nayaindia Inflation in Europe असल समस्या है मोनोपॉली
Editorial

असल समस्या है मोनोपॉली

ByNI Editorial,
Share

आईएमएफ की अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो साल के दौरान कंपनियों ने लागत मूल्य में वृद्धि की तुलना में उत्पाद के मूल्य में अधिक वृद्धि की। यही मुनाफाखोरी यूरोप में महंगाई का प्रमुख कारण है।

दुनिया गुजरे डेढ़ साल से असामान्य महंगाई झेल रही है, लाजिमी है कि इसके कारणों पर अर्थशास्त्रियों के बीच बहस चली है। कुछ महीने पहले अमेरिकी अर्थशास्त्री इसाबेला बेवर ने अपना बहुचर्चित शोधपत्र प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने महंगाई का मुख्य कारण कंपनियों की मुनाफाखोरी को बताया। बीते मार्च में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने एक शोधपत्र प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने स्पष्ट कहा कि भारत में महंगाई के लिए पांच उद्योग घराने जिम्मेदार हैं, जिन्होंने अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्रों पर अपना पूरा एकाधिकार कायम कर लिया है। और अब यही बात यूरोप के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की एक अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है। आईएमएफ दुनिया में चल रही अर्थव्यवस्था का एक तरह से अभिभावक है। इसलिए उसके इस निष्कर्ष पर पहुंचने का यही मतलब है कि महंगाई के इस पहलू को आधिकारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया है। आईएमएफ की तरफ से अर्थशास्त्रियों नील-जैकब हानसेन, फ्रेडरिक टोस्कानी और जिंग झाऊ ने कहा है कि पिछले दो साल के दौरान कंपनियों ने लागत मूल्य में वृद्धि की तुलना में उत्पाद के मूल्य में अधिक वृद्धि की।

यही यूरोप में महंगाई का प्रमुख कारण है। यानी उत्पादों के दाम जितने बढ़े, ऊर्जा की कीमत उतनी नहीं बढ़ी थी। आईएमएफ ने साफ तौर पर चेतावनी दी है कि अगर 2025 तक यूरोपियन सेंट्रल बैंक  की तरफ से मुद्रास्फीति के तय लक्ष्य को हासिल करना है, तो कंपनियों को अपना मुनाफा घटाना होगा। वरना, महंगाई का दुश्चक्र अधिक गंभीर रूप लेता जाएगा। हुआ यह है कि कंपनियों ने मुनाफा बढ़ाने के लिए वस्तुओं और सेवाओं के दाम बढ़ाए, जिसकी वजह से महंगाई बढ़ी और अब श्रमिक वर्ग उस महंगाई के बीच अपना जीवन-स्तर बरकरार रखने के लिए तनख्वाह बढ़ाने की मांग कर रहा है। इस मांग को माना गया, तो भी मुद्रास्फीति का कारण बनेगा। कंपनियां मनमाने ढंग से कीमतें इसलिए बढ़ा पाती हैं, क्योंकि उनके सामने बाजार में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। स्पष्टतः यह मोनोपॉली ही असल समस्या है। नव-उदारवादी नीतियों पर अंधाधुंध अमल ने बाजार में प्रतिस्पर्धा को खत्म किया है। उसका परिणाम पूरी अर्थव्यवस्था भुगत रही है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें

Naya India स्क्रॉल करें