बात बतंगड़

पंजाब से भाजपा का मोह

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पंजाब से भाजपा का मोह
राजनीति में जीत का मतलब जीत होता है, भले वह छोटी हों या बड़ी, भाजपा अच्छी तरह जानती है। और तभी पंजाब में मात्र दो विधानसभा सीटें जीत पाने के बाद भी भाजपा उतनी ही सक्रिय दिख रही है जितनी चुनावों से पहले। या यूँ कहिए कि भाजपा को पंजाब में राजनीति की ज़मीन उपजाऊ दिखने लगी है। अब ऐसा पंजाब में अकाली दल बादल के टाउनफॉल के चलते या फिर गुजरात,और हिमाचल प्रदेश में इस साल के आख़िर में होने वाले विधानसभा चुनाव और फिर अगले साल कर्नाटक,राजस्थान,एमपी,और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनावों के चलते यह अलग बात है पर पंजाब और दिल्ली के सिख नेता तो मानते हैं कि जिस अकड़ में अकाली दल ने गठबंधन तोड़ा उससे भाजपा उससे खुश नहीं हैं और साथ ही पार्टी इसी बहाने 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों की तैयारी भी कर लेना चाहती है। कहा तो यह भी जा रहा है कि कांग्रेस के नेता रहे सुनील जाखड को पार्टी में शामिल करा जहां भाजपा पंजाब में पांव जमा रही है वहीं वह उनके ज़रिए हरियाणा में भी पार्टी को फ़ायदा होते देख रही है । पंजाब में लोकसभा की 13 सीटें हैं ,पिछले लोकसभा चुनावों में पार्टी को गठबंधन के साथ चार सीटें और कांग्रेस को आठ सीटें मिलीं थीं और आप पार्टी को मात्र एक सीट मिली थी। इसी तरह पहले जहां पार्टी ने विधानसभा की 23सीटों पर चुनाव लड़ा था वहीं पिछले चुनावों में 65सीटों पर लड़ा। यानी सीटें भले पार्टी ने तीन की जगह दो ही जीतीं पर हौंसले बुलंद दिख रहे हैं और तभी वह पंजाब में अभी से रिहर्सल कर रही है। दरअसल भाजपा अभी तक पंजाब में जहां अकाली दल के छोटे भाई की हैसियत से चुनाव लड़ती आ रही थी वहीं अब वह चुनाव में बड़े भाई की हैसियत से चुनाव लड़ अपना दम दिखाना चाहती है। जाखड के बूते भाजपा पंजाब में क्या दम दिखा पाती है या हरियाणा में क्या हासिल कर लेगी ये बाद की बात पर फिलाहल तो पंजाब में अभी न तो कांग्रेस की ताक़त को कम आंका जा सकता है और न ही वहाँ मौजूदा आप पार्टी की सरकार की ताक़त को। रही बात हरियाणा की सो वहाँ भूपिन्दर सिंह हुड्डा को कमतर नहीं समझा जा सकता और साथ ही वहाँ की सरकार से भी कोई कम नाराज़गी नहीं है लोगों की। तब भला पंजाब में भाजपा की चल रही रिहर्सल क्या रंग दिखा पाएगी देखना यही है।
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