प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत पहले कहा था कि वे चाहते हैं कि मेडिकल से लेकर तकनीकी शिक्षा तक की पढ़ाई मातृभाषा में हो। इसकी शुरुआत हो गई है। मध्य प्रदेश में हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई का पहला साल शुरू होने वाला है और पहले साल की किताबों का रविवार को विमोचन हुआ। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसकी शुरुआत की। ध्यान रहे राजभाषा विभाग उनके मंत्रालय के अधीन आता है। मध्य प्रदेश सरकार ने इस कार्यक्रम का बड़ा विज्ञापन भी किया है। अंग्रेजी के अखबारों में भी विज्ञापन छपे हैं और विज्ञापन में जो किताबें दिख रही हैं उनके नाम बहुत दिलचस्प हैं। एक किताब का नाम है ‘एनॉटोमीः एबडॉमन और लोअर लिंब’, दूसरी किताब है ‘मेडिकल फिजियोलॉजी’ और तीसरी किताब है, ‘मेडिकल बायोकेमिस्ट्री’। इन तीन किताबों के नाम में सिर्फ एक शब्द ‘और’ हिंदी का है बाकी अंग्रेजी को देवनागरी लिपि में लिखा गया है।
लेखकों के नाम में डॉक्टर नहीं लगे हैं, कम से कम कवर पर जो नाम हैं। सो, यह पता नहीं चल रहा है कि लिखने वाले खुद डॉक्टरी पढ़े हुए हैं या नहीं! इसके बावजूद कहा जा सकता है कि ‘ना मामा से काना मामा अच्छा है’। बहरहाल, हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई को लेकर कई तरह की चिंताएं हैं और कई लोग यह मानते हैं कि हिंदी में पढ़ कर जो डॉक्टर बनेंगे वे दोयम दर्जे के होंगे और कहीं उनकी हैसियत कंपाउंडर वाली न हो जाए। लेकिन अभी ऐसी आशंका की जरूरत नहीं है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हिंदी की किताबों के विमोचन से एक दिन पहले एक भाषण में कहा डॉक्टरों को चाहिए कि दवा की पर्ची पर ऊपर आरएक्स की जगह श्रीहरि लिखें और दवा का नाम हिंदी में लिख दें। पता नहीं हिंदी में मेडिकल पढ़ने वाली उनकी यह राय मानेंगे या नहीं।