नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन के दौरान यह दो-टूक एलान किया कि भारत ब्रिक्स के विस्तार का समर्थन करता है। उनकी इस घोषणा के तुरंत बाद शिखर सम्मेलन में नए देशों को ब्रिक्स में शामिल करने के मानदंडों से संबंधित प्रस्ताव को पारित कर दिया गया।
अपने 15वें शिखर सम्मेलन के साथ पांच उभरती अर्थव्यवस्थाओं- ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका- का मंच ब्रिक्स अब एक नई यात्रा शुरू करने जा रहा है। बुधवार इस शिखर सम्मेलन में महत्त्वपूर्ण दिन रहा, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन के दौरान यह दो-टूक एलान कर दिया कि भारत ब्रिक्स के विस्तार का समर्थन करता है। मोदी के भाषण पर सबकी निगाहें टिकी थीं, क्योंकि पिछले कुछ समय से पश्चिमी मीडिया में कई भ्रामक खबरें थीं। उनमें बताया गया था कि भारत ब्रिक्स के विस्तार और अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लिए नया भुगतान सिस्टम बनाने की ब्रिक्स की कोशिश का विरोध कर रहा है। जबकि ये दो मुद्दे ही दक्षिण अफ्रीका के जोहानेसबर्ग में आयोजित शिखर सम्मेलन में प्रमुख मुद्दा थे। शिखर सम्मेलन से ठीक पहले यह बात साफ हो गई थी कि ब्रिक्स जोहानेसबर्ग शिखर सम्मेलन में अपनी अलग करेंसी का एलान नहीं करेगा। इसके बजाय वहां चर्चा ब्रिक्स देशों के बीच आपसी कारोबार में भुगतान अपनी मुद्राओं में करने का सिस्टम बनाने पर होगा। इसे आर-5 यानी रुपया, रेनमिनबी, रुबल, रैंड और रियाल- के बीच सहयोग के नाम से जाना जा रहा है।
ब्रिक्स में विस्तार को भारत के समर्थन की घोषणा के तुरंत बाद विस्तार के मानदंडों से संबंधित प्रस्ताव शिखर सम्मेलन में पारित कर दिया गया। यानी अब विस्तार एक हकीकत बनने जा रहा है। चर्चा है कि पहले चरण में सऊदी अरब, यूएई, ईरान, अल्जीरिया और अर्जेंटीना को ब्रिक्स से जोड़ा जाएगा। सदस्यता के लिए अर्जी देने वाले बाकी 18 देश अभी फ्रेंड्स ऑफ ब्रिक्स के रूप में मौजूद रहेंगे। आपसी मुद्राओं में कारोबार तो पहले से ही जोर पकड़ रहा है। इसके लिए भारत खास उत्साहित रहा है। चूंकि यह चलन सभी विकासशील देशों के हित में है, इसलिए इसे और गति मिलना भी अब एक वास्तविक संभावना है। हालांकि जोहानेसबर्ग आए किसी नेता ने यह कहा नहीं है, लेकिन वहां हुए फैसले साफ संकेत देते हैं कि अपनी नई यात्रा में ब्रिक्स जी-7 के वर्चस्व के लिए एक बड़ी चुनौती बनेगा। आर्थिक ताकत, सियासी इरादा, और वक्त की धारा- ये सभी अब ब्रिक्स के अनुकूल हैं।