गंभीर सवाल पर अगंभीर नजरिया अनुचित है। इससे चुनाव प्रणाली की साख पर तो सवाल उठेंगे ही, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव से संबंधित व्यापक प्रश्नों को भी क्षति पहुंचेगी। बेहतर होगा कि पार्टी हरियाणा में अपनी रणनीति और संगठन की खामियों पर ध्यान दे।
कांग्रेस के राजधानी स्थित प्रवक्ताओं ने हरियाणा के चुनाव नतीजों को अस्वीकार कर दिया है। भाजपा की जीत के बाद जयराम रमेश और पवन खेड़ा ने कहा कि यह हेरफेर के जरिए हासिल की गई जीत है। मगर हरियाणा में पार्टी दो दिग्गज नेताओं- भूपिंदर सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा ने कांग्रेस की हार को स्वीकार किया है। हुड्डा ने कहा है कि “विरोध जताते हुए” वे इसे स्वीकार कर रहे हैं, जबकि शैलजा ने हार का पूरा ठीकरा प्रदेश इकाई के सिर फोड़ा है। उधर कर्नाटक के प्रमुख कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार ने भी “हरियाणा के जनादेश को स्वीकार” किया है।
इसलिए भ्रम पैदा हुआ है कि हरियाणा के चुनाव परिणाम पर पार्टी की असल राय क्या है? निर्विवाद है कि भारत में चुनाव भले स्वतंत्र हों, लेकिन निष्पक्ष नहीं हो रहे हैं। पैसा, प्रचार तंत्र, और निर्वाचन आयोग जैसी निर्णायक संस्थाओं के एक पार्टी की तरफ पूरे झुकाव ने प्रतिस्पर्धा का समान धरातल नहीं रहने दिया है। लोकसभा चुनाव के बाद वोट फॉर डेमोक्रेसी नामक एक एनजीओ ने अपनी अध्ययन रिपोर्ट में दावा किया कि जिन 240 सीटों पर भाजपा जीती, उनमें से 79 पर अंतर उन वोटों से पड़ा, जिन्हें मतदान के दिन के बाद निर्वाचन आयोग ने बढ़ाकर बताया था। मगर कांग्रेस पार्टी ने ऐसे सवालों को कभी-कभार ही उठाया है। उसने कभी इसे पूरी शिद्दत से नहीं उठाया, ना ही इनको लेकर कभी सुसंगत एवं निरंतर जन अभियान चलाया है।
अभी भी ऐसा नहीं लगता कि इस मुद्दे पर पार्टी के अंदर कोई गंभीर विचार-विमर्श हुआ है या उसका इरादा इसे जनता के बीच ले जाने का है। गंभीर सवाल पर अगंभीर नजरिया अनुचित है। इससे चुनाव प्रणाली की साख पर तो सवाल उठेंगे ही, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव से संबंधित व्यापक प्रश्नों को भी क्षति पहुंचेगी। इसके विपरीत बेहतर होगा कि पार्टी हरियाणा में अपनी रणनीति और संगठन की खामियों पर विचार करे। सोशल मीडिया पर सियासत करने के बजाय जमीनी राजनीति पर ध्यान देना बेहतर होगा। सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स की बनाई धारणा पर यकीन कर लेने के बजाय धरातल से फीडबैक का अपना सिस्टम बनाना सही नजरिया होगा।