राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

वायु प्रदूषण की चुनौती

वैसे तो हवा में प्रदूषकों की मात्रा का 50 अंक से ऊपर जाना ही हानिकारक होता है, लेकिन यह 300 से ऊपर पहुंच जाए, तो फिर सांस लेना भी खतरनाक हो जाता है। दिल्ली में हर साल यह मात्रा 300 से ऊपर पहुंचती है।

दिल्ली और आसपास के इलाकों को इस वर्ष अब तक राहत महसूस हो रही थी। इस साल थोड़े-थोड़े अंतराल पर पर्याप्त बारिश होती रही, जिससे कई वर्षों से चली आ रही वायु प्रदूषण की समस्या यहां के लोगों को नहीं झेलनी पड़ी। लेकिन अक्टूबर आते ही फिर से वायु प्रदूषित होने की खबरें आने लगीं। यह चिंता इस हफ्ते सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची है। तो न्यायायल ने वायु प्रदूषण प्रबंधन आयोग से हवा साफ रखने के लिए उठाए गए कदमों पर जवाब मांगा है। कोर्ट ने पराली जलाने और अन्य कारणों से होने वाले प्रदूषण के बारे में न्यामित्र के रूप में सुप्रीम कोर्ट की सहायता कर रही वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह की दलीलों को सुना। कोर्ट को बताया गया कि ठंड की शुरुआत और दीवाली आने के साथ ही वायु प्रदूषण की समस्या और बढ़ने वाली है। इसके संकेत पहले से मिल रहे हैं। इस बीच दिल्ली सरकार ने शीतकालीन कार्ययोजना के तहत सात अक्टूबर से सात नवंबर तक एंटी डस्ट कैंपेन की शुरूआत की है।

बहरहाल, पराली जलाने की समस्या का कोई समाधान अभी सामने नहीं है। खेतों से फसल काट लेने के बाद पराली को जलाना पंजाब और हरियाणा सहित कई दूसरे राज्यों में भी आम बात है। इसका धुआं दूर-दूर तक फैलता है। इसके अलावा बिना पूरे एहतियाती उपाय किए निर्माण कार्य जारी रहने के कारण हवा में धूल मिलती है। ऊपर से ठंड के कारण धुंध उन पर आ बैठती है। निर्माण के कारण उड़ने वाली धूल, गाड़ियों से निकला धुआं और खेतों में पराली जलने से उठा धुआं स्मॉग की चादर निर्मित करते हैं। धुंध, धुएं और धूल से मिल कर ठंडी हवा भारी हो जाती है और आसमान पर स्मॉग छा जाता है। वैसे तो हवा में प्रदूषकों की मात्रा का 50 अंक से ऊपर जाना ही हानिकारक होता है, लेकिन यह 300 से ऊपर पहुंच जाए, तो फिर सांस लेना भी खतरनाक हो जाता है। दिल्ली में हर साल यह मात्रा 300 से ऊपर पहुंचती है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस कारण तरह-तरह की बीमारियां पनप रही हैं। इसलिए वायु प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता वाजिब है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *