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मुद्दा सिर्फ कानूनी नहीं

आशा है कि सर्वोच्च न्यायालय पुनरीक्षण संबंधी पूरे संदर्भ पर विचार करेगा। यानी इस प्रकरण पर सुनवाई वह सिर्फ कानूनी पहलुओं की कसौटी पर नहीं करेगा, बल्कि चुनाव प्रक्रिया में सबका भरोसा बना रहे, इस अपेक्षा को भी ध्यान में रखेगा।

बिहार में मतदाता सूची के चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का मामला अब सुप्रीम कोर्ट के पास है। अनेक विपक्षी दलों और सिविल सोसायटी संगठनों की इस प्रक्रिया के खिलाफ दायर याचिकाओं पर गुरुवार को कोर्ट सुनवाई करेगा। उस दौरान निगाह सबसे पहले यह देखने पर पर होगी कि अदालत पुनरीक्षण पर फिलहाल रोक लगाती है या इससे जुड़े कानूनी एवं संवैधानिक पहलुओं का परीक्षण करने की लंबी प्रक्रिया में जाती है। न्यायालय ने स्टे नहीं दिया, तो मतलब होगा कि पुनरीक्षण का कार्य आगे बढ़ेगा, जिसको लेकर कई हलकों में अनेक संदेह और गहरी आशंकाएं व्याप्त हो गई हैं।

जहां तक एसआईआर का प्रश्न है, तो उस पर शायद ही किसी को एतराज हो। आपत्ति इस धारणा के कारण खड़ी हुई है कि निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची पुनरीक्षण को एक तरह से नागरिकता प्रमाण पत्र तैयार करने के प्रयास में तब्दील कर दिया है। सबसे ज्यादा नाराजगी इस पर है कि पुनरीक्षण प्रक्रिया में आधार कार्ड को उपयुक्त दस्तावेज नहीं माना जा रहा है। इसके बदले कुछ श्रेणी के मतदाताओं से माता- पिता तक के जन्म प्रमाण पत्र की मांग की जा रही है। आयोग के मुताबिक इसके पीछे मकसद अवैध मतदाताओं के नाम सूची से हटाना है।

मगर आयोग ने यह नहीं बताया है कि ऐसे नाम मतदाता सूची में कैसे शामिल हुए और उस अवैध प्रक्रिया के लिए क्या उसने किसी की जवाबदेही तय की है? पुनरीक्षण के लिए जरूरी दस्तावेजों को तुरंत देना है या नहीं, इस बारे में पहले अखबारों में छपे इश्तहार और फिर आयोग द्वारा उसके विपरीत जारी स्पष्टीकरण ने भ्रम को और गहरा करने में योगदान दिया है। ऐसे में यह मुद्दा सिर्फ कानूनी नहीं रह गया है। बल्कि इस क्रम में निर्वाचन आयोग की मंशा और देश की चुनाव प्रक्रिया को लेकर नए सवाल खड़े हुए हैं। आशा है कि सर्वोच्च न्यायालय सुनवाई के दौरान इस पूरे संदर्भ को ध्यान में रखेगा। यानी इस प्रकरण पर विचार वह सिर्फ कानूनी पहलुओं की कसौटी पर नहीं करेगा, बल्कि चुनाव प्रक्रिया में सबका भरोसा बना रहे, इस अपेक्षा को भी ध्यान में रखेगा।

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