नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय (Uttarakhand High Court) ने नैनीताल (Nainital) के हरे-भरे जंगलों में स्थित जिलिंग एस्टेट (Jilling Estate) में सभी विकास (development) और निर्माण गतिविधियों (construction activities) पर रोक लगा दी है।
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आर सी खुल्बे की खंडपीठ ने मंगलवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया। याचिका में आरोप लगाया गया है कि क्षेत्र में हो रहे अंधाधुंध निर्माण से वन आवरण तेजी से कम हो रहा है।
देवान्या प्राइवेट रिजॉर्ट द्वारा 8.5 हेक्टेयर क्षेत्र में विकास गतिविधियों के लिए एक जेसीबी मशीन लगाए जाने के तथ्य का संज्ञान लेते हुए खंडपीठ ने सभी निर्माण गतिविधियों पर रोक लगा दी और पूरे जिलिंग एस्टेट का निरीक्षण करने के निर्देश दिए। अदालत ने क्षेत्र की 2015, 2018 और 2022 की गूगल तस्वीरों का भी अध्ययन किया जिनमें वन आवरण में कमी दिखाई देती है।
उच्च न्यायालय ने भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी द्विजेंद्र कुमार शर्मा को निरीक्षण के लिए ‘कोर्ट कमिश्नर’ नियुक्त किया है। पूर्व में इस अर्जी को राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने खारिज कर दिया था। हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने क्षेत्र का सर्वेक्षण और सीमांकन करने के निर्देश दिए थे। उच्च न्यायालय ने कहा कि सर्वेक्षण के बाद दोषी पक्ष को उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन न करने के लिए अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया जा सकता है। (भाषा)
नैनीताल के जिलिंग एस्टेट में निर्माण गतिविधियों पर रोक
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