मध्य प्रदेश

अपनों की कब परवाह करेंगी सरकारें

ByNI Editorial,
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अपनों की कब परवाह करेंगी सरकारें
भोपाल। इन दिनों छत्तीसगढ़ी फिल्मों व रंगमंच के जाने पहचाने अभिनेता अनिल शर्मा का रोता हुआ वीडियो चर्चा का विषय बना हुआ है। बताया गया कि ओटीटी प्लेटफार्म के लिये बनने वाले सीरियल, जिसकी शूटिंग छत्तीसगढ़ में हो रही है में एक महत्वपूर्ण भूमिका के लिये उनका चयन किया गया लेकिन आखिरी मौके पर उन्हें वह भूमिका निभाने के बजाय भीड़ का हिस्सा बना दिया गया। इससे वे इतने आहत हुए कि अपनी आप बीती बताते हुए रो पड़े। सीरियल बनाने वाली कंपनी की ओर से अनिल शर्मा की षिकायत पर कोई प्रतिक्रिया अब तक नहीं आई है। इसलिये अनिल की बातों को ही सही माना ही जायेगा। अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं हुआ है कि अनिल ने कंपनी वालों से इस बारे में कोई बात की या नहीं तथा उन्हें क्या उत्तर मिला, ऐसी स्थिति में इस प्रसंग पर कोई टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी। Madhyapradesh chhattisgarh shooting films लेखक: गिरिजाशंकर यदि अनिल की बताई आप बीती है सही है तो यह राज्य के कलाकारों के साथ बेहद आपत्तिजनक घटना है जो कलाकारों को न केवल अपमानित करता है बल्कि यह उनके साथ अन्याय की श्रेणी में आयेगा। ऐसी स्थिति को दूर करने की इसकी जिम्मेदारी उस सरकार की है जो राज्य में फिल्मों की शूटिंग को बढ़ावा देने के नाम पर करोड़ों रुपये बांट रही है, बिना यह सही ढंग से विचार किये कि इससे राज्य और राज्य की प्रतिभाओं का क्या भला हो रहा है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की राज्य सरकारंे अपने नये कार्यकाल में फिल्मों की शूटिंग अपने अपने राज्यों में कराने के लिये इस कदर उतारू हो गई कि इसके लिये तरह तरह की लुभावनी योजनायें बना डाली कि बस फिल्मों की शूटिंग हो जाने से ही प्रदेश में हो जाने से प्रदेश का कायाकल्प हो जायेगा। ये वही राज्य सरकारें है जिनकी अपनी कोई संस्कृति नीति नहीं है, प्रदेश की संस्कृति को संरक्षित करने, प्रोत्साहित करने की कोई योजना नहीं है, प्रदेश के कलाकारों, साहित्यकारों को सहयोग करने व सम्मान करने की कोई सोच नहीं है वह रातों रात फिल्म नीति बनाकर प्रस्तुत है। मध्यप्रदेश में तो कांग्रेस सरकार में पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर फिल्म पर्यटन नीति बनाई गई। केबिनेट के कई फैसलों पर महिनों तक नियम कायदे नहीं बन पाने वाली नौकरशाही ने फिल्म पर्यटन नीति के केबिनेट से पारित होने के एक पखवाड़े के भीतर उसे लागू भी करवा दिया। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा सरकार ने कांग्रेेस सरकार के कई फैसलों को उलट दिया गया लेकिन इस निर्णय को नहीं बदला। इससे जाहिर होता है कि फिल्म नीति बनाने व लागू करवाने में राजनेताओं से अधिक दिलचस्पी नौकर शाहों की है। madhyapradesh chhattisgarh shooting films madhyapradesh chhattisgarh shooting films बहरहाल फिल्मों की प्रदेश में शूटिंग कराने से पर्यटन को बढ़ावा मिलने के पीछे तर्क यह होता है कि जब फिल्मों के जरिये प्रदेश के पर्यटन स्थलों का नाम दर्षकों में आयेगा तो उससे पर्यटक उन पर्यटन स्थलों के प्रति आकर्षित होंगे। सैद्धांतिक रूप से यह सही हो सकता है लेकिन यह दूर कौड़ी अधिक है। अभी तक जिन फिल्मों की शूटिंग प्रदेश में हुई है उनमें से कितनों में प्रदेश के उन स्थानों का जिक्र किया गया जहां शूटिंग हुई और इससे उस स्थान के प्रति पर्यटकों के मन में क्या आकर्षण