Indian History : Mangal Pandey | आज की तारिख भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान रखती है. आज के दिन विभिन्न ऐसी घटनाये हुई जिन्हे याद कर लेना जरूरी है.आइये जानते है उन घटनाओं के बारे में….
मंगल पांडेय को आज के दिन लगी फांसी
बलिया जिले के नगवां गांव में 30 जनवरी 1831 को जन्मे मंगल पांडेय कोलकाता के निकट बैरकपुर छावनी में 19वीं रेजीमेंट के 5वीं कंपनी के 1446 नंबर के सिपाही थे। अंग्रेजों का भारतीय सैनिकों से भेदभावपूर्ण व्यवहार एवं अन्य कई कारणों से मंगल पांडेय (Mangal Pandey) ने अंग्रेजी हुकूमत से बगावत कर दी और 29 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान में मंगल पांडेय ने मेजर ह्यूसन को गोली मार दी तथा लेफ्टिनेंट बाग को तलवार से काट दिया.
चर्बी वाला कारतूस बना विद्रोह की वजह
1856 में भारतीय सैनिकों के इस्तेमाल के लिए एक नई बंदूक लाई दी गई लेकिन इस बंदूक को लोड करने से पहले कारतूस को दाँत से काटना पड़ता था. भारतीय सिपाहियों के बीच ये अफवाह फैल गई कि इन राइफ़लों में इस्तेमाल किए जाने वाले कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है. सिपाहियों का मानना था कि इससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं. (Mangal Pandey)
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ऐसे फैली अफवाह
मन्मथनाथ गुपत न अपनी किताब भारत के क्रांतिकारी में एक घटना का जिक्र किया है जिसकी वजह से सैनिको में ऐसी अफवाह फैली की नई कारतूस में गे और सूअर की चर्बी है. सावरकर ने भी अपनी किताब में इसी घटना का जिक्र किया है.
कहा जाता है की एक दिन कलकत्ता के दमदम नामक गांव में एक ब्राह्मण सिपाही लोटे में पानी भरकर जा रहा था तभी एक निम्न जाती के एक व्यक्ति ने कहा की यह लौटा मुझे दो मुझे पानी पीना है. इस पर ब्राह्मण सिपाही ने कहा की यह कैसे हो सकता है तुझे मेरा लौटा देने से मेरा धर्म अपवित्र हो जायेगा।इस पर निम्न जाती के व्यक्ति ने कहा की वे दिन अब गए क्या तुमको मालूम नहीं है की जल्दी ही तुमको वः कारतूस दिए जायेंगे जिनमे गाय और सूअर की चर्बी लगी होगी।नए कारतूस जानबूझकर सूअर की चर्बी डालकर बनाये गए है ताकि तुम्हरा अभिमान दूर हो.
उस निम्न जाती के व्यक्ति के ये शब्द सुनकर वह ब्राह्मण सैनिक दौड़कर छावनी में आया और पूरी छावनी में यह बात फैला दी की नई कारतूस ने जानबूझकर गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग किया है ताकि हमारा धर्म भृष्ट हो.
मंगल पांडेय को फांसी देने तैयार नहीं हुआ कोई जल्लाद
विद्रोह के बाद मंगल पांडेय (Mangal Pandey) को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें फांसी देने के लिए 8 अप्रैल का दिन तय हुआ लेकिन उस दिनदिन बैरकपुर में मंगल पांडेय को फांसी देने के लिए कोई जल्लाद नहीं मिला क्योली तब तक पांडेय की ख्याति पूरे देश में एक स्वतंत्रता सैनानी की फैल चुकी थी.
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कलकत्ता से बुलाये चार जल्लाद
जब बैरकपुर में कोई नहीं जल्लाद मंगल पांडेय (Mangal Pandey) को फांसी देने तैयार नहीं हुआ तो आनन फानन में कलकत्ता से चार जल्लाद बुलवाये गए और उन्हें यह तक नहीं बताया गया की किसे फांसी देनी है।
आज ही के दिन हुआ वन्दे मातरम के रचियता का निधन
अमर गीत वंदे मातरम को लिखकर महान साहित्य रचनाकार और स्वतंत्रता सेनानी बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय उर्फ बंकिम चंद्र चटर्जी सदैव के लिए अमर हो गए। बंकिम चंद्र ने 1874 में देशभक्ति का भाव जगाने वाले गीत वंदे मातरम की रचना की थी। इस रचना के पीछे एक रोचक कहानी है। (Mangal Pandey) जानकारी के अनुसार, अंग्रेजी हुक्मरानों ने इंग्लैंड की महारानी के सम्मान वाले गीत- गॉड! सेव द क्वीन को हर कार्यक्रम में गाना अनिवार्य कर दिया था। इससे बंकिम चंद्र समेत कई देशवासी आहत हुए थे। इससे जवाब में उन्होंने 1874 में वंदे मातरम शीर्षक से एक गीत की रचना की। इस गीत के मुख्य भाव में भारत भूमि को माता कहकर संबोधित किया गया था। यह गीत बाद में उनके 1882 में आए उपन्यास आनंदमठ में भी शामिल किया गया था। ऐतिहासिक और सामाजिक तानेबाने से बुने हुए इस उपन्यास ने देश में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में बहुत योगदान दिया। 1896 में कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक अधिवेशन हुआ था। उस अधिवेशन में पहली बार वंदे मातरम गीत गाया गया था।
और खास क्या हुआ
– आज ही के दिन 1929 में क्रांतिकारी भगत सिंह और बटुकेश् वर दत्त ने दिल्ली असेंबली हॉल में फेंका और असपनी गिरफ्तारी दी.
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