राजस्थान की राजनीती में इन दिनों भीतर ही भीतर बहुत कुछ पक रहा है. भाजपा अपने मिशन 2023 को सफल बनाने के लिए लगातार काम कर रही है. वही प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया लगातार जनता के बीच जाकर संवाद कर रहे है.लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) की दिल्ली में भाजपा के शीर्ष नेताओ से हुई मुलाकात ने नए कयासों को जन्म दिया है.
दिल्ली से महारानी क्या मिला
हाल ही में वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) का दिल्ली में भाजपा के शीर्ष नेताओ से मिलना पूरे सूबे में चर्चा का विषय बना हुआ है. लेकिन राजनितिक जानकारों की माने तो वसुंधरा राजे दिल्ली से खाली हाथ लौटी है. क्योकि भाजपा के स्थापना दिवस पर पार्टी मुख्यालय पर हुए कार्यक्रम से वसुंधरा राजे ने दुरी बनाकर यह साफ जता दिया है की उनकी नाराजगी अभी भी बरक़रार है. ऐसे में माना जा रहा की दिल्ली में वसुंधरा राजे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को अपनी बात मनवा पाने में सफल नहीं हो पाई है इसलिए उन्होंने इस कार्यक्रम से दूरी बनाकर रखी है.
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एक ओर बड़े नेता की दिल्ली यात्रा
विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही मुख्यमंत्री (Vasundhara Raje) की रेस में शमिल सब नेता अपनी अपनी गोटिया सेट करने में लगे हुए है. वसुंधरा राजे के अलावा राजस्थान भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठोड ने भी हाल ही में दिल्ली जाकर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात करी है. मुलाकात में किन मुद्दों पर बात हुई यह तो बाहर नहीं आ पाया लेकिन जानकारों का कहना है कि राठौड़ राजस्थान की राजनीति के कद्दावर नेता है और वे अपने आप को मुख्यमंत्री की रेस में शामिल मानते है. ऐसे मे राजस्थान भाजपा में चल रही आपसी खींचतान के बीच राठौड़ अपनी संभावनाएं भी तलाशते है.साथ ही राठौड़ आपसी खींचतान से दूर फ़िलहाल संभल संभल कर कदम रख रहे है. राठौड के साथ अच्छी बात यह की है वह पूनिया गुट शेखावत गुट वसुंधरा गुट की तर्ज पर ग्रुपिंग पॉलिटिल्स से दूर हर जगह अपने आप को मैनेज करने की कोशिश कर रहे है.
[caption id="attachment_58503" align="alignnone" width="700"] Source- BJP[/caption]
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ना काहू से दोस्ती न काहू से बैर के रास्ते पर राठौड़
राजस्थान की राजनीति पर गहरी समझ रखे वाले लोग मानते है की राठौड़ मुद्दो की गंभीर समझ रखने वाले नेता है. साथ ही उसके पास एक लम्बा राजनितिक अनुभव भी है. वे जो कुछ भी करते है सोच समझ कर करते है. पार्टी के अंदर गुटबाजी और खुलकर अपनी महत्वकांक्षाये जाहिर न करना राठौड़ का एक सकारात्मक पक्ष है.ऐसे में जानकारों का कहना है कि अगर भाजपा में बंदरबांट की लड़ाई हुई तो उसका फायदा राठौड़ को मिल सकता है. (Vasundhara Raje)
वसुंधरा को कैसे मनाएंगे राठौड़
अब सवाल यह है कि राजेंद्र राठौड़ वसुंधरा फेक्टर से कैसे मैनेज कर पाएंगे तो जानकारों का कहना है कि राठौड़ वसुंधरा के दोनों कार्यकाल में उनके बेहद करीबी रहे है।हालांकि अब पहले वाली नजदीकियां तो नही रही लेकिन अभी तक दोनों ही नेताओ और उनके समर्थकों के बीच किसी भी तरह की बयानबाजी औऱ उठापठक देखने को नही मिली है।वही दूसरी तरफ पुनिया गुट और शेखावत गुट से वसुंधरा की काफी बार खुली अदावत हो चुकी है. (Vasundhara Raje)
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