पैदा हुआ या पर्यटन को बढ़ावा देने में कितनी मदद मिली। यह जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए कि किस फिल्मकार को प्रदेश में शूटिंग करने के एवज में कितनी धनराशि अनुदान के रूप में दी गई तथा इससे प्रदेश को क्या लाभ हुआ। सरकार के सहयोग के बिना फिल्मों की शूटिंग इन प्रदेशों में पहले भी होती रही है। शैलेन्द्र की तीसरी कसम से लेकर सत्यजीत रे की सद्गति, आमिर खान की पीपली लाइव जैसी अनेक फिल्मों की शूटिंग प्रदेश में हुई क्योंकि यहां के लोकेशन फिल्मों के अनुकुल है तथा यहां के लोगों में सहयोग की भावना है। यह अनुकुलता इतनी है कि 1980 के दशक की शुरूआत में सत्यजीत रे को जब अपनी फिल्म ’सद्गति’ की शूटिंग करनी थी जो हिन्दी प्रदेश की पृष्ठभूमि की फिल्म थी तब विहार, उत्तरप्रदेश आदि हिन्दी भाषी राज्यों में अशांति के चलते यह संभव नहीं हो पा रहा था। तब अविभाजित मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ में इस फिल्म की पूरी शूटिंग बिना किसी सरकारी सहयोग के हुई। तब भी बहुत से स्थानीय कलाकारों को फिल्म में काम करने का मौका दिया गया और उनका बाद में बड़ा नाम हुआ। उन स्थानीय कलाकारों कों उतना ही सम्मान और महत्व दिया गया जितने फिल्म के मुख्य कलाकारों का था। उसके बरसों बाद बनी फिल्म पीपली लाइव का अनुभव रहा जिसमें प्रदेश के स्थानीय कलाकारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही और यह फिल्म स्थानीय कलाकारों के गीत ”मंहगाई डायन के लिये प्रसिद्ध हुई। अब जब सरकारें बाकायदा नीति बनाकर फिल्मों की शूटिंग प्रदेश में कराने को प्रोत्साहन देने पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है तो प्राथमिकता के साथ इस बात पर जोर दिया जाना चाहिए कि इससे स्थानीय प्रतिभाओं और स्थानीय जनजीवन को महत्व मिले व प्रदेश के फिल्मकारों को प्रोत्साहन मिल सके। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि जिन स्थानीय कलाकारों को फिल्म में भूमिकायें दी गई हैं उन्हें उचित पारिश्रमिक व सम्मान मिले। दत्तीसगढ़ में फिल्मों का निर्माण बड़े पैमाने पर हो रहा है और वह हालीबुड, बालीवुड की तरह छालीवुड के नाम से जाना जाने लगा है। इस फिल्म इंडस्ट्री के व्यवस्थित विकास को सरकार के फिल्म नीति में क्या व कितना स्थान दिया गया है, यह देखने की बात है। अब तक का अनुभव यही बताता है कि राज्य सरकारों ने अपनी प्रतिभा और अपनी परंपरा को प्रोत्साहित करने के प्रति कभी गंभीर नहीं रही और प्रदेश को बाहरी लोगों के लिये चारागाह बनाने में बड़ी भूमिका निभाती रही है। फिर चाहे वह राज्यसभा में जाने का मामला हो या पुरस्कार या सम्मान का, हमेशा स्थानीयता की उपेक्षा की गई है। इस परंपरा को खत्म किया जाना चाहिए और प्रदेश की प्रतिभाओं का सम्मान किया जाना जरूरी है। madhyapradesh chhattisgarh shooting films madhyapradesh chhattisgarh shooting films फिल्म निर्माण में केवल छोटी मोटी भूमिकाओं में स्थानीय कलाकारों को लेना फिल्म निर्माताओं के लिये किफायती व सुविधाजनक होता है, लेकिन प्रदेश को इसका कोई लाभ नहीं मिलता। प्रदेश में फिल्म निर्माण को प्रोत्साहन देने के लिये आर्थिक सहायता देने का सवाल है तो इसे केवल प्रदेश में शूटिंग करने तक सीमित नहीं रखना चाहिए। फिल्मों की विषय वस्तु प्रदेश तथा उसकी संस्कृति, उसका जन जीवन, उसकी परंपरा तथा वहां के साहित्य व संगीत को फिल्म में स्थान मिलना चाहिए। ताकि फिल्मों के जरिये समग्र रूप से प्रदेश बड़े फलक पर स्थान पाये। 