Arvind kejriwal resignation: केजरीवाल का इस्तीफे का फैसला अप्रत्याशित है। वे एक तीर से कई निशाने साध रहे हैं। भ्रष्टाचार पर जवाब दे रहे हैं और सहानुभूति बटोर रहे हैं।
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दिसंबर 2013 में कांग्रेस से तालमेल किया
राजनीति में मतदाताओं और अपने प्रतिद्वंद्वियों को चौंकाने का या अप्रत्याशित निर्णय करने का अपना महत्व होता है। अरविंद केजरीवाल इसे बहुत अच्छी तरह से समझते हैं। तभी वे अक्सर अपने फैसलों से चौंकाते रहते हैं। याद करें कितनी मेहनत करके उन्होंने दिसंबर 2013 में कांग्रेस से तालमेल किया था। जिसके खिलाफ लड़े थे उसी के आठ विधायकों की मदद लेकर सरकार बनाई और लगा कि सब कुछ ठीक चल रहा है तो उन्होंने महज 49 दिन के बाद ही इस्तीफा दे दिया।
वह इस्तीफा अप्रत्याशित था और उसके बाद फरवरी 2015 में हुए चुनाव में आम आदमी पार्टी को जो बहुमत मिला वह भी अप्रत्याशित था। इसी तरह से केजरीवाल के इस बार के इस्तीफे का फैसला भी अप्रत्याशित है। आमतौर पर माना जा रहा था कि वे गिरफ्तार होंगे या जेल जाएंगे तो इस्तीफा देंगे। लेकिन तब उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया और अभी जब किसी ने इसकी उम्मीद नहीं की थी तो उन्होंने इस्तीफे का ऐलान कर दिया।
इस्तीफा कई स्थितियों का मिलाजुला प्रतिफल
उनका इस्तीफा कई स्थितियों का मिलाजुला प्रतिफल है। इसके पीछे पांच महीने बाद होने वाले चुनाव की रणनीति तो है लेकिन कुछ और स्थितियां भी हैं। जैसे केजरीवाल की पार्टी चाहे जो भी दावे करे लेकिन उनको पता था कि सुप्रीम कोर्ट ने जमानत की जो शर्तें लगाई हैं, उससे उनके हाथ बंधे हैं। वे कोई बड़ा नीतिगत फैसला नहीं कर पाएंगे। अगर सरकार लोक लुभावन फैसले करती है तो उप राज्यपाल द्वारा रोके जाने का अलग खतरा है। ऐसे में अगर वे खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे रहते हैं तो चुनाव में जनता को जवाब देना भारी पड़ेगा। (Arvind kejriwal resignation)
दूसरे, उनको यह अंदाजा हो गया था कि गिरफ्तारी से ज्यादा सहानुभूति नहीं पैदा हुई है इसलिए उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ कर सहानुभूति हासिल करने का प्रयास किया है। उनको पता है कि विधानसभा का कार्यकाल पांच महीने से भी कम बचा है। इसलिए नाखून कटा कर शहीद होने में कोई समस्या नहीं है। वे साढ़े नौ साल से ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
एक कारण यह भी है कि वे भ्रष्टाचार के मसले पर भारतीय जनता पार्टी को जवाब देना और दिल्ली के मतदाताओं को मैसेज देना चाहते थे। दिल्ली शराब नीति केस में नाम आने और गिरफ्तारी के बाद से ही भाजपा के नेता अरविंद केजरीवाल से मुख्यमंत्री पद छोड़ने की मांग कर रहे हैं। जेल से निकलने के बाद भी इस्तीफे की मांग थमी नहीं है। केजरीवाल ने अब इस्तीफे का ऐलान कर दिया है। सो, अब वे भाजपा नेताओं के हर हमले का जवाब सकेंगे कि उन्होंने तो इस्तीफा दे दिया।