चूंकि ऐसी खबर पहली बार आई है, इसलिए फिलहाल इसने ध्यान खींचा है। खबर यह है कि एशिया कप फुटबॉल के क्वालीफाइंग मैचों के लिए टीम का चयन भारतीय टीम के कोच ने एक ज्योतिषी की सलाह पर किया।
देश में जिस तरह के माहौल और सोच को प्रोत्साहित किया जा रहा है, उसके बीच यह होना ही है। चूंकि ऐसी खबर पहली बार आई है, इसलिए फिलहाल इसने ध्यान खींचा है। खबर यह है कि एशिया कप फुटबॉल के क्वालीफाइंग मैचों के लिए टीम का चयन भारतीय टीम के कोच ने एक ज्योतिषी की सलाह पर किया। इसके लिए उस ज्योतिषी को भारतीय फुटबॉल संघ ने बकायदा करीब 15 लाख रुपयों का भुगतान किया। कोच इगोर स्टिमैक सर्बियाई हैं। लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि विदेशी खिलाड़ी या कोच भी कोई कम अंधविश्वासी नहीं होते। वैसे भी खेलना या कोचिंग उनके लिए नौकरी है। और अगर उनका बॉस ज्योतिषी का सलाह लेने के लिए कहे, तो वे उसकी हुक्म-उदूली नहीं कर सकते। अब सामने यह आया है कि स्टिमैक को ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन के तत्कालीन महासचिव कुशल दास ने ज्योतिषी की सलाह लेने को कहा था। तो हर मैच के पहले कोच संभावित टीम के खिलाड़ियों के नाम, उनकी जन्म तिथि, मैच का समय आदि ज्योतिषी को भेज देते थे।
ज्योतिषी सितारों का आकलन कर जिन खिलाड़ियों के बारे में बताता था कि उस रोज उसका अच्छा दिन है, उन्हें ही टीम में रखा गया। ये दीगर बात है कि इसके बावजूद भारतीय टीम जॉर्डन से मैच हार गई। एशिया में फुटबॉल में मजबूत बहुत देश हैं। भारत के लिए हाल में इसे एक बड़ी सफलता समझा गया है कि भारतीय टीम फीफा की रैंकिंग में टॉप 100 देशों में शामिल हो गई है। टीम अब एशिया कप के लिए क्वालीफाई भी कर चुकी है। अब मुद्दा यह है कि हाल की ये सफलताएं खिलाड़ियों की मेहनत या किसी उभर रहे सिस्टम का नतीजा हैं, या फिर सारा खेल सितारों का या सितारों के मुताबिक चलने का है? बहरहाल, जब वैज्ञानिकों को खुद पर भरोसा ना रहे और अंतरिक्ष यान छोड़ने से पहले कर्मकांड का सहारा लेते हों, तो आखिर खेल प्रशासकों या कोच को ही अकेले क्यों कठघरे में खड़ा क्यों किया जाए। जब वैज्ञानिक सोच के प्रति लेकर एक विरोध भाव का माहौल है, तो ऐसी बातें होना स्वाभाविक ही है।