केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र भेज कर कहा है कि वे प्राइवेट सुरक्षा एजेंसियों को रिटायर्ड अग्निवीरों की भर्ती के लिए राजी करें। खासकर उन एजेंसियों को, जिनकी सेवाएं सरकारी विभाग, बैंक आदि लेते हैं।
नरेंद्र मोदी सरकार ने जब ‘अग्निपथ’ योजना लागू की, तभी ये चेतावनी दी गई थी कि इसके तहत भर्ती अग्निवीर जब रिटायर्ड होंगे, तो भारतीय समाज के लिए वे एक बड़ी चिंता का कारण बनेंगे। सरहदों की हिफाजत में युवा उम्र के चार साल गुजारने के बाद जब बाकी जिंदगी में उन्हें सचमुच के अग्निपथ से गुजरना होगा। अब ये आशंका सच होती दिख रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र भेज कर कहा है कि वे प्राइवेट सुरक्षा एजेंसियों को रिटायर्ड अग्निवीरों की भर्ती के लिए राजी करें। खासकर उन एजेंसियों को, जिनकी सेवाएं सरकारी विभाग, बैंक आदि लेते हैं। इसके लिए प्राइवेट सिक्युरिटी एजेंसी रेगुलेशन ऐक्ट का सहारा लेने को कहा गया है। इस कानून में प्रावधान है कि प्राइवेट सुरक्षा एजेंसियां सेना, पुलिस और सशस्त्र बलों से रिटायर्ड कर्मियों को भर्ती में तरजीह दे सकती हैं। मगर ध्यान में रखने की बात है कि थल, वायु एवं जल सेनाओं से रिटायर्ड कर्मियों को पेंशन, इलाज, कैंटीन आदि की सेवाएं ताउम्र मिलती हैं, जबकि अग्निवीरों को चार साल की नौकरी के बाद एकमुश्त 11.71 लाख रुपये देकर विदा करने का प्रावधान है।
केंद्र ने 25 फीसदी अग्निवीरों को 15 और साल के लिए सेना में रखने तथा अपने तहत आने वाले अर्धसैनिक बलों में उनके लिए आरक्षण का प्रावधान किया है। ऐसा ही प्रावधान राज्य सरकारों से भी पुलिस एवं सशस्त्र बलों में करने को कहा गया है। मगर ये सब आश्वासन हैं, गारंटी नहीं। इसलिए अंदेशा है कि ज्यादातर अग्निवीरों का भविष्य प्राइवेट सुरक्षा एजेंसियों में अस्थायी नौकरी करना होगा। ये सवाल पहले भी उठा था और आज भी प्रासंगिक है कि क्या इसका खराब असर भारतीय सीमाओं के रक्षकों के मनोबल पर नहीं पड़ेगा? अग्निपथ योजना संभवतः भारत के रक्षा खर्च पर बढ़े दबाव के कारण शुरू की गई। वन रैंक वन पेंशन योजना ने रक्षा बजट के बहुत हिस्से को हड़प लिया। नतीजा एक ऐसी योजना के रूप में सामने आया है, जिसे अनेक विशेषज्ञ राष्ट्रीय सुरक्षा से एक तरह का समझौता मानते हैं। यह गंभीर चिंता का पहलू है।
