ये खदान राज्य सरकार का उद्यम- एएमडीसी चलाता था, मगर उसे 12 साल पहले बंद कर दिया गया। क्या हैरतअंगेज नहीं है कि इतनी लंबी अवधि में वहां ‘संभवतः’ अवैध खनन चल रहा था, लेकिन राज्य सरकार को जानकारी नहीं थी?
असम में दिमा हसाओ खदान में रविवार को तीन और मजदूरों के शव मिले। इस रैट-होल माइन में हादसा छह जनवरी को हुआ था, लेकिन रविवार तक कई मजदूर फंसे हुए थे। अब तक चार लाशें मिली हैं। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा कह चुके हैं कि कि दुर्घटनाग्रस्त हुई खदान ‘संभवतः’ गैर कानूनी थी। उन्होंने बताया कि ये खदान राज्य सरकार के तहत आने वाला असम खनिज विकास निगम (एएमडीसी) चलाता था, मगर उसे 12 साल पहले बंद कर दिया गया था। क्या यह हैरतअंगेज नहीं है कि इतनी लंबी अवधि में वहां ‘संभवतः’ अवैध खनन चल रहा था, लेकिन सरकार को जानकारी नहीं थी?
इसलिए कांग्रेस नेता गौरव गोगोई के इस दावे में दम है कि स्थानीय अधिकारियों की बिना जानकारी के अवैध खनन गतिविधियों को चलाना संभव नहीं है। गोगोई ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर एसआईटी के जरिए इस हादसे की जांच की मांग की है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में अवैध खदानों से कोयला निकालने और उनमें हादसों का सिलसिला जारी है। हर हादसे के बाद कुछ दिनों तक मुद्दा सुर्खियों में रहता है। उसके बाद दोबारा ऐसी गतिविधियां शुरू हो जाती हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अवैध खुदाइयों पर 2014 में ही पाबंदी लगा दी थी। फिर भी असम, नगालैंड, मेघालय आदि के साथ-साथ देश के दूसरे राज्यों में स्थानीय प्रशासन और अवैध कोयला कारोबारियों की मिलीभगत से यह धंधा धड़ल्ले से जारी है।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक मेघालय की सीमा के नजदीक स्थित दिमा हसाओ जिले में कोयले, चूना पत्थर और ग्रेनाइट की अनगिनत खदानें हैं। वहां अवैध खुदाई के दौरान अक्सर छोटे-बड़े हादसे हो जाते हैं। उधर बीते साल जनवरी में नगालैंड में हुए हादसे में छह मजदूरों की मौत हो गई थी। पिछले मई और सितंबर 2022 में असम तिनसुकिया जिले में अवैध खदानों में जहरीली गैस के रिसाव से तीन मजदूर मर गए थे। मेघालय में भी ऐसे हादसे हो चुके हैं। आखिर इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार कौन है? मुश्किल यही है कि चूंकि ऐसे हादसों के शिकार गरीब मजदूर होते हैं, इसलिए यह सवाल हमेशा अनुत्तरित बना रहता है।