रोहित शर्मा और खुद उनके बयानों से स्पष्ट है कि रविचंद्रन अश्विन खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे। उन्हें लगने लगा था कि टीम प्रबंधन को उनकी जरूरत नहीं है। संभवतः संकेत यह था कि अब टीम में उनकी जगह पक्की नहीं है।
कोई बड़ा खिलाड़ी किसी बड़ी टेस्ट शृंखला के बीच तुरंत रिटायर होने का एलान करे, तो उसे अवकाश लेने की सामान्य प्रक्रिया नहीं माना जा सकता। बड़े खिलाड़ियों की विदाई अक्सर नियोजित ढंग से और स-सम्मान होती है। इसलिए रविचंद्रन अश्विन ने जिस तरह भारत- ऑस्ट्रेलिया टेस्ट सीरिज के बीच तुरंत रिटायरमेंट का एलान किया, लाजिमी है कि उस पर कयास लगाए जाएंगे। इसे संकेत माना जाएगा कि भारतीय क्रिकेट के प्रशासन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। अश्विन मैच जिताऊ खिलाड़ी रहे हैं। उनका रिकॉर्ड खुद बोलता है।
भारत के पूरे क्रिकेट इतिहास में अनिल कुंबले (619) के बाद टेस्ट विकेट लेने के लिहाज से वे दूसरे नंबर पर (537) हैं। अपने छह टेस्ट शतकों के साथ दुनिया के टॉप स्पिनरों में बतौर बल्लेबाज वे पहले नंबर पर हैं। 13 साल तक चले टेस्ट करियर के दौरान 106 मैचों में उन्होंने 37 बार एक पारी में पांच और आठ बार मैच में दस विकेट उन्होंने लिए। भारत की अनुकूल पिचों पर उन्हें खेलना किसी विदेशी टीम के लिए बड़ी चुनौती बना रहा।
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अब कप्तान रोहित शर्मा और खुद अश्विन के बयानों से स्पष्ट है कि 38 वर्षीय अश्विन खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे। उन्हें लगने लगा था कि टीम प्रबंधन को उनकी जरूरत नहीं है। इस सीरिज में अब तक हुए तीन मैचों में उन्हें सिर्फ एक में खेलाया गया।
संभवतः संकेत यह था कि अगले दो मैचों में भी उनकी जगह पक्की नहीं है। ऐसे में यह मानने के बावजूद कि उनमें अभी धार बाकी है, उन्होंने तुरंत अवकाश लेने का एलान कर दिया। बड़े खिलाड़ियों को उनके नाम के आधार ढोया जाए, यह किसी का तर्क नहीं हो सकता। लेकिन खिलाड़ियों को गाइड करने और उन्हें सीधे उचित सलाह देने का सिस्टम जरूर मौजूद होना चाहिए। इसके लिए स्वस्थ संवाद की जरूरत है। लेकिन हालिया संकेत यही हैं कि भारतीय क्रिकेट संचालन में सीधा संवाद गायब है। विराट कोहली को जिस तरह कप्तानी से हटाया गया और उसके बाद से टीम का जैसा डगमग हाल है, उसके लिए सबसे बड़ी जिम्मेदारी शायद इसी पहलू की है।