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Shivratri 2022 : शिव और शक्ति के मिलन की साक्षी ऐसी जगह जहां की ज्वाला आजतक जल रही है

ByNI Desk,
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Shivratri 2022 : शिव और शक्ति के मिलन की साक्षी ऐसी जगह जहां की ज्वाला आजतक जल रही है
शिवरात्रि यानि भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह। आज के ही दिन शिवशक्ति एक हुए थे। वैसे तो भगवान शिव का हर मंदिर चमत्कारी है। लेकिन एक ऐसा रहस्यमयी मंदिर जहां हुआ था शिव पार्वती का विवाह। जहां दोनों एक दूसरे के साथ जन्म-जनमांतर तक कस्मों और वादों निभाने का वादा किया था। आज हम आपको इस रहस्यमयी मंदिर के बारे में बताएंगे...धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव और माता पर्वती की शादी सतयुग में हुई थी। कहा जाता है कि सावन महीने में शिवशक्ति शादी के बंधन में बंधे थे। ससुराल जाने के बाद माता पार्वती पहली बार शारदीय नवरात्री में मायके आई थी। मान्यता है कि हर साल शारदीय नवरात्र में माता पार्वती मायके आती है। मान्यताएं तो यह भी कहती है कि माता पार्वती और भगवान शिव की शादी त्रियुगीनारायण मंदिर में हुई थी। ये पवित्र स्थान देवभूमि उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। माना जाता है कि जब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था तब ये हिमवत की राजधानी थी। यहां हर साल दिसंबर के महीने में एकादशी के दिन मेले का आयोजन भी किया जाता है। ( Shivratri 2022 )  also read: भगवान शिव की पूजा में गलती से भी ना करें या काम, वरना…

हवन कुंड में आज भी विवाह की अग्नि जल रही 

धार्मिक मान्यताों के अनुसार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए माता पार्वती ने त्रियुगी नारायण मंदिर से आगे गौरीकुंड के पास तपस्या की थी। कहा जाता है कि माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने त्रियुगीनारायण मंदिर में विवाह किया था। बताया जाता है कि उस हवन कुंड में आज भी वो ही अग्नि जल रही है। जिसे साक्षा मानकर भगवान शिव और माता पार्वती ने विवाह किया था। भगवान शिव के विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां पर स्नान किया था। इसलिए यहां पर तीन कुंड बने हुये है..रूद्र कुंंड, विष्णु कुंड और बह्मा कुंड के नाम से जाना जाता है। इन कुंड में जल सरस्वती कुंड से आया है। यह भी कहा जाता है कि कई युगों से यहां अग्नि प्रजवल्लित हो रही है, इसलिए यहां का नाम त्रियुगी नारायण मंदिर पड़ा। उत्तराखंड में मौजूद रूद्रप्रयाग में त्रियुगीनारायण मंदिर कई मायनों में आज भी कई रहस्य समेटे हुए है। शिव-पार्वती के इस विवाह स्थल के साथ ही इस मंदिर में की अन्य चीजे है जो भक्तों को यहां खींच लाती है। यहां आने वाले नि:संतान दंपति को संतान प्राप्ति होती है। विवाहित जोड़ों का जीवन भी यहां आकर सफल हो जाता है।  यह मंदिर बेहद पवित्र और विशेष पौराणिक माना गया है।  

भगवान विष्णु बने भाई तो बह्मा जी बने पुरोहित ( Shivratri 2022 )

मंदिर के अंदर सदियों से अग्नि जल रही है। इस अग्नि के दर्शन कर यहां से भबूत लेकर जाते है। ताकि उनके जीवन में शिव-पार्वती जैसा प्रेम बना रहे है। त्रियुगीनारायण मंदिर में जब शिव-पार्वती ने जब विवाह किया था तो उस समय कन्यादान से लेकर अन्य सभी रीतियां भगवान विष्णु ने निभाई थी। माता पार्वती के भाई बन भगवान श्री हरि ने विवाह संपन्न कराया था। जबकि बह्मा जी ने पुरोहित बनकर विवाह संपन्न करया था। विवाह स्थल को बह्माशिला के नाम से जाना जाता है।  यह मंदिर के सामने स्थित है। ऐसा मान्यता है कि यहां पर मौजूद तीनों कुंड में स्नान करने से नि:संतान से मुक्ति मिल जाती है। यहां की भबूत को बेहद शुभ माना जाता है।  पौराणिक कथा के मुताबिक इंद्रासन पाने के लिए राजा बलि को 100 यज्ञ करने पड़ थे जिसमें से बलि ने 99 यज्ञ पूरे किये थे। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर उसे रोक दिया था। जिससे बलि का यज्ञ भंग हो गया था। यहां विष्णु भगवान वामन देवता के रूप में भी विराजमान है। और पूजे जाते है। त्रियुगीनारायण मंदिर त्रेतायुग से स्थापित है जबकि केदारनाथ मंदिर और बद्रीनाथ मंदिर द्वापर युग में स्थापित हुये थे। इस स्थान पर श्री हरि ने वामन देवता का अवतार लिया था। ( Shivratri 2022 ) 
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