महाराष्ट्र

भाजपा की 'दशा- दिशा' पर संघ की पैनी नजर..!

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भाजपा की 'दशा- दिशा' पर संघ की  पैनी नजर..!
भोपाल। मध्यप्रदेश भाजपा की दशा और दिशा पर संघ की पैनी नजर इस बात का स्पष्ट संकेत है कि वो मिशन 2023 को ध्यान में रखते हुए समय रहते कमजोर कड़ियों को हर हाल में दुरुस्त कर लेना चाहती.. शायद यही वजह है की संघ और भाजपा के चुनिंदा लेकिन नीति निर्धारक माने जाने वाले पदाधिकारियों की महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई.. इस बैठक में संघ के अखिल भारतीय स्तर के केंद्रीय पदाधिकारियों की मौजूदगी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.. मध्य प्रदेश में भाजपा किन परिस्थितियों में सरकार में लौटी यह भी संघ से छुपा नहीं है .. फिलहाल मध्य प्रदेश में भाजपा संगठन पीढ़ी परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है.. ऐसे में जब पांच राज्यों के चुनाव परिणाम देश की राजनीति के साथ भाजपा की अंदरूनी समीकरणों को भी रेखांकित कर सकता है ..तब सवाल खड़ा होना लाजमी है कि मध्य प्रदेश में आखिर संघ के पास क्या और कौन सा फीडबैक पहुंचा है.. जिसकी सच्चाई जानने के लिए इस महत्वपूर्ण बैठक आनन-फानन में बुलाई गया है.. या फिर.. क्या किसी पुरानी पटकथा को आगे बढ़ाया जा रहा है.. सवाल राष्ट्रीय नेतृत्व की मध्य प्रदेश से क्या अपेक्षाएं हैं.. क्या राष्ट्रीय राजनीति में मध्यप्रदेश और उसके नेता.. भविष्य में कोई और बदलता बड़ा किरदार निभा सकते हैं.. सबसे बड़ा सवाल बदलाव के दौर से गुजर रही भाजपा के सामने बड़ी पहली चुनौती सिर्फ विरोधी दल कांग्रेस की ओर से है या फिर सरकार स्थिर होने के बावजूद पार्टी में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है.. क्या सरकार और संगठन से मुक्त पुरानी पीढ़ी के नेता जो अपनी भूमिका से संतुष्ट नहीं होंगे भविष्य में भाजपा की परेशानी बढ़ा सकते हैं.. लाख टके का सवाल 2018 में सरकार नहीं बना पाने के जो कारण, समस्याएं ,चुनौतियां आकलन में सामने आई थी क्या वह खत्म हो गई है.. विपक्ष की भूमिका निभाते हुए 15 महीने और उससे पहले और फिर उसके बाद भाजपा जब सरकार में लौट आई तो क्या सत्ता और संगठन के बीच समन्वय मजबूत हुआ है.. या फिर हालात 2018 विधानसभा की तरह बने हुए हैं.. तो फिर इसकी वजह क्या है .. 2018 में मुख्यमंत्री रहते शिवराज प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह संगठन महामंत्री सुहास भगत की तिकड़ी के इर्द-गिर्द ही राजनीतिक घूमती रही थी.. तो अब मुख्यमंत्री शिवराज संगठन महामंत्री सुहास भगत के साथ प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त अपने कार्यकाल के 2 साल पूरा कर चुके हैं.. मजबूत कड़ी माने जाने वाले संगठन मंत्रियों की भूमिका खत्म की जा चुकी है ..लेकिन सह संगठन महामंत्री के तौर पर हितानंद की सक्रियता बढ़ रही है.. सिंधिया फैक्टर से अस्तित्व में आई शिवराज सरकार में राष्ट्रीय नेतृत्व की धमक साफ देखी जा सकती है.. अनुभवी शिवराज भाजपा के सभी वरिष्ठ दिग्गज नेताओं जिनकी आपस में प्रतिस्पर्धा और महत्वाकांक्षाओं के टकरा हट चर्चा का विषय बनती रही.. सभी को साथ लेकर चलने में सफल रहे इसलिए सरकार भी स्थिर बनी हुई है .. शिवराज की पिछली तीन सरकारों के कार्यकाल की तुलना में इस बार सरकार हो या संगठन केंद्र की लाइन को ही आगे बढ़ा रहा है.. चाहे फिर वह मोदी सरकार की जन हितेषी नीतियां और योजना हो या फिर जेपी नड्डा की भाजपा के कार्यक्रम हो..मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जो कोरोना पीड़ित की गैरमौजूदगी में इस बैठक का हिस्सा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा संगठन महामंत्री सुहास भगत और सह संगठन महामंत्री हितानंद बने.. Read also आश्चर्य! भाजपा के खिलाफ ऐसा भौकाल! क्या दूसरे कार्यक्रमों में वर्चुअल जुड़ रहे शिवराज भी इस बैठक का हिस्सा बने.. जबकि संघ की ओर से क्षेत्र प्रचारक दीपक विस्फुते , प्रांत प्रचारक के अलावा संघ के अखिल भारतीय पदाधिकारी खास तौर से मौजूद थे.. संघ के सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य जिनका हेड क्वार्टर भोपाल पहले ही बनाया जा चुका है..जो पहले भी भोपाल आ चुके हैं लेकिन इस बैठक में उनकी मौजूदगी दूसरे सहयोगियों के साथ महत्वपूर्ण हो जाती है.. मध्य प्रदेश से लंबे समय तक जुड़े रहे पूर्व सरकार्यवाह भैयाजी जोशी और पूर्व सर सरकार्यवाह सुरेश सोनी के बाद नई पीढ़ी के संघ के नेताओं की मध्यप्रदेश में सक्रियता और भूमिका बढ़ चुकी है ..