मध्य प्रदेश

महाराज कम मामा ही हैं राजा का तोड़...

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महाराज कम मामा ही हैं राजा का तोड़...
भोपाल। सियासत समझने के लिए थोड़ा फ्लेशबैक में जाने की जरूरत है। असल में पिछले विधानसभा चुनाव के कांटाजोड मुकाबले में भाजपा कांग्रेस से पिछड़ गई थी। लगातार तीन चुनाव से अजेय भाजपा और मामा शिवराज सिंह चौहान को राघोगढ़ के राजा दिग्विजय सिंह ने नाकों चने चबबा दिए थे। बहुमत से एक कम 114 सीट पर हासिल करने वाली कांग्रेस ने भाजपा के अश्वमेध को 109 सीट पर रोक दिया था। सरकार कांग्रेस के कमलनाथ की बनी और 15 महीने में महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराजी के चलते गिर भी गई। फिर उपचुनाव हुए और भाजपा में आए दो दर्जन से अधिक सिंधिया समर्थक पूर्व विधायक चुनाव जीते और पूर्ववत मंत्री भी बने। इसमें सिंधिया के साथ भाजपा और मामा की भी भूमिका रही। लेकिन राजा की राजनीतिक काट बनने में अभी सिंधिया को और समय लगेगा। उन्हें राजा की तरह जनता और कार्यकर्ताओं से सतत सीधा संवाद करना और रखना पड़ेगा। जैसे कि वे राजशाही के आभा मंडल से निकल कर लोकशाही की तरफ बढ़ रहे हैं। सिंधिया के ओजस्वी भाषण से उन्हें राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर भी एक विकल्प के रूप में देखा व समझा जा रहा है। पहले कांग्रेस में और अब भाजपा में भी। वे युवा हैं, बेदाग छवि है, अच्छे प्रशासक भी हैं , भाजपा की परम्पराओं को आत्मसात करने में भी लगे हैं। इसलिए वे केंद्र में मंत्री भी हैं। मगर दिग्विजयसिंह के मुकाबले आने या उन्हें मात देने के नजरिए से जमीनी स्तर पर पकड़ मजबूत करना होगा। मंडल स्तर के कार्यकर्ताओं से संपर्क। मेल मुलाकात में सरलता और सहज उपलब्धता। तभी सिंधिया जी प्रभावी विकल्प के रूप में नजर आएंगे। राजा के गढ़ में पूर्व विधायक के पुत्र हरेंद्र सिंह बंटी बना को भाजपा में लाने जैसे काम से बात बनती नही दिखती। दरअसल भाजपा और संघ परिवार में एक वर्ग सिंधिया को अगले विकल्प के रूप में देखता है और इस रूप में प्रोजेक्ट करने का प्रयास भी करता है। लेकिन इसके लिए उन्हें राजा के साथ मामा शिवराज सिंह की तरह गांव में रहने, गमछा बिछा कर किसानों के ओटलों पर बैठने, किसी के हाथ के इशारे पर काफिले को रोक जरूरतमंद की बात सुनने के साथ उसकी समस्या का समाधान करने के प्रयत्न करने की आदत डालनी पड़ेगी। अभी तो मामा शिवराजसिंह चौहान मनुष्यों की चिंता तो करते दिखते ही हैं वे रास्ते में मिलने वाली गाय बछिया तक के गले लिपट फोटो खिंचाने से नही हिचकते। जन स्वीकार्यता की प्रतिस्पर्धा का ये स्तर है। इस मामले में कांग्रेस में दिग्विजय सिंह और भाजपा में शिवराज सिंह कड़े मुकाबले में हैं। वैसे अगले राजनेता में महाराज भी महत्वपूर्ण स्थान बनाए हुए हैं। भाजपा में इन दिनों राघोगढ़ के राजा दिग्विजय सिंह को लेकर खासी बेचैनी है। वजह है संघ से लेकर भाजपा पर उनका बेहद तल्ख रहना। हालांकि यह कोई नई बात नही है। संघ और हिन्दुतत्व के मामले में राजा का नजरिया कांग्रेस की रीतिनीति अनुसार आक्रामक रहा है। कई दफा उनके बयानों को लेकर सियासी गलियारों मे हास- परिहास में ही सही यह भी कहा जाता है कि भाजपा के सम्बन्ध में राजा के बयान वक्तव्य कांग्रेस को कम भाजपा के लिए ज्यादा लाभकारी होते हैं।  लेकिन हाल के कुछ दिनों से उनके निशाने पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा भी है। शर्मा खजुराहो - पन्ना से सांसद भी हैं और यहां रेत खनन एक बड़ा मुद्दा है। पन्ना राजघराने और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के बीच ठन गई है। यहां भी दूसरे इलाके की भांति लंबे समय से मिलजुल कर सभी पार्टियां अपनी हैसियत के हिसाब से हिस्सेबांट करती आई हैं। लिहाजा राजनीति के सब कारज आपसी समन्वय और शांति से सपन्न हो रहे थे। लेकिन समीकरण बिगड़े और छोटे छोटे विवाद में बड़े उलझ गए और बात राजा के गढ़ में महाराजा की सेंध लगाने तक आ गई। कोरोना को लेकर तैयारी पर सवाल प्रदेश में कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रोन को लेकर सरकार की तैयारी जोरशोर से है। अस्पताल के प्रबन्धन और दवाओं पर सरकार की नजर है। लेकिन ऑक्सीजन यूनिट को लेकर हालात संतोषजनक नही है। मिसाल के तौर पर मुख्यमंत्री के गृह जिले सीहोर में ही ऑक्सीजन प्लांट चालूनही हो सका है। यह चिंता की बात है। निजी अस्पताल तीसरी लहर में कितना पैसा मरीजो से वसूलेंगे इस अभी से नियम कायदे कड़ाई से लागू करने की जरूरत है। मध्यम वर्ग और गरीब वर्ग की हालात सबसे ज्यादा खराब होती है। हालांकि मुख्यमंत्री खुद इन वर्गों की मदद करने के लिए निजी स्तर पर टीम बनाकर काम करते हैं। दूसरी लहर में उन्होंने काफी कुछ काम किया था। मुख्यमंत्री सचिवालय में आईएएस अधिकारी नीरज वशिष्ठ और एक डिप्टी कलेक्टर मनीष श्रीवास्तव के साथ जनसम्पर्क संचालक आशुतोष प्रताप सिंह की टीम सीएम के निर्देशों का पालन करने में दिनरात लगी हुई थी। आगे भी चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग के साथ तीसरी सम्भावित लहर सेनिपटने में पुराने उपाए और टीम पर ही सबकी उम्मीदें लगी हैं।
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