यह सुनिश्चित करने की जरूरत होगी कि सरकार जो पैसा दे, उससे सचमुच उसके लक्ष्य हासिल हों। वरना, ताजा घोषित योजनाएं रोजगार और अनुसंधान की सूरत सुधारने के बजाय निजी क्षेत्र को मनी ट्रांसफर का माध्यम भर बन कर रह जाएंगी।
केंद्र ने दो वर्षों के अंदर साढ़े तीन करोड़ स्थायी नौकरियां दिलवाने और अनुसंधान, विकास एवं आविष्कार (आरएंडडी) को बढ़ावा देने के लिए एक-एक लाख करोड़ रुपये की दो योजनाओं का एलान किया है। दोनों का सार यह है कि सरकार अपने खजाने से ये बड़ी रकम प्राइवेट सेक्टर को ट्रांसफर करेगी और उनसे अपेक्षा रखी जाएगी कि वे सरकार के लक्ष्यों को पूरा करें। इम्पलॉयमेंट लिंक्ड इन्सेंटिव योजना के तहत नौकरी पाने वाले व्यक्ति को दो किस्तों में 15,000 रुपये दिए जाएंगे। नौकरी देने वाली कंपनी को हर नई नौकरी पर दो साल तक तीन हजार रुपये महीने का प्रोत्साहन मिलेगा।
आरएंडडी प्रोत्साहन योजना के तहत अनुसंधान के लिए दीर्घकालिक वित्तीय सहायता दी जाएगी। साथ ही रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में तकनीक हासिल करने के लिए भी वित्तीय सहायता सरकार देगी। स्वच्छ ऊर्जा, जलवायु तकनीक, डीप टेक, एआई और डिजिटल एग्रीकल्चर वे संभावित क्षेत्र हैं, जिनमें इस योजना के जरिए सरकार भारत को तकनीक महाशक्ति बनाना चाहती है। इन योजनाओं पर गौर करते हुए सहज ही 2015 में शुरू की गई स्किल इंडिया योजना की याद आ जाती है। उस योजना के जरिए भारत को कुशल कर्मियों का केंद्र बनाने की महत्त्वाकांक्षा जताई गई थी। बताया जाता है कि अब तक सवा दो करोड़ लोग इस योजना का लाभ उठा चुके हैं। मगर आरोप है कि प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों ने सरकारी धन के जरिए अपने कर्मियों को प्रशिक्षित किया।
यानी मोटे तौर पर यह निजी क्षेत्र को सरकारी धन के ट्रांसफर की योजना बन गई। नई योजनाओं के मामले में हकीकत यह है कि निवेश और रोजगार की स्थितियां बाजार में मांग से तय होती हैं। कोई कंपनी सिर्फ इसलिए अपने काम का प्रसार नहीं करती कि उसे नए लोगों को नौकरी देनी है। आरएंडडी के मामले में तो निजी क्षेत्र की दिलचस्पी वैसे भी कम रही है। इसलिए यह सुनिश्चित करने की जरूरत होगी कि सरकार जो पैसा दे, उससे सचमुच उसके लक्ष्य हासिल हों। वरना, ये योजनाएं रोजगार और अनुसंधान की सूरत सुधारने के बजाय निजी क्षेत्र को मनी ट्रांसफर का माध्यम भर बन कर रह जाएंगी।