सवाल भोपाल रह चुके अखिल भारतीय संपर्क और संवाद प्रमुख की भूमिका निभा चुके अरुण कुमार तक क्या यह फीडबैक पहुंचेगा .. करीब 3 साल तक भोपाल में रहकर अरुण कुमार ने दो अलग-अलग भूमिका में मध्य प्रदेश में भाजपा और उसकी भविष्य की चुनौतियों को बखूबी समझा होगा.. जो वर्तमान में सह सरकार्यवाह के साथ भाजपा और संघ के बीच सेतु की भूमिका निभाते हुए समन्वयक बने हुए हैं.. कृष्ण कुमार के बाद यह जिम्मेदारी अरुण कुमार को अखिल भारतीय स्तर पर सौंपी गई थी.. तो फिलहाल पांच राज्यों के चुनाव में व्यस्त और उत्तर प्रदेश पर निगाह रख सक्रिय बने हुए है.. चुनाव परिणाम उनके लिए भी व्यक्तिगत तौर पर कुछ ज्यादा ही मायने रखते हैं.. मध्य प्रदेश के मिजाज से वो वाकिफ है.. जहां गुजरात के बाद दूसरे राज्यों के साथ विधानसभा चुनाव 2023 में होना... संघ पहले ही मध्यप्रदेश में व्यवस्थाओं में बड़ा बदलाव लाकर कई नए चेहरों को बड़ी जिम्मेदारी सौंप चुका है.. मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार और संगठन की दशा और दिशा को लेकर दूसरे वैचारिक संगठनों द्वारा भी फीडबैक लेने का सिलसिला बढ़ा हुआ है.. सीधे भाजपा से जुड़े शिव प्रकाश और मुरलीधर दोनों एक से डेढ़ महीने में लगातार मैराथन बैठक कर चुनौतियों को चिन्हित कर रहे हैं.. पिछले दिनों राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बी एल संतोष का भी दौरा हो चुका है.. संघ की इस महत्वपूर्ण बैठक का हिस्सा बने शिव प्रकाश, मुरलीधर राव, विष्णु दत्त शर्मा ,सुहास भगत, हितानंद शर्मा ने बाद में अलग से भाजपा कार्यालय पहुंचकर लंबी बैठक की.. सवाल खड़ा होना लाजमी है संघ ने वरिष्ठ नेताओं से सिर्फ फीडबैक लिया या फिर दिशा निर्देश भी दिए.. क्या संघ के राष्ट्रीय नेतृत्व की लाइन को मध्यप्रदेश में और आगे बढ़ाने के लिए यह बैठक बुलाई गई थी.. या फिर पहले ही पहुंच चुके फीडबैक को ध्यान में रखते हुए समस्या के समाधान के लिए चिंतन मंथन तक यह बैठक सिमट गई.. जिसमें आनन-फानन में यह बैठक बुलाई गई ..तो क्या उसकी वजह कोई हिडेन एजेंडा है.. तो वह क्या है..? फिलहाल कुशाभाऊ ठाकरे जन्म शताब्दी समारोह में भाजपा संगठन को नई दिशा देने के लिए कुछ नए कार्यक्रमों के साथ संगठन को मजबूत कर रही है ..चाहे फिर से बूथ विस्तारक योजना या फिर बड़े लक्ष्य के साथ समर्पण निधि से जोड़ कर देखा जाए.. यानी संगठन का नेटवर्क मजबूत कर पार्टी को आर्थिक मोर्चे पर ताकत देना है... मध्य प्रदेश में सरकार भले ही भाजपा की और उसकी स्थिरता पर कोई सवाल नहीं बावजूद इसके विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस के विधानसभा के संख्या गणित को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.. कांग्रेस में भी बूथ मैनेजमेंट के साथ पार्टी संगठन के चुनाव कार्यक्रम सामने आ चुके हैं.. जिसमें पार्टी के नए सिरे से अध्यक्ष के नाम पर मोहर लगाई जाएगी.. इसलिए भाजपा के मिशन 2023 में जातीय समीकरणों को दुरुस्त करने के साथ दूसरी कई और चुनौतियों से निपटना होगा.. Election BJP star campaigners कांग्रेस हो या फिर भाजपा दोनों प्रमुख दलों में पिछड़ा वर्ग से लेकर आदिवासी और अनुसूचित जाति का नेतृत्व और समाज में उसकी पकड़ के चुनाव में बड़ा मुद्दा बनना से इनकार नहीं किया जा सकता.. सवाल मोदी, शाह, नड्डा की वर्चस्व वाली भाजपा में क्या मध्यप्रदेश में संघ का हस्तक्षेप और दिलचस्पी कोई बड़े बदलाव के संकेत हैं.. भाजपा में 2024 लोकसभा चुनाव से पहले कई राज्यों जहां चुनाव होना है वहां पार्टी कोई जोखिम नहीं ले सकती है.. इसमें मध्यप्रदेश भी शामिल है जिसमें दो हजार अट्ठारह में वोट बैंक ज्यादा होने के बावजूद सत्ता हासिल करने के लिए जरूरी सीट पर भाजपा का कमल नहीं खिल पाया था.. भाजपा हमेशा गलतियों से सीख लेकर कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करने में यकीन रखती है.. तो क्या नई सियासी जमावट के साथ चुनाव की बिसात बिछाने का काम शुरू हो चुका है.. और पर्दे के पीछे चिंतन मंथन इसी कड़ी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसके परिणाम आने वाले समय में देखने को मिल सकते.. संघ की इस बैठक के बाद पूर्व निर्धारित दौरे के तहत सरसंघचालक मोहन भागवत उज्जैन और उसके बाद भोपाल भी पहुंचेंगे..
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