PM Modi Cry नई दिल्ली | भारतीय राजनीति में भावनाओं का हमेशा से ही एक अलग सा क्रेज रहा है. ये कोई नयी बात नहीं है जब किसी प्रधानमंत्री ने रोकर लोगों से अपनी संवेदनाएं जाहिर की है.
इसके पहले भी पीएम मोदी नोटबंदी के समय भावुक हो गये थे. उस समय देश को संबोधित करते हुए पीएम मोदी अचानक भावुक हो गये थे. पीएम का रोते हुआ दिया गया बयान- कि हमारा क्या है हम तो झोला लेकर निकल जाएंगे काफी लोकप्रिय हुआ था. इसके बाद तो जैसे देश में लोगों ने नोटबंदी को ऐसे स्वीकर किया कि जैसे ऐसा कर हम देश के लिए अपना कर्तव्य विभा रहे हैं.
ये और बात है कि आज नोटबंदी को एक विवादित फैसले के रूप में ही देखा जाता है. आपको बता दें कि रोकर देश के लोगों को भावुक करने का ये ट्रेंड पीएम मोदी का लाया हुआ नहीं है. इसके पहले भी कई बार राजनेताओं ने देश की जनता को भावुक कर उनके दिल तक पहुंचने का रास्ता खोज निकाला है.
अब इस बार पीएम मोदी को इस भावुकता के बदले कितना सम्मान और प्यार मिलता है ये तो आने वाला time ही बताएगा. लेकिन इतना तो तय है कि भारतीय राजनीति में पीएम मोदी ने एक बार फिर से ये साबित कर दिया है कि भारत में आंसुओं की कीमत बहुत है…..
प्रधानमंत्री नेहरू को भी आ गया था रोना
1962 की जंग चीन से हारने के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की लोकप्रियता पर ग्रहण लग गया था. प्रधानमंत्री नेहरु को शर्मनाक पराजय के कारण देशभर में दिखी आलोचनाएं झेलनी पड़ रही थी. उसी समय लाल किले में एक कार्यक्रम के दौरान लता मंगेशकर के द्वारा गाए गए प्रसिद्ध गीत – ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी…. के गाने के बाद जवाहरलाल नेहरू की आंखें नम हो गई.
उस समय की मीडिया ने भी जवाहरलाल नेहरू के रो पड़ने की खबर को प्रमुखता से जगह दी थी जितनी आज प्रधानमंत्री मोदी के रोने पर दी जाती है. इसके बाद जवाहरलाल नेहरू को बहुत बड़ा फायदा हुआ. अचानक से आलोचना झेल रहे प्रधानमंत्री एक बार फिर जनता के बीच लोकप्रिय हो गए. हो सकता है उस समय जवाहरलाल नेहरू ने भी या नहीं सोचा होगा कि उनकी आंखें भर जाने का उन्हें इतना बड़ा फायदा हो सकता है.
यह कहना गलत नहीं होगा कि लोगों को भावुक करना और आंसुओं का महत्व देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ही सिखाया था.
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अब जमकर होता है भावुकता का प्रयोग
ये तो आप समझ ही गए होंगे कि भारत की राजनीति में भावनाओं का कितना महत्व है. लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ प्रधानमंत्री कद के नेता लोगों को भावुक करने में सफल हो पाते हैं. जमाना बदल गया लेकिन आज भी भारत में चुनाव मुद्दों पर नहीं बल्कि भावनाओं पर जीते जाते हैं.
इसका सबसे ताजा उदाहरण बंगाल चुनाव 2021 में देखने को मिला. बंगाल चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर दे रही ममता बनर्जी ने कभी अपनी आंखों में आंसू तो नहीं भरे , लेकिन व्हील चेयर पर प्रचार कर भावनाओं का एक ऐसा जाल बिछाया जिसमें भाजपा फंस कर रह गई.
देश की राजनीति में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत में भावनाओं के दम पर कैसे जनता के वोटों को प्रभावित किया जा सकता है.
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