60 के दशक में मनुनायक द्वारा बनाई गई फिल्म कहि देबे संदेश इसका उदाहरण है जिसके गानों को आज भी बार-बार सुनने का मन करता है। उस फिल्म में छत्तीसगढ़ समाया हुआ है। सत्यजीत रे ने अपनी फिल्म ’सद्गति’ की शूटिंग छत्तीसगढ़ में की तो उन्होंने अपने फिल्म के पात्रों को छत्तीसगढ़ के परंपरागत पोशाक व जेवर पहनाये। छत्तीसगढ़ में अपनी फिल्म इंडस्ट्री है तथा बड़ी संख्या में फिल्में सालों से निरंतर बन रहीं है। इस इंडस्ट्री को जो हजारों लोगों को रोजगार दे रही है, सपोर्ट करने तथा प्रोत्साहित करने की कोई प्रावधान राज्य की फिल्म नीति में समाहित है या नहीं, मुझे पता नहीं। यह प्रावधान प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए। जिन फिल्मकारों को सरकार आर्थिक सहायता फिल्म निर्माण के लिये दे रही है उनके लिये यह भी अनिवार्य किया जाये कि न केवल अभिनय के लिये कलाकार बल्कि कैमरा, साउंड, लाइट, मेकअप जैसे सहयोगी उपादान भी छत्तीसगढ़ राज्य से ही लें जो कि भरपूर रूप से यहां उपलब्ध है। इससे न केवल बड़ी संख्या में लोगों को काम मिलेगा बल्कि स्थानीय प्रतिभाओं का उभरने का अवसर भी मिलेगा। यहां यह ध्यान रखने की जरूरत है कि चाहे अभिनेता हो या अन्य तकनीकी सहायता, सभी कलाकारों को उचित पारिश्रमिक मिलना सुनिश्चत हो। अभी देखने में यह आ रहा है कि जिन कलाकारों को सहायक की भूमिकाओं में लिया जाता है उन्हें नगण्य पारिश्रमिक ही दिया जाता है। यह एक तरह से कलाकारों का शोषण है। सरकार को चाहिए कि वह ऐसी व्यवस्था बनाये कि कलाकारों को भरपूर पारिश्रमिक भी मिले व उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार हो। यह इसलिये भी जरूरी है क्योंकि स्वाभाव से संकोची होने तथा फिल्मी ग्लैमर के आकर्षण में कलाकार खामोशी से अपना शोश्ण होने देता है। ऐसे में उस कलाकार की आवाज सरकार को बनना चाहिए। तब ही फिल्म निर्माण के लिये दी गई सरकारी आर्थिक सहायता सार्थक होगी। madhyapradesh chhattisgarh shooting films Read also पहले कैसे बनते थे मुख्यमंत्री? फिल्म सिटी बानाने की सरकारी तमन्ना रखने वालों को नोयडा फिल्म सिटी का जायजा लेना चाहिए कि वह फिल्म निर्माण में कितनी सहायक हुई है। यदि न्यूज चैनलों के स्टूडियों वहां नहीं स्थापित होते तो उस फिल्म सिटी का क्या हश्र होता। मेरा मानना है कि सरकार फिल्म सिटी के अपने ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिये आधुनिक सुविधाओं से युक्त स्टुडियो का निर्माण कराये जहां फिल्मों की शूटिंग हो सके तो कैमरे, डविंग, लाइट आदि उपकरणों की व्यवस्था कर फिल्म निर्माताओं को उचित मूल्य पर उपलब्ध कराये तो यह फिल्म सिटी से अधिक कारगर पहल हो सकती है। साहित्य, कला, संस्कृति या अन्य सृजनात्मक विधायें जिसमें फिल्म निर्माण भी शामिल है का संरक्षण व प्रोत्साहन लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में राज्य का नैतिक व संवैधानिक दायित्व है और इस दायित्व के निर्वहन को नौकरशाही के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। संस्कृति से संबंधित मामलों में सरकार को चाहिए कि इस विधा में सक्रिय कलाकारों, लेखकों व अन्य रचनाकर्मियों की सलाह से ही नीतियां व कार्यक्रम बने तथा इसके क्रियान्वयन में भी उन रचनाकर्मियों के अनुभव तथा उनकी सृजनात्मकता को शामिल करे। ऐसा होने पर ही अनिल शर्मा या योग मिश्रा जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों को अपमानित नहीं होना पड़ेगा। यह समझना चाहिए कि कलाकारों, लेखकों व अन्य रचनाकर्मियों का सम्मान ही राज्य का सम्मान है और इसी से सरकारों का सम्मान भी बनता है।
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