New Delhi: देश में कोरोना संक्रमण पर काम कर रहे वैज्ञानिकों ने सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय को आगाह किया था कि देश में कोरोना की तीसरी लहर से बच्चों को खासा नुकसान हो सकता है. अब वैज्ञानिकों की ये भविष्यवाणी सच साबित होती नजर आ रही है. परेशानी की बात ये है कि कोरोना संक्रमण के संकट के बीच ब्लैक फंगस भी लोगों को अपना शिकार बना रहा है. बड़े-बुजुर्गों के बाद अब यह ब्लैक फंगस बच्चों में भी हो रहा है. सूत्राें के अनुसार, 13 साल का बच्चा ब्लैक फंगस (म्यूकरमाइकोसिस) का पहला शिकार हुआ है. यह मामला गुजरात के अहमदाबाद की है. बच्चें में ब्लैक फंगस की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद आज शुक्रवार को अहमदाबाद के एप्पल चिल्ड्रेन अस्पताल में ऑपरेशन किया गया फिलहाल बच्चा सुरक्षित है. मालूम हो कि बच्चा इससे पहले कोरोना पॉजिटिव हो चुका था और उसकी मां की मौत भी कोरोना के कारण हो चुकी है.
कर्नाटक में तेजी से बच्चों में फैल रहा है कोरोना
कर्नाटक से पिछले दो महीने में जो आंकड़े सामने आये हैं उसके अनुसार 0-9 साल तक के बच्चों में कोरोना का संक्रमण अब तक हुए संक्रमण का 143 प्रतिशत है. वहीं 10-19 साल तक के बच्चों में यह संक्रमण 160 प्रतिशत है. कर्नाटक के वार रूम से जो जानकारी मिली है उसके अनुसार मार्च 18 से मई 18 तारीख तक प्रदेश में 0-9 साल तक के 39, 846 बच्चे और 10-19 साल तक के एक लाख से अधिक बच्चे कोरोना पाॅजिटिव पाये गये. हालांकि बच्चों में मौत की दर काफी कम है. मार्च 18 तक 28 बच्चों की मौत हुई थी, जबकि 18 मई तक 15 बच्चों की मौत हुई. टाइम्स आॉफ इंडिया में छपी खबर के अनुसार किशोरों में मौत का आंकड़ा थोड़ा ज्यादा है जो 46-62 के बीच 18 मई तक देखा गया है.
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किशोरों में दोगुणा हुआ ये आंकड़ा
कोरोना की दूसरी लहर में बच्चों में मौत का आंकड़ा पहले से तिगुना हुआ है जबकि किशोरों में यह आंकड़ा दोगुणा है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि बच्चों में संक्रमण बहुत ही आसानी से फैल जाता है और देखा गया है कि वे अपने घर के बड़ों से ही संक्रमित होते हैं.डाॅक्टरों का कहना है कि बच्चों में जैसे ही कुछ लक्षण दिखे उसके अभिभावकों को उन्हें आइसोलेट कर देना चाहिए. बाल रोग विशेषज्ञों का मानना है कि दस में से मात्र एक बच्चे को ही अस्पताल में भरती करने की जरूरत होती है. वे आसानी से घर में ठीक हो सकते हैं, लेकिन जरूरत इस बात की है कि उनकी देखरेख सही से हो.डाॅक्टरोें का कहना है कि अगर बच्चे को बुखार, दस्त, कफ और उल्टी जैसे लक्षण दिखें तो उनका कोरोना टेस्ट कराना चाहिए, लेकिन उनका सीटी स्कैन, डी डाइमर टेस्ट और ब्लड टेस्ट बिना डाॅक्टर के परामर्श के नहीं करना चाहिए.
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