140 करोड़ आबादी वाले इस देश में सिर्फ दस हजार सिनेमा स्क्रीन हैं। इनमें 40 लाख सीटें हैं। उनके भरने की औसत दर मात्र 16 प्रतिशत है। उत्तर भारत में ऐसे कई जिले हैं, जहां आज कोई सिनेमा घर नहीं है।
बॉलीवुड गहरे संकट में है। इस पर नए सिरे से रोशनी मुंबई में हुए वेव समिट के दौरान पड़ी। अभिनेता आमिर खान ने महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठाया कि भारत की 98 प्रतिशत आबादी सिने स्क्रीन से दूर क्यों हो गई है? उल्लेख हुआ कि 140 करोड़ आबादी वाले देश में सिर्फ दस हजार सिनेमा स्क्रीन हैं। इनमें 40 लाख सीटें हैं।
उनके भरने की औसत दर मात्र 16 प्रतिशत है। उत्तर भारत में ऐसे कई जिले हैं, जहां आज कोई सिनेमा घर नहीं है। सिनेमा घरों के बड़े मॉल्स में केंद्रित होने और सिंगल स्क्रीन सिनेमा घरों का चलन खत्म होने का यह नतीजा हुआ है। मॉल्स में सिनेमा देखना खर्चीला है। यह एक पूरी फैमिली आउटिंग का रूप लेता गया है।
बॉलीवुड संकट पर आमिर का सवाल
इसलिए आमिर खान की ये बात आंशिक रूप से सही है कि समस्या के लिए ओटीटी कल्चर दोषी है। रिलीज होने के कुछ रोज बाद फिल्में ओटीटी प्लैटफॉर्म्स पर आ जाती हैं। तो बहुत से लोग टिकट खरीद कर उन्हें देखने नहीं जाते। मगर ओटीटी आबादी के कितने बड़े हिस्से को उपलब्ध है? 2024 तक इन प्लैटफॉर्म्स के भारत में तकरीबन दस करोड़ पेड सब्सक्राइबर थे।
उनके परिजनों को शामिल कर लें, तो ओटीटी प्लैटफॉर्म्स का तकरीबन 40 करोड़ यूजर बेस माना जा सकता है। यह संख्या भारत के कुल उपभोक्ता बाजार से मेल खाती है। आमिर खान ने कहा कि जो सबसे बड़ी हिट फिल्में हुई हैं, उन्हें देखने भी अधिकतम साढ़े तीन से चार करोड़ लोग आए।
यानी बॉक्स ऑफिस बॉलीवुड की आय का सीमित स्रोत बन गया है। मगर मुद्दा यह है कि एक समय सिंगल स्क्रीन सिनेमा घरों का जो जाल फैला हुआ था, जहां सस्ते टिकट लेकर मूंगफली खाते हुए आम लोग भी फिल्में देखते थे, उस बाजार को बॉलीवुड ने क्यों खो दिया? सबको लुभाने वाली फिल्में बननी क्यों बंद हो गईं? फिर फिल्म निर्माण पर नोटबंदी और देश के बदले सियासी कल्चर का क्या असर पड़ा है? चूंकि फिल्म कारोबारी इन सवालों पर चुप रहना चाहते थे, इसलिए चर्चा सीमित दायरे में ही रह गई। मगर समस्या गंभीर है, ये तो सामने आया ही है।
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Pic Credit: ANI