विपक्ष राजनीतिक दायरे में इसका सामना करने को तैयार नहीं है, बल्कि उसने सिर्फ न्यायपालिका से उम्मीद जोड़ी थी, इसलिए अनुमान लगाया जा सकता है कि बिहार की ही तर्ज पर अब पूरे भारत में पुनरीक्षण प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के मामले में निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट की सलाह नहीं मानी है। 10 जुलाई को मामले की हुई सुनवाई के समय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि पुनरीक्षण प्रक्रिया में जिन दस्तावेजों को स्वीकार किया जा रहा है, आयोग को उनमें आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, और राशन कार्ड को भी शामिल करने पर “विचार करना” चाहिए। जिस जल्दबाजी में पुनरीक्षण किया जा रहा है, कोर्ट ने उस पर भी सवाल उठाए थे। मगर जहां तक पुनरीक्षण की संवैधानिकता का प्रश्न है, तो कोर्ट ने उस मामले में आयोग के अधिकार की पुष्टि की थी।
न्यायाधीशों की भाषा से स्पष्ट था कि तीन और दस्तावेज जोड़ने का आदेश उन्होंने नहीं दिया। सिर्फ इस विचार करने की सलाह दी। इसलिए यह देख कर हैरत हुई कि पुनरीक्षण प्रक्रिया के खिलाफ याचिका दायर करने वाली पार्टियों, गैर-सरकारी संस्थाओं, और व्यक्तियों ने कोर्ट की सलाह को अपनी ‘पहली’ जीत समझ लिया। आश्चर्य यह देख कर भी हुआ था कि उनमें से किसी ने पुनरीक्षण प्रक्रिया पर स्टे नहीं मांगा। बल्कि आयोग ने एक सोशल मीडिया पोस्ट से जरिए यह तथ्य सबके सामने रख दिया कि असल में बिहार में विपक्षी पार्टियां पुनरीक्षण प्रक्रिया में सहयोग कर रही हैं। इस कार्य में उन्होंने अपने हजारों कार्यकर्ताओं को लगाया है। इस तरह विपक्षी पार्टियों का दोहरापन जग-जाहिर हुआ।
बहरहाल, अब आयोग ने तीन और दस्तावेजों को शामिल करने पर “विचार करने” के सुप्रीम कोर्ट के “निर्देश” का पालन कर लिया है। वह इस निष्कर्ष पर है कि इसकी जरूरत नहीं है। इस बारे में उसने अपना हलफनामा कोर्ट में दायर किया है। अब 28 जुलाई को उस पर सुनवाई होगी। लेकिन अब सुनवाई के लिए संभवतः ज्यादा कुछ बचा नहीं है। बिहार में पुनरीक्षण पूरा होने वाला है। उसके बाद सारे देश में ये प्रक्रिया शुरू होगी। और चूंकि विपक्ष राजनीतिक दायरे में इसका सामना करने को तैयार नहीं है, बल्कि सिर्फ सोशल मीडिया पर आशंकाएं फैलाने तक सिमटा हुआ है, इसलिए अनुमान लगाया जा सकता है कि बिहार की ही तर्ज पर पूरे भारत में ये प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।