मध्य प्रदेश

लोकल नेताओं पर भारी पैराशूट लेंडिंग...

ByNI Editorial,
Share
लोकल नेताओं पर भारी पैराशूट लेंडिंग...
भोपाल। मध्यप्रदेश के वरिष्ठ भाजपा नेता केंद्रीय मंत्री रहे थावरचंद गहलोत के राज्यसभा से इस्तीफे के बाद उनके स्थान पर केंद्रीय मंत्री डॉ एल मुरुगन का निर्वाचन तय हो गया है। वे कर्नाटक का राजपाल बने श्री गहलोत के 2024 को समाप्त हो रहे शेष कार्यकाल को पूरा करेंगे। कांग्रेस द्वारा अपना उम्मीदवार खड़ा नही करने के कारण चार अक्टूबर को मुरुगन के निर्विरोध चुने जाने की रस्म भी पूरी हो जाएगी। मप्र से किसी बाहरी नेता का राज्यसभा में जाना कोई नई बात नही हैं। कांग्रेस ने भी ऐसे निर्णय कई दफा लिए हैं। लेकिन अब पार्टियों में ऊपर से लेकर कार्यकर्ताओं के साथ जनता में भी इसे लेकर सवाल-जवाब की चर्चाएं हैं। कुछ हद तक असंतोष भी। खास सवाल यह है कि- जो माननीय राज्यसभा में जाते हैं वे प्रदेश की तरक्की के लिए आखिर करते क्या हैं ? राज्य, बाहरी नेताओं के लिए चारागाह कब तक बना रहेगा। Madhyapradesh rajyasabha seat election मप्र से राज्यसभा में भेजे जाने वाले बाहरी नेताओं की लम्बी फेहरिस्त है और यह काम या यूं कहें कि प्रदेश के नेताओं की अनदेखी का गुनाह कांग्रेस- भाजपा ने लगभग समान रूप से किया है। श्री गहलोत के स्थान पर राज्य के जिन वजनदार नेताओं की चर्चा थी उनमे पूर्व मुख्यमंत्री उमाश्री भारती,राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल सिंह आर्य के नाम प्रमुख थे। लेकिन पैराशूट लेंडिंग हुई और श्री मुरुगन का नाम घोषित हो गया। हाल के कुछ वर्षों की बात करें तो केंद्र में मंत्री रहे प्रकाश जावड़ेकर और एमजे अकबर लेकर केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान मप्र कोटे से राज्यसभा के लिए चुने गए। प्रदेश के नेताओं की कीमत पर राज्यसभा में भेजे गए ये महारथी राज्य के हित संरक्षण का सामान्य शिष्टाचार निभाना और दिल्ली जाने वाले पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलना भी कम ही पसन्द करते हैं। जिस राज्य ने चुना है उसके दौरे करना, सांसद- विधायकों से प्राथमिकता से मिलना उनके इलाके से जुड़े केंद्र सरकार के कामों का निराकरण कराना भी उनकी दिलचस्पी का हिस्सा कम ही रहता है। जावड़ेकर से लेकर धर्मेंद्र प्रधान से सवाल है कि उन्होंने अपनी नैतिक जिम्मेदारी के रूप में प्रदेश सरकार के हित और राज्य के विकास में अपने विभाग की कौन सी महत्वपूर्ण घोषणा की और उस पर अमल कराया। ऐसी उपेक्षा उस राज्य की जिस के दम पर सत्ता का सुख भोगने के अवसर मिले हों। हैरत की बात यह है कि इसका बोध न तो मंत्री बने नेताओं को है और न ही उन्हें संगठन नाम की संस्था इसका अहसास करती है। इसके विपरीत ऐसे अहसान फरामोश नेताओ का रेडकारपेट बिछाकर स्वागत किया जाता है। जबकि वे उन विधायकों के वोट से जीतते हैं जिन्हें विजयी बनाने के लिए संगठन ने दिनरात एक किया और कार्यकर्ताओं के खून पसीने ने विधायक बनाया। राज्यसभा के लिए निर्वाचित विधायकों की उपेक्षा सीधे संगठन-कार्यकर्ताओं के साथ जनता का भी अपमान है। Read also अमेरिका की हाँ में हाँ क्यों मिलाएँ ? राज्यसभा के लिए निर्वाचित नेताओं का राजयोग बड़ा फाइव स्टार है। दरअसल उन्हें वोट पाने के लिए किसी के न तो हाथपैर जोड़ने पड़ते हैं और कोई वादे करने होते है। जबकि पंचायत के छोटे से कहे जाने वाले चुनाव में उम्मीदवार को घर घर जाकर वोट के कहां कहां मत्था टेकना पड़ता है उसी बेचारे से पूछो तो वो अपने अनुभवों की किताब लिख दे। मगर राज्यसभा की राजनीति करने वाले ये मुकद्दर के बादशाह दूल्हे बने घूमते रहते हैं और उसके बाद संगठन के फूफा बन जाते हैं। हाईकमान ने पैराशूट लेंडिंग कराई है तो इनके गले में शिकवे शिकायतों की घण्टी कौन बांधे। लिहाज़ा कोई न कोई आचारसंहिता की बहुत सख्त जरूरत है। प्रदेश के लिए किए राज्यसभा सदस्यों के काम