. सरकार में रहते कांग्रेस को सत्ता से बेदखल यहां भाजपा ने नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी ने दी है.. जिसने पहले ही दिल्ली में सरकार बनाकर कांग्रेस को दौड़ से पहले ही बाहर कर दिया था... उत्तर प्रदेश में तमाम कोशिशों के बावजूद प्रियंका गांधी की मेहनत रंग नहीं लाई..उत्तराखंड और गोवा की संभावनाएं धूमिल हुई तो मणिपुर में भी निराशा हाथ लगी..
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटोनी द्वारा राजनीति से सन्यास लेने की पेशकश सामने आ चुकी है.. जिसमें पुरानी पीढ़ी के नेताओं के लिए भी संदेश जरूर छुपा है.. क्या एंटोनी की तरह बुजुर्ग आदमी नेता अब चुनावी राजनीति से दूरी बनाएंगे.. जिससे राहुल गांधी को नई टीम बनाने के लिए फ्री हैंड मिल सके.. या फिर चुनावी राजनीति से दूरी और संगठन के लिए समर्पित नेताओं की जरूरत संगठन को महसूस होगी.. कांग्रेस में कई बड़े नेताओं का राज्यसभा से कार्यकाल खत्म होने वाला है.. इनमें से कई को नई सीट की दरकार है तो कई ऐसे भी जिनका नई संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस से मोह भंग हो सकता है..
G23 से जुड़े नेताओं की अभी तक कोई चौंकाने वाली फिलहाल त्वरित प्रतिक्रिया सामने नही आई है.. राहुल गांधी ने जरूर ट्वीट कर जनादेश का सम्मान कर उसे स्वीकार किया.. जिम्मेदारी का राहुल द्वारा एहसास कराने के बावजूद सवाल क्या राहुल गांधी अपनी लड़ाई सैद्धांतिक तौर पर क्या जारी रखेंगे ..तो क्या जिन सिद्धांतों और जिम्मेदारी का अहसास दिलाते हुए उन्होंने लोकसभा चुनाव के बाद इस्तीफा दे दिया था ..क्या अब जब पार्टी के अंदर संगठन चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है उनकी वापसी होगी...
फिलहाल जब भाजपा कांग्रेस से ज्यादा राहुल प्रियंका के फ्लॉप होने को बड़ा मुद्दा बना रहे.. तब क्या कांग्रेस में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बीच कोई सीधी चुनौती देने का मन बना सकता है.. जबकि नई चुनौती के तौर पर गुजरात हिमाचल प्रदेश और उससे आगे मध्य प्रदेश राजस्थान छत्तीसगढ़ के चुनाव सामने होंगे.. क्या कांग्रेस के अंदर नए फार्मूले नए नेतृत्व की तलाश शुरू होगी.. तो क्या इसमें पुरानी पीढ़ी के कमलनाथ कहीं फिट नजर आएंगे .. जिनका नाम पहले ही कार्यवाहक राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर चर्चा में रहा... पंजाब में अमरिंदर सिंह जैसे वरिष्ठ नेता को हटा देने के बाद जो दुर्गति पंजाब में कांग्रेस की हुई क्या उसे ध्यान में रखते हुए राज्यों की सरकार और संगठन की कमान पुरानी पीढ़ी के नेताओं से वापसी का साहस अब हाईकमान जुटा पायेगा...
चाहे फिर वह राजस्थान के चीफ मिनिस्टर अशोक गेहलोत के विकल्प के तौर पर नई पीढ़ी के सचिन पायलट को कमान सौंपने का हो या फिर मध्य प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को एक जिम्मेदारी से मुक्त करने का... क्या कमलनाथ इन पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद और ज्यादा मजबूत होकर सामने आएंगे.. क्या कमलनाथ G23 और राहुल प्रियंका की टीम के बीच ना सिर्फ सेतु की भूमिका निभाएंगे ..बल्कि समय आने पर नेतृत्व संभालने के लिए अपनी दावेदारी को सामने रखेंगे.. जो जून में मध्य प्रदेश से खाली हो रही कांग्रेस की राज्यसभा सीट से बैक डोर एंट्री के जरिए ही सही संसद में पहुंचाए जा सकते हैं.. जो चर्चा संगठन चुनाव शुरू होने से पहले पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर कमलनाथ से जोड़कर होती थी.. क्या यह पुरानी मांग एक बार फिर पार्टी की आवश्यकता बन कर सामने आएगी...
क्या राहुल प्रियंका के लिए कमलनाथ से दोनों पद या फिर एक पद छोड़ देने का आग्रह करना अब आसान होगा.. क्या कमलनाथ दोनों पदों पर अपनी नजर और पकड़ रखते हुए अब दिल्ली का रुख कर सकते हैं.. जहां पार्टी के कायाकल्प के लिए जरूरी कमान संभालने का वह अपने पक्ष में माहौल बना सकते हैं.. कमलनाथ की गिनती अभी भी राहुल से ज्यादा सोनिया गांधी के करीबी भरोसेमंद नेता के तौर पर होती है.. राहुल का भरोसा जीतने के लिए मध्य प्रदेश जीतू पटवारी से लेके उमंग सिंगार जैसे नेता कमलनाथ को आंख कम आईना ज्यादा दिखाते रहे.. तो यह भी सच है कांग्रेस के अंदर जमीनी लड़ाई का संघर्ष कर प्रियंका गांधी अब उत्तर प्रदेश की सीमा से बाहर भी हस्तक्षेप करती हुई देखी जा सकती है..
