अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के बीच फिर से तालमेल की संभावना घटती जा रही है। दोनों पार्टियों के बीच सीटों को लेकर तालमेल नहीं हो पा रहा है। भाजपा को लग रहा है कि अकाली दल की हैसियत अब बहुत कम हो गई है और उसका वोट टूट गया है इसलिए पुराने फॉर्मूले पर यानी उसको ज्यादा सीट देकर तालमेल नहीं किया जा सकता है। भाजपा को ऐसा इसलिए भी लग रहा है क्योंकि कैप्टेन अमरिंदर सिंह और उनके करीबी रहे सुनील जाखड़ कांग्रेस छोड़ कर भाजपा के साथ जुड़े हैं और भाजपा ने जाखड़ को प्रदेश की कमान सौंपी है। यह भी कहा जा रहा है कि कैप्टेन और जाखड़ ही सीटों के तालमेल की बात कर रहे हैं। अकाली दल का कहना है कि वह भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव में चार से ज्यादा सीट नहीं छोड़ सकती है, जबकि भाजपा को कम से कम पांच या छह सीट चाहिए। पुरानी सीटों के अलावा उसे कैप्टेन और जाखड़ दोनों के लिए सीट चाहिए।
दूसरी ओर अकाली दल को लग रहा है कि कांग्रेस के नेताओं के भाजपा में शामिल होने के बावजूद न तो भाजपा का संगठन मजबूत हुआ है और न उसका वोट बढ़ा है। इसलिए अकाली नेता सुखबीर बादल पुराने फॉर्मूले के हिसाब से ही सीट देने पर अड़े हैं। दूसरी ओर उनको यह भी लग रहा है कि मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ उनका तालमेल फायदेमंद हो सकता है। सुखबीर बादल इस बात पर नजर रखे हुए हैं कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का तालमेल होता है या नहीं। अगर तालमेल हो जाता है तो उनकी मजबूरी हो जाएगी कि वे भाजपा के साथ गठबंधन बनाएं। लेकिन अगर तालमेल नहीं होता है और त्रिकोणात्मक या चारकोणीय मुकाबला होता है तो अकाली दल और बसपा के लिए मौका होगा। ध्यान रहे पंजाब देश में सबसे ज्यादा दलित आबादी वाला प्रदेश है, जहां बसपा का साथ अकाली दल को कुछ सीटों पर बढ़त दिला सकता है खास कर दोआबा के इलाके में।