
Delhi: कोविड टीकाकरण 16 जून 2021 से बड़े जोरोंशोरों के साथ दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान के रूप में चला था। फरवरी आते-आते यह रफ्तार फीकी पड़ने लगी और कोरोना मरीजों का संख्या बढ़ने लगी। जब टीकाकरण की बात पहुंची मार्च के महीनें में तो रफ्तार और भी सुस्त पड़ गई। अप्रैल आते-आते टीकाकरण अभियान रेंग कर चलने लगा। क्योंकि देश कोरोना वैक्सीन की भारी कमी होने लगी। जब मई की दहलीज पर थे तो स्वास्थय सेवाओं के साथ टीकाकरण अभियान भी वेंटिलेटर पर पहुंच गया था। उसके साथ ही कितने नागरिक वेंटिलेटर पर पहुंचे..यह तो छोड़ दीजिए क्योंकि हमें तो शमशान घाट पहुंचने वालों का सही आंकड़ा सहीं आंकड़ा ही नहीं पता तो यह बात करके जिम्मेदारों को शर्मिंदा क्यों करना। अति उत्साह के साथ खुले वैक्सीनेशन सेंटर उतने ही खामोशी से बंद होने लगे और जो थोड़ी बहुत वैक्सीन के स्टॉक के साथ जिंदा थे वहां लगी भीड़ ने सामाजिक दूरियों का मज़ाक बना डाला।
भारत टीकाकरण के क्षेत्र में नया खिलाड़ी नहीं
ऐसा तो नहीं है कि देश में पहली बार टीकाकरण अभियान चला हो तो ऐसी गलती हो गई। टीकाकरण के क्षेत्र में भारत कोई नया खिलाड़ी नहीं है। फिर भी टीकाकरण अभियान जिस गति से चला उससे तो अनुभवहीनता की गंध आती है। जबकि ऐसा है नहीं। चेचक, प्लस पोलियो ना जानें ऐसे कितने ही अभियान देश में चले है। भारत ने सभी अभियानों में किसी मंजे हुए खिलाड़ी की तरह प्रदर्शन किया है और इन बीमारियों को कुचला है। तो जब समय की मांग यह थी कि उसी अनुभव शक्ति का परिचय एक बार फिर दिया जाए तो ऐसे में कोरोना टीकाकरण अभियान के कदम क्यों डगमगाने लगे।
एक दिन में कोरोड़ों बच्चों को दी खुराक
प्लस पोलियो की खुराक देने की शुरुआत बहुत सालों पहले हो चुकी थी और आज भी दी जा रही हैं। इसी के दम पर भारत ने 2014 में प्लस पोलियो मक्त देशों की सूची में अपना नाम बना पाया। देश के लिए यह गौरव का क्षण और याद रखे जाने वाला पल था। प्लस पोलियो टीकाकरण अभियान में एक दिन में करोंड़ों बच्चों को प्लस पोलियो की खुराक दी जाती थी। आप कल्पना कीजिए कि यह उस दौर की बात है जब कोई मोबाइल जैसी टेक्नॉलॉजी नहीं थी जिससे रजिस्ट्रेशन करवाया जा सकें। जब कोई आधार कार्ड जैसी बात नहीं थी फिर भी प्लस पोलियो की खुराक पिलाने चिकित्सा विभाग के कर्मचारी घर-घर जाया करते थे। कोविड-19 के टीकाकरण में गांवों की छवि को भी थोड़ी हानि पहुंची है। जब समाचारों में लगातार ऐसी खबरें आई कि ग्रामीण टीका लहवाने से डर रहे है, भाग रहे है। समाचार सभी ने देखे है और मन ही मन यह सोचा भी है कि ग्रामीणों का व्यवहार उचित नहीं। लेकिन बहुत कम लोग ऐसे है जिन्होनें यह सोचा कि ग्रामीण है। व्यवहार क्यों कर रहे है।
टीकाकरण का गांवों में खौफ क्यों
कोरोना के बढ़ते मामलों में जब सभी के पास दो विकल्प थे कि या तो कोरोना का टीका लगवाएं या फिर कोरोना संक्रमित होने के भय में जीएं। ऐसें में भी देश के ग्रामीणों ने वैक्सीनेशन की राह क्यों नहीं चुनी। आखिर कौनसी कड़ी कमजोर रह गई कि भारत अपने ही गांव वासियों को यह विश्वास नहीं दिला पाया कि वैक्सीन सुरक्षित है। जब दुनियाभर के कई देश भारत से वैक्सीन लेने को तैयार खड़े थे तब अपनों ने ही वैक्सीन पर भरोसा क्यों नहीं किया।तो कहीं कोई चूक तो नहीं रह गई कि टीकाकरण से संबंधित सही तथ्य गांवों में पहुंचने से पहले ही टीकाकरण से संबंधित अफवाहें फैल गई और देश में टीकाकरण अभियान को कमजोर कर दिया। भारत में पहले भी बहुत सी बीमारियां आई है ग्रामीण और शहर को लोगों ने मिलकर उन बीमारियों को भगाया है। और प्रत्येक अभियान में सरकार का साथ दिया है तो कोरोना के आने पर इतना अवैज्ञानिक दृष्टिकोण क्यों अपना लिया। लेकिन हाल ही में हुई पीएम मोदी की वैक्सीनेशन संबंधी घोषणाओं ने सभी घावों पर प्राथमिक चिकित्सा(मरहम) का काम किया है।
हम होंगे कामयाब
Slow and steady wins the race- ऐसा हम सभी ने सुना है पढा है और माना भी है। जब रेस कोरोना के खिलाफ जंग जीतने की है तो Slow रहकर नहीं जीता जा सकता है। भारत में विश्व की दूसरी सबसे ज्यादा जनसंख्या व भारत विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तो महामारी से लड़ने का एक हथियार टीकाकरण में भी उतनाा ही मजबूत बनना चाहिए। देर आए पर दुरूस्त आए और दपरूस्त कितना आए ये तो आने वाले समय में टीकाकरण की गति और टीके उपलब्धता से निर्धारित होगा। और कामना यही है कि यह इतना दुरूस्त हो कि कोरोना की तीसरी लहर के दस्तक देने से पहले ही पस्त हो जाएं।