अपन तो कहेंगे

यूपीः गरीब जीवन और तमंचे से तूफान!

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यूपीः गरीब जीवन और तमंचे से तूफान!
दीये और तूफान की लड़ाई-4: उत्तर प्रदेश में भाजपाई तूफान सर्वत्र है। वह अखबारों में है। नैरेटिव, डिबेट और रिपोर्टिंग में है। भाषणों में, सर्वे और अनुमानों मतलब सबमें है। इसे यदि बूझना है तो प्रदेश के प्रमुख समाचारपत्रों का पहला पेज जरूर देखा करें। विपक्ष मिलेगा ही नहीं। यदि मिला भी तो वह बड़े-बड़े हेडिंग में ‘तमंचावादी’, ‘दंगाई’, ‘माफियावादी’ जुमलों में! जाहिर है भगवा सुनामी में भारत का लोकतंत्र, चुनाव और पत्रकारिता का कैसा विध्वंस है, इसे यूपी के अखबारों के पहले पेज से बूझ सकते हैं। अखबारों में विपक्ष या तो नदारद या हाशिए में। तभी भारत को स्वतंत्र-निष्पक्ष चुनाव की परिभाषा बदल लेनी चाहिए। चुनाव का अर्थ अब है सत्तावान द्वारा अपनी सत्ता की पुनर्पुष्टि का एक प्रायोजन, एक महोत्सव! मतलब सत्य, बुद्धि, मानव विवेक, सभ्य-भद्र लोकतांत्रिक व्यवहार सबकी ऐसी तैसी। कल्पना करें रामजी का वक्त होता और धोबी यदि उनसे सवाल पूछता तो उसे आज का भगवा यूपी क्या करार देता? क्या तमंचावादी, दंगाई, माफियावादी नहीं? आखिर धोबी (प्रजा) की यह कैसे हिम्मत जो राजा पर वह सोचें और सत्य जानने के अधिकार में सवाल करे? Up asseimbly election तभी मैं उत्तर प्रदेश के चुनाव को दीये और तूफान की लड़ाई मानता हूं। अखिलेश यादव और उनके एलायंस व विपक्ष के पास कुछ भी नहीं है। न अखबार-मीडिया में स्पेस है, न उसके प्रति पॉजिटिविटी है और न तामझाम है न पैसा! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सात साला कार्यकाल की नंबर एक पहचान और प्रामाणिक उपलब्धि यहीं है जो प्रजा जहां झूठ, महामारी और कंगाली में जी रही है तो उसकी तरफ से सवाल पूछने, उसके विकल्प की लोकतांत्रिक जरूरत वाला विपक्ष ऑक्सीजन का भी मोहताज! तभी चुनाव बहुत असमान है। अखिलेश यादव ने मंगलवार को प्रेस कांफ्रेंस कर तीन सौ यूनिट फ्री बिजली का वादा किया। उसका ब्योरा जानने के लिए मैंने प्रदेश के तीनों प्रमुख अखबारों के लखनऊ ई-पेपर को इंटरनेट पर तलाशा तो किसी के भी पहले पेज पर अखिलेश की घोषणा-खबर का जिक्र नहीं। पेज पूरी तरह मोदी-योगी को समर्पित। या तो प्रधानमंत्री की जान की चिंता करते हुए या वाराणसी में कार्यकर्ताओं को मोदी के संबोधन की बैनर हेडिंग। गौर करें इन हेडलाइंस पर- ‘प्रधानमंत्री समेत कई नेता आंतकियों के निशाने पर’। ‘वोट की ताकत से ही मैं व योगी कुछ कर पाए- मोदी’। ‘विकास व राष्ट्रवाद जीतेगा, दंगाई और माफियावादी हारेंगे- योगी’। ‘तमंचावादी हारेंगे, प्रदेश जीतेगा– योगी’। हर दिन, हर सुबह अखबारों से यह खुराक तो शाम को टीवी चैनलों पर कैराना में सपा के मुस्लिम टिकट पर हल्ले और उससे अखिलेश यादव को तमंचावादी करार देने वाला नैरेटिव। यदि सात मार्च तक उत्तर प्रदेश के मतदाताओं को लगातार यहीं पढ़ने-सोचने को मिलता रहा तो दस मार्च को ईवीएम की मशीनों से भी वहीं निकलेगा जैसे सत्ता मीडिया से लिखवा रही है कि तमंचावादी हारेंगे! इसलिए अखिलेश यादव की तीन सौ यूनिट फ्री बिजली की घोषणा पर सवाल है कि क्या विपक्ष जनता के पांच साला अनुभव के एक मुद्दे महंगाई पर भी कोई जन तरंग बना पाएगा? अपना मानना है विपक्ष के पास बतौर ताकत सिर्फ और सिर्फ जनता का अनुभव है। यह अनुभव मोदी-योगी-भाजपा के संसाधनों और रणनीति से बेजुबान, गूंगा बना है। कैसे लोगों ने पांच साल गुजारे? इसकी खबर और चर्चा नहीं है। मंहगाई ने लोगों का जीना बेहाल किया है, महामारी सबको बार-बार बेहाल बनाते हुए है, लोग बेमौत मरे हैं मगर इसका अनुभव भी मुद्दा नहीं। ऐसे ही बेरोजगारी और पढ़ाई के भविष्य ने घर-घर चिंता बनाई है, काम-धंधों के सूखे ने सबकी जेबों को खाली किया है लेकिन यह हककीत भी इसलिए बेमतलब क्योंकि योगी-मोदी ने तमंचावादियों को हराना हिंदू जीवन की प्रथम प्राथमिकता बना रखी है, कम से कम नैरेटिव में तो।  