क्या यह समय पुरानी और नई पीढ़ी के बीच टकराहट खत्म करने का जरूरी हो जाता है.. तो यह फार्मूला कैसे संभव होगा.. क्या कमलनाथ प्रदेश की राजनीति से दूर एक बार फिर दिल्ली में अपनी प्रभावी मौजूदगी दर्ज कराने का मानस बना सकते हैं.. सिर्फ कांग्रेस ही नहीं यूपीए को मजबूत करने के लिए कमलनाथ क्या कांग्रेस का ट्रंप कार्ड साबित हो सकते हैं... जिनके व्यक्तिगत संबंध ममता बनर्जी से बहुत अच्छे माने जाते.. जिन्होंने पश्चिम बंगाल में भाजपा की हार सुनिश्चित करने के लिए ममता बनर्जी की जमकर तारीफ की थी.. यही नहीं ममता बनर्जी जब कांग्रेस को खरी-खोटी सुनाकर भाजपा के मुकाबले एक मोर्चा तैयार करने की जुगत में जुटी थी.. तब भी कमलनाथ की शरद पवार से मुलाकात चर्चा का विषय बन गई थी..
कमलनाथ के व्यक्तिगत संबंध अतीत में कांग्रेस छोड़कर क्षेत्रीय दल बनाने वाले लगभग हर नेता से आज भी मजबूत बने हुए ..तो जब 5 राज्यों की हार ने कांग्रेस के सामने दो सीमित विकल्प छोड़ दिए हैं.. पहला भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने के लिए नेतृत्व नहीं बल्कि समर्थन दें गठबंधन का नया चेहरा सामने लाना... तो दूसरा अस्तित्व के संकट से जूझ रही कांग्रेस को 2024 लोकसभा चुनाव की चुनौती को ध्यान में रखते हुए नए सिरे से खड़े करने के लिए राज्यों में एकला चलना.., उत्तर प्रदेश में बसपा के मुकाबले कांग्रेस का बोट में बड़ी गिरावट के बावजूद बेहतर प्रदर्शन..
क्या उसे विपक्ष की भूमिका निभाने जा रही सपा के फेल होने का इंतजार रहेगा... क्या मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वर्तमान नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ कांग्रेस के कायाकल्प के लिए दखल देते हुए नजर आएंगे... क्या भाजपा विरोधी गठबंधन के लिए शरद पवार, ममता बनर्जी के मुकाबले राहुल प्रियंका और सोनिया गांधी कमलनाथ के चेहरे को सामने ला सकती हैं.. यह तभी संभव है जब राष्ट्रीय राजनीति में कॉन्ग्रेस अब कमलनाथ पर भरोसा जता उन्हें भाजपा विरोधियों का चेहरा बनाएं.. पांच राज्यों के चुनाव परिणाम ने जब कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व को यूपीए गठबंधन के सहयोगियों के बीच अलग-थलग और कमजोर साबित कर दिया है.. तब क्या मैनेजमेंट गुरु कमलनाथ अपनी रणनीति पर नए सिरे से बदलाव लाने का जोखिम बोलेंगे….
क्या कांग्रेस की बेहतरी और अच्छे भविष्य के लिए कमलनाथ मध्य प्रदेश का मोह छोड़ने का साहस जुटा पाएंगे.. आखिर कमलनाथ आने वाले समय में कांग्रेस को अंदर से चुनौती देने वाले G23 के साथ खड़े नजर आएंगे या फिर राहुल प्रियंका पर ही उनका भरोसा बरकरार रहेगा.. तो क्या इस भरोसे की वजह खुद कमलनाथ का नए सिरे से अपनी संभावनाएं तलाशना माना जाए..
मध्य प्रदेश से दिग्विजय सिंह के विधायक भाई लक्ष्मण सिंह ने जो सवाल खड़े किए ..क्या वह आने वाले समय में कमलनाथ का रास्ता साफ करेंगे.. जिन दरबारियों की बात लक्ष्मण सिंह ने बेबाक अंदाज में कहीं क्या उनमें मध्यप्रदेश के भी नेता शामिल है.. एक बड़ा सवाल जिस दरबारी प्रथा पर लक्ष्मण सिंह की आपत्ति है क्या मध्य प्रदेश कांग्रेस इससे अछूत है.. लक्ष्मण सिंह अपने विवादित बयान से कमलनाथ को रास्ता या उन्हें भी आइना दिखा रहे..
क्या कांग्रेस की कमान संभालेंगे कमलनाथ...!
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