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भारत की यह महत्त्वाकांक्षा

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भारत भले ब्रिक्स के मंच पर डॉलर से मुक्ति के अभियान में मुखर ना रहा हो, परंतु अपने स्तर इस दिशा में भरसक कोशिशें उसने की हैं। बात ज्यादा आगे नहीं बढ़ी है, तो वजह भारतीय अर्थव्यवस्था की अपनी कमजोरियां हैं।

डोनल्ड ट्रंप ने पहले ही चेतावनी दी थी कि ब्रिक्स देश अपने कारोबार के भुगतान में डॉलर का इस्तेमाल घटाएंगे, तो अमेरिका उनसे होने वाले आयात पर 100 फीसदी शुल्क लगाएगा। राष्ट्रपति पद का शपथ लेने के तुरंत बाद उन्होंने ये धमकी दोहराई। इस संदर्भ में पिछले हफ्ते भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से लिया गया एक फैसला महत्त्वपूर्ण हो गया है। इसके जरिए आरबीआई ने अनिवासियों को भारत में पंजीकृत डीलर बैंकों में रुपये में खाता रखने के लिए अधिकृत किया है।

इसका मकसद भारत से होने वाले आयात और निर्यात का भुगतान रुपये में करने की सुविधा देना है। इसके तहत अंतरराष्ट्रीय कारोबारी अन्य देशों के शहरों में मौजूद अपने डीलर खातों में एक महीने तक रुपया रख सकेंगे। इस बीच वे जो खरीदारी या बिक्री करेंगे, उनसे संबंधित लेन-देन बिना विदेशी मुद्रा का इस्तेमाल किए किया जा सकेगा। इस निर्णय के साथ रुपये को अंतरराष्ट्रीय व्यापार की मुद्रा बनाने की नीति को भारत एक नए मुकाम पर ले गया है। इसके पहले इसी मकसद से घरेलू बैंकों में वोस्ट्रो खाते खोलने की इजाजत दी गई थी। तब मकसद रूस से व्यापार का भुगतान रुपया या रुबल में करने की सुविधा देना था। इस बीच भारत ने कई अन्य देशों के साथ भी आपसी मुद्राओं में भुगतान संबंधी करार किए हैं।

यह सब डॉलर के प्रभाव से मुक्त होने की कोशिश का ही हिस्सा है। तो भारत भले ब्रिक्स मंच पर डॉलर से मुक्ति के अभियान में मुखर ना रहा हो, परंतु अपने स्तर इस दिशा में भरसक कोशिशें उसने की हैं। बात ज्यादा आगे नहीं बढ़ी है, तो वजह भारतीय अर्थव्यवस्था की अपनी कमजोरियां हैं। गुजरे वर्षों में डॉलर की तुलना में रुपये की गिरती कीमत भी इसमें एक बाधा बनी है। फिर भी, मुमकिन है कि ट्रंप प्रशासन इस प्रयास को डॉलर को चुनौती देने की बड़ी मुहिम का ही हिस्सा माने। इसलिए ट्रंप के टैरिफ की जो गाज दुनिया के विभिन्न देशों पर गिरने वाली है, उसके प्रभाव में भारत भी आ सकता है। उस स्थिति के लिए भारत सरकार की क्या तैयारी है, यह देश को मालूम नहीं है।

By NI Editorial

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