यह कैसी विडम्बना है कि केजरीवाल जेल में रहते हुए भी मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं लेकिन जेल से बाहर आकर मुख्यमंत्री के रूप में काम नहीं कर सकते!
सुप्रीम कोर्ट ने 12 जुलाई को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब नीति में हुए कथित घोटाले से जुड़े ईडी के मामले में जमानत दी थी। इसके दो महीने बाद 13 सितंबर को उसने सीबीआई के मामले में भी उनको जमानत दे दी। दोनों ही मामलों में जमानत की एक समान और बेहद कठोर शर्तें लगाई गईं। मुख्यमंत्री को जमानत देते हुए जैसी शर्तें लगाई गई हैं वह हैरान करने वाली हैं। क्योंकि खुद सर्वोच्च अदालत ने कई मामलों में कहा है कि जमानत देते समय सोच समझ कर शर्तें लगानी चाहिएं। केजरीवाल का मामला और भी आश्चर्यजनक इसलिए है क्योंकि जब वे जेल में थे तब सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने इस सवाल पर विचार किया था कि वे जेल में रह कर सरकार के फैसलों से जुड़ी फाइलों पर दस्तखत कर सकते हैं या नहीं। लेकिन एक दूसरी बेंच ने उनको जमानत देते हुए फाइलों पर दस्तखत करने पर रोक लगा दी।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच के सामने एक मामला आया था, जिसमें जेल काट रहे एक सजायाफ्ता याचिकाकर्ता ने कहा था कि दिल्ली सरकार उसकी सजा माफ करने में देरी कर रही है। जजों ने इस बारे पूछा तो दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि मुख्यमंत्री केजरीवाल जेल में बंद हैं इसलिए फाइलों पर दस्तखत नहीं कर पा रहे हैं, जिससे देरी हो रही है। तब अदालत ने एडिशनल सॉलिसीटर जनरल से पूछा था कि क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जेल से अपने कर्तव्यों का पालन करने से रोकने के लिए कोई प्रतिबंध आदेश है? बेंच ने कहा हम इसकी जांच करना चाहते हैं क्योंकि इससे सैकड़ों मामले प्रभावित होंगे। इस सवाल पर एडिशनल सॉलिसीटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि वे इस मुद्दे पर निर्देंश लेंगी। इसके बाद कोर्ट को बताएंगी। यह पांच सितंबर का मामला है।
इसके एक हफ्ते बाद 13 सितंबर को जस्टिस उज्ज्वल भुइंया और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने केजरीवाल को जमानत दी लेकिन कई शर्तों में एक शर्त यह लगा दी कि वे फाइलों पर दस्तखत नहीं कर सकेंगे। इतना ही नहीं अदालत ने यह भी कहा कि वे मुख्यमंत्री कार्यालय नहीं जाएंगे। आमतौर पर जमानत में जो शर्तें लगाई जाती हैं जैसे आरोपी सबूतों व गवाहों से छेड़छाड़ नहीं करेगा या मुकदमे के बारे में बयानबाजी नहीं करेगा, जमानत के बॉन्ड भरेगा, जरुरत होने पर अदालत और एजेंसी के सामने पेश होगा आदि, ऐसी सारी शर्तें केजरीवाल पर भी हैं। लेकिन मुख्यमंत्री के ऊपर यह शर्त ज्यादती है कि वे कार्यालय नहीं जाएंगे और फाइल पर दस्तखत नहीं करेंगे। जमानत की शर्तें ऐसी होनी चाहिए, जो तर्कसंगत हो, व्यक्ति की निजी या सार्वजनिक जिम्मेवारियों के निर्वहन में बाधा नहीं डालती हो और उसके आत्मसम्मान पर चोट नहीं करती हो।