Up asseimbly election Up asseimbly election Read also हवा, भगदड़ में 58 सीटों की जमीन! सो, भाजपा का तूफान ‘तमंचे’ से है। तमंचे में पानीपत लड़ाई। इधर सत्ता का तमंचा उधर कथित देशद्रोहियों का तमंचा! योगी आदित्यनाथ, अमित शाह और नरेंद्र मोदी का यहीं ब्रह्म सूत्र है, यही वीर रस है कि हिंदुओं जिंदगी की चिंता छोड़ो, महंगाई-बेरोजगारी-बेहाली-बेमौत मौत अनुभवों को भूलो और वोट के तमंचे से ठोको। तमंचावादी सत्ता पर वापिस ठप्पा लगाओ ताकि पानीपत की अगली लड़ाई की तैयारियां रूकें नहीं। तभी योगी के ‘तमंचेवादी’ जुमले पर यूपी के चुनावी दंगल को रोटी बनाम तमंचे, दीये बनाम तूफान की लड़ाई में बूझ सकते हैं। लड़ाई की इस तासीर में भाजपा को यदि कोई परेशानी है तो वह इतनी भर है कि लोग पिछले पांच सालों की जिंदगी के अनुभवों को कैसे भी हों, भूलें। महंगाई, बेरोजगारी, बरबादी, बीमारी की बदकिस्मती का रोना छोड़ कर वे ‘ठाकुर’ योगी के ‘ठोको’ राज के वीर रस के तराने गाएं! हिंदुओं में यह समझ बनानी है कि ‘ठाकुर’ राजा योगी आदित्यनाथ ने पांच वर्षों में सभी जातियों को वर्ण व्यवस्था, उनकी हैसियत के अनुसार रखा और विधर्मियों-देशद्रोहियों को पुलिसिया तमंचों से ठुकवाया तो ऐसा रामराज्य पिछले 75 वर्षों में कब भोगा। ब्राह्मणों उठों, तुम्हारी कपूत संतानों, माफियाओं को पुलिसिया तमंचों ने ठोका है तो योगीजी का अभिनंदन करो न कि विलाप बनाओ की योगी-मोदी की सत्ता में हम मान-सम्मान में भूखे मर रहे हैं!  दूसरे शब्दों में ले देकर मोदी-योगी को ब्राह्मण, जाट, ओबीसी जातियों में वीर रस के इंजेक्शन भर लगाने हैं। पांच साल की रोजमर्रा की जिंदगी की छोटी-छोटी बातों के अनुभव को भुलवा कर लोगों के खून में वीर रस दौड़ाना है। यह चिंता और यह भय बनवाना है कि यदि ‘वे’ जीते तो क्या होगा? तब बहू-बेटियां सुरक्षित नहीं रहेंगी। लॉ एंड आर्डर बिगड जाएगा। राम मंदिर नहीं बनेगा। मुसलमान से हम हारेंगे। और पानीपत की अगली लड़ाई लड़ने लायक हिंदू नहीं रहेगा। सो, जागो हिंदुओं, जागो! बज उठी रणभेरी। पहनो फिर केसरिया। कलह भूलो, भूख भूलो, बीमारी-महंगाई-बेरोजगारी भूलो और धारो तमंचा (वोट), क्योंकि फड़क रही है बाहें हमारी! मोदी कब से पुकार रहे, योगी कब से आवाज दे रहे, अब जल जाओ जीवन की ज्वाला में! जीवन की गुरबत में! मैं धाराप्रवाह कहां से कहां पहुंच गया। लेकिन सत्य है कि हम हिंदू ऐसे ही आत्मघाती वीर रस, चारणों की तुकबंदी व फूहड़पन से इतिहास में बार-बार मरे हैं तब भला सन् 2022 में क्यों नहीं फिर मरें! हिंदू हमेशा भयाकुलता, मूर्खताओं, झूठ की गुरबत से सदियों गुलाम रहा है। दुनिया में ऐसी कोई नस्ल नहीं है, कोई देश नहीं है, जिसकी सरकार खुद अपने ही देश के भीतर चुनाव से हिंदू-मुसलमान की लड़ाई पकाए। भविष्य के लिए वह अपने हाथों पानीपत की अगली लड़ाई की क्रमिक भूमिका बनाए। सोचें, 2014 का चुनाव कैसे था, फिर 2017 का कैसे हुआ और अब 2022 में कितने फूहड़ व भदेस ढंग से भाजपा के प्रवक्ता हिंदू को ललकारते व मुसलमान को टारगटे बनाते हुए हैं! दुनिया के किसी देश में चुनाव को इस तरह लड़ते हुए क्या कभी जाना और सुना गया? हिंदू वोट के तमंचे से मुस्लिम तमंचावादियों को हराने की फूहड़, विकृत चुनावी राजनीति से भविष्य में भारत को क्या नुकसान होगा, इसे वक्त निश्चित ही बताएगा। लेकिन फिलहाल तमंचों की नोक पर मीडिया और सत्ता से जो तूफान है उसके चलते भविष्य पर सोचना ही फिजूल है। Up asseimbly election
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