लोकतंत्र में वित्तीय उत्तरदायित्व सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पहलुओं में एक माना जाता है। लेकिन ‘क्वालिटी ऑफ एकाउंट्स एंड फाइनेंशियल रिपोर्टिंग प्रैक्टिसेज’ नाम की सीएजी की 27 पेज की रिपोर्ट में बताया गया है कि इस उत्तरदायित्व की गुजरे वर्षों में खुलेआम धज्जियां उड़ाई गई हैँ।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की एक रिपोर्ट में सरकारी खातों में चल रहे जिस गड़बड़झाले पर रोशनी डाली है, उसकी अगर जवाबदेही तय की जाए, तो पूरी केंद्र सरकार कठघरे में खड़ी नजर आएगी। लेकिन यह आज के माहौल पर एक कड़ी टिप्पणी है कि यह रिपोर्ट सीएजी ने पिछले महीने सौंपी थी, जबकि उसकी खबर अब जाकर एक अंग्रेजी अखबार ने छापी है। लोकतंत्र में वित्तीय उत्तरदायित्व सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पहलुओं में एक गिना जाता है। लेकिन ‘क्वालिटी ऑफ एकाउंट्स एंड फाइनेंशियल रिपोर्टिंग प्रैक्टिसेज’ नाम की इस 27 पेज की रिपोर्ट में बताया गया है कि इस उत्तरदायित्व की गुजरे वर्षों में खुलेआम धज्जियां उड़ाई गई हैँ। सार यह है कि किसी मद का धन कहीं और खर्च कर दिया गया, गलत गणनाएं की गईं, धन को रखने संबंधी नियमों का खुल कर उल्लंघन किया गया, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सरकार ने अपने निवेश के बारे में जो जानकारी दी और उन कंपनियों ने इस संबंध में जो विवरण दिया उसमें भारी फर्क है।
और जिन खर्चों का ब्योरा देने में सरकार ने अपने को अक्षम पाया- या जिसे उसने नहीं बताना चाहा, उसे ‘अन्य प्राप्तियों एवं व्यय’ की श्रेणी में डाल दिया गया। इसके अलावा सरकार का वित्तीय प्रदर्शन बेहतर दिखे- इसके लिए सरकार ने अनुकूल पैमानों को अपनाया। मसलन, सीएजी ने बताया है कि सरकार ने ऐतिहासिक दर के आधार पर विदेशी कर्ज की गणना कर बताया कि उस पर चार लाख 39 हजार करोड़ का ऋण है। जबकि यह गणना अगर वर्तमान विनियम दर पर की जाए, तो यह रकम छह लाख 58 हजार करोड़ रुपये बैठेगी। उधर सरकार पर छोटी बचत योजनाओं और भविष्य निधि के तहत जो देनदारियां हैं, साल 2021-22 में उन्हें 21,560 करोड़ रुपये कम करके बताया गया। नियमों के उल्लंघन की मिसाल देते हुए सीएजी ने बताया है कि सार्वजनिक धन को अलग-अलग करेंट एकाउंट्स खोल कर रखा गया, जबकि ऐसा कोई प्रावधान मौजूद नहीं रहा है। तो सार यह है कि वर्तमान सत्ताधारी जवाबदेही की अवधारणा से दूर रहते हुए सरकारी कोष के साथ व्यक्तिगत संपत्ति जैसा व्यवहार कर रहे हैं। यह सिरे अस्वीकार्य है।