जयपुर। समाज में बढ़ती छेड़छाड़ की घटनाओं से परेशान एक सरकारी प्राथिमक स्कूल की शिक्षिका ने बालिकाओं, खास तौर पर दृष्टिबाधित और श्रवणबाधित बच्चों को आत्मरक्षा (Self Defense) के गुर सिखाने का बीड़ा उठाया है और इसके लिए वह विशेष तकनीक की मदद भी ले रही हैं।
अलवर जिले के राजगढ़ में खरखड़ा के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत 40 वर्षीय शिक्षिका आशा सुमन (
Asha Suman) ने पहली बार 2015 में पुलिस विभाग द्वारा आयोजित प्रशिक्षण शिविर में भाग लिया और यहीं से उन्हें बिना हथियारों के, लड़कियों को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण देने की प्रेरणा मिली। वह मानती हैं कि दिव्यांग लड़कियों को यौन उत्पीड़न का खतरा अधिक होता है इसलिए उन्हें ऐसी स्थिति में अपनी रक्षा करने के लिए प्रशिक्षित करना ज्यादा महत्वपूर्ण है।
ऐसी लड़कियों के सामने आने वाली चुनौती को महसूस करते हुए शिक्षिका ने 2019 में अपने खर्च पर मुंबई में आत्मरक्षा का एक विशेष प्रशिक्षण लिया और फिर दूसरों को प्रशिक्षित करने लगीं। शिक्षिका आशा सुमन ने पिछले तीन वर्षों में राज्य के विभिन्न हिस्सों से आईं ऐसी 300 से अधिक लड़कियों को प्रशिक्षित किया है। अधिकतर लड़कियों ने राज्य शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित वार्षिक प्रशिक्षण शिविरों में भाग लिया। अन्य लड़कियों को उनके द्वारा अलवर में प्रशिक्षित किया गया।
जयपुर में दिव्यांग, दृष्टिबाधित लड़कियों के लिये 6 से 15 अक्टूबर तक आयोजित, आत्मरक्षा संबंधी राजकीय प्रशिक्षण शिविर में 11 दृष्टिबाधित बालिकाओं सहित 55 दिव्यांग बालिकाओं को प्रशिक्षण दिया गया। यह प्रशिक्षण अलवर की आशा सुमन और झालावाड़ की एक अन्य प्रशिक्षक कृष्णा वर्मा ने दिया।
शिक्षिका सुमन ने बताया कि सामान्य लड़कियों की तुलना में दृष्टिबाधित लड़कियों के यौन शोषण का खतरा अधिक होता है। वे देख नहीं सकतीं, और न ही उन तकनीकों की कल्पना कर सकती हैं जो उन्हें सिखाई जाती हैं इसलिए उन्हें विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्होंने बताया कि लड़कियों को दिये जा रहे प्रशिक्षण को उनकी दैनिक गतिविधियों से जोड़ा जाता है और उन्हें पंच, किक, फॉरवर्ड और बैकवर्ड, हैंड मूवमेंट जैसे तरीके सिखाये जाते है जो न केवल उन्हें जोखिम वाली स्थिति का सामना करने के लिए सशक्त बनाते हैं बल्कि उनके आत्मविश्वास को भी बढ़ाते हैं। उनके अनुसार, लड़कियों को बताया गया कि जिस तरह धक्के से दरवाजा खोला जाता है उसकी तरह हमलावर को भी धक्का देना है।
सुमन ने बताया कि नेत्रहीन और श्रवण बाधित लड़कियों के साथ साथ अन्य तरह की दिव्यांग लड़कियों को भी बिना हथियार के आत्मरक्षा का प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्होंने बताया इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन्हें किस तरह की विकलांगता है। उन्हें जरूरत पड़ने पर खुद को बचाने के लिए अच्छी तरह से प्रशिक्षित किया जाता है जिससे वे तुरंत अपनी रक्षा कर सकती हैं और मदद के लिए अलार्म बजा सकती हैं।
शिक्षिका ने बताया कि आत्मरक्षा का प्रशिक्षण लेने के बाद सिर्फ लड़कियों ने ही नहीं, बल्कि उनके परिवार के सदस्यों ने भी आत्मविश्वास महसूस किया। जोधपुर से प्रशिक्षण लेने आई नेत्रहीन पूजा गोस्वामी ने बताया दस दिन के आत्मरक्षा प्रशिक्षण शिविर में इतनी सरलता से सब सिखाया गया कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते। मुझे लगता है कि ऐसा प्रशिक्षण सभी लड़कियों को लेना चाहिए। पूजा की मां ने बताया कि प्रशिक्षण से पहले उन्हें पूजा को लेकर हमेशा डर बना रहता था लेकिन अब मुझे भरोसा है कि वह अपनी रक्षा कर सकती है।
अलवर जिले से आई 12वीं कक्षा की नेत्रहीन छात्रा मोनिका ने बताया मुझे बिल्कुल दिखाई नहीं देता लेकिन प्रशिक्षण के बाद इतना भरोसा है कि मैं अपनी सुरक्षा खुद कर सकती हूं। हनुमानगढ़ से आई नेत्रहीन, 16 वर्षीय अनिता ने कहा हमें सिखाया गया है कि यदि हमलावर हमारे आगे है तो हम कैसे उसके बाल खींच सकते हैं, उसे कोहनी मार कर दूर कर सकते हैं या उसे धक्का दे सकते हैं।
धौलपुर से आईं छठी कक्षा की छात्रा 10 वर्षीय मनोरमा ने बताया कि छोटे बच्चों को डमी की मदद से आत्मरक्षा तकनीक का अभ्यास कराया गया। उसने कहा ‘‘हमें हमलावर पर हमला करना सिखाया गया। शिक्षा विभाग की ओर से शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिये 2021 में शिक्षिका सुमन को राजस्तरीय शिक्षक सम्मान दिया गया। उन्हें महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में कार्य करने के लिये जिला प्रशासन ने इंदिरा शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया है। (भाषा)
शिक्षिका दिव्यांग लड़कियों को सिखा रही आत्मरक्षा के गुर
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