का पॉलिटकल और सोशल ऑडिट जरूरी है। अविभाजित मप्र के कोटे में 16 सीटें आती थी। छतीसगढ़ बनने पर सन 2000 के बाद पांच सीटें छग के खाते में जाने से मप्र के पास राज्यसभा की 11 सीटें शेष रह गईं। खैर बात शुरू हुई थी राज्य के धुरंदर नेताओं की अनदेखी कर श्री मुरुगन के राज्यसभा उम्मीदवार बनाने पर। श्री मुरुगन समेत सभी राज्यसभा सांसदों के काम की समीक्षा आवश्यक है। वे क्या काम कर रहे हैं बाकयदा प्रति माह न सही कम से कम हरेक तीन माह में संगठन- कार्यकर्ताओं को बताए कि उन्होंने प्रदेश की जनता के लिए फलां फलां काम किए, इतनी बार आसमान से तारे तोड़े और अगला रोडमेप ये है। क्योंकि लोकसभा सांसद और विधायकों की भांति किसी इलाके की कोई सीधी जिम्मेदारी नही होती लिहाजा दूल्हा और फूफा बनने के बजाए लड़की के बाप, भाई और काका की भांति जिम्मेदारी के काम करें और उनका प्रकाशन भी कराएं। सुर्खियों में नरोत्तम मिश्रा... जानें, कौन हैं नरोत्तम मिश्रा जो विकास दुबे की गिरफ्तारी के बाद से ही  कांग्रेस के निशाने पर हैं - madhya pradesh home minister narottam mishra  bjp profile gangster vikas dubey ... गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा प्रदेश के अकेले ऐसे मंत्री हैं जो सर्वाधिक सुर्खियों में रहते हैं। कभी वे बाढ़ पीड़ितों को बचाने के लिए जान जोखिम में डाल उफनती नदी में मोटरबोट लेकर कूद पड़ते हैं तो कभी बुलेट मोटरसाइकिल पर सवार हो मंदिर मंदिर देवी की दतिया शक्तिपीठ और महादेव के दर्शन करने निकल पड़ते हैं। हंसमुख मिजाज और यारबाजी के लिए मशहूर मिश्रा जी  कई दफा अपनी बेबाकी के लिए भी चर्चाओं में रहते हैं। कोरोना काल में रिवाल्वर का लाइसेंस मांगने वाले कार्यकर्ता को मना करने का उनका अंदाज ए बयां भी खूब वायरल हुआ था। वे इकलौते मंत्री हैं जिनकी सुबह और शाम की चाय पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के बिना नही होती है। खुश खबरी...जिला अस्पतालों की सेहत सुधरेगी कोरोना के कठिन काल में अस्पतालों की जो बदहाली जनता ने भोगी थी उसे सरकार ने लगता है गहरे महसूस किया है।हजारों लोगों की मौत के बाद सरकार ने जिला अस्पतालों का कायाकल्प करने का जो बड़ा काम शुरू किया था अब वह अक्टूबर तक दिखाई देने लगेगा। शासकीय जिला अस्पतालों में ऑक्सीजन के प्रबंध किए जा रहे हैं। अच्छी बात यह है कि गम्भीर मरीजों के लिए हरेक अस्पतालों में जीवन रक्षक वेंटिलेटर भी व्यवस्था की जा रही है। सरकार ने हाईकोर्ट को इस सम्बंध में एक सुनवाई में इस तरह की जानकारी भी दी है। पचास से अधिक जिला अस्पतालों में ऑक्सीजन व वेंटिलेटर की व्यवस्था लगभग पूर्णता की ओर है। इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को बधाई। साथ ही एक साझी चिंता यह भी है कि अस्पतालों में उपलब्ध ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और स्केन जैसी सुविधाओं का संचालन भी सफलता पूर्वक होता रहे तो सोने पे सुहागा हो जाएगा। अक्सर जैसा निजी अस्पतालों में भी होता है। कुशलतापूर्वक ररखरखाव और डॉक्टर व प्रबंधन का संवेदनशील होना सरकारी सेवा में चार चांद लगा सकता है। इस मामले में भाजपा के प्रवक्ता और पेशे से चिकित्सक हितेष बाजपेयी कहते हैं सरकार संजीदा है और उम्मीद है कि अक्टूबर तक जिला अस्पतालों की हालत पहले से काफी बेहतर हो जाएगी। डॉ बाजपेयी कहते हैं न्यायालय राज्य सरकार द्वारा किये गए कार्यों की सराहना करता है.. जिला सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन की स्थापना के संबंध में उत्पादन संयंत्र, सीटी स्कैन मशीनें, ऑक्सीजन/आईसीयू/एचडीयू/आईपीसीयू बेड सभी में उपलब्ध कराए जा रहे हैं। राज्य सरकार वैक्सीन-कवरिंग के अपने आश्वासन पर खरी उतरेगी। पहली और दूसरी खुराक के साथ टीकाकरण, पूरी 18 वर्ष से अधिक आबादी वर्ष 2021 के अंत तक पूरी होगी। - लेखक: राघवेन्द्र सिंह
Published

और